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Showing posts from January, 2023

हिंदी उपन्यास में सांप्रदायिक चेतना

 बहुभाषी अत्यंत जटिल सामाजिक संरचना वाले विविध धर्म एवं संप्रदाय वाले देश भारत में सांप्रदायिकता एवं सांप्रदायिक समस्या सदियों से मूलभूत समस्या के रूप में रही है संप्रदायिक मनु भावना और उससे अवांछित रूप काल के अपने विशिष्ट संदर्भों में अपने-अपने ढंग से अतीत के भारतीय इतिहास का भी उसी तरह हिस्सा रहे जैसे कि वे आधुनिक भारत के हमारे अपने समय में हमारी अपनी चिंता का अभिन्न और आत्यंतिक हिस्सा है भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में जहां सभी धर्म जातियों एवं वर्गों के लोग शांति पूर्ण पूर्ण पूजा के साथ सह अस्तित्व की भावना से रहते हैं उसी भूमि को इस भावना ने रोग ग्रस्त कर दिया है सदियों से एक साथ एक भूमि पर हत्या रहे हिंदू मुसलमानों के बीच धीरे-धीरे पनपता घूर अविश्वास भयानक संप्रदायिकता का रूप ले लिया है लेकिन देखा जाए तो भारतीय समाज में इसकी जड़ें प्राचीन काल से ही गहरी और मजबूत है समय के बदलाव के साथ यह कट्टरता और उदारता का चोला धारण कर लेती है सत्ता पर काबिज रहने के लिए समाज के विभक्ति करण की प्रक्रिया अपनाने का कार्य सदियों से अनवरत रूप से चलता आ रहा है। की समस्याओं का रेखांकन सिर्फ इतिहास की पु

Blue Water Policy

16 -17 वीं शताब्दी में पुर्तगालियों ने हिंद महासागर और दक्षिणी तट पर अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया था। इसके पीछे दो प्रमुख कारण थे, एक, एशियाई जहाजों की तुलना में उनकी नौसैनिकों की श्रेष्ठता और दूसरा भूमि पर कुछ अत्यंत महत्वपूर्ण चौकियों की स्थापना, जो उसके जहाजी बेड़ों और व्यापारिक गतिविधियों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण आधार का कार्य करती थी। इसके अतिरिक्त उन्होंने स्थानीय लोगों को भी जीत कर लिया था, जिससे उन्हें काफी सहायता मिलती। पुर्तगालियों के नौसैनिक एवं व्यापारिक  जहाजों के चालक तथा सैनिक प्रायः  स्थानीय लोग हुआ करते थे। पड़ोसी राज्यों में राजदूत तथा जासूस भारतीयों को ही बना कर भेजा जाता था । उनके द्वारा उपलब्ध सूचनाएं अति महत्वपूर्ण होती थी। जिससे किसी आक्रमण को टालने या किसी शत्रु की दुर्बलताओ का आसानी से पता लगाया जा सकता था । हिंद महासागर पर नियंत्रण स्थापित करने में पुर्तगालियों ने युद्ध के अतिरिक्त कुशल रणनीति तथा कड़े व्यापारी पर नियंत्रण का सहारा लिया। इसके लिए उन्होंने अन्य देशों के साथ व्यापार करने पर कड़े प्रतिबंध लगाए। पुर्तगाल तथा गोवा से जारी निर्देशों और आज्ञप्तियों म

भारत में आर्यों का आगमन

भारत में आर्य भाषा भाषियों का आगमन 1500 ईसवी पूर्व के कुछ पहले हुआ था। आर्यों की जानकारी सर्वप्रथम ऋग्वेद में मिलती है। इनका प्रारंभिक जीवन पशुचारी था और कृषि उनका गौण व्यवसाय था। आर्यों का मूल निवास आल्पस पर्वत के पूर्वी क्षेत्र जो यूरेशिया कहलाता है, कहीं पर बताया जाता है। लेकिन इतिहासकारों में आर्यों के मूल स्थान को लेकर मतैक्य नहीं है ,उदाहरणस्वरूप , गंगानाथ झा इन्हें ब्रह्मर्षि देश का मानते हैं। जबकि डी एस त्रवेदी आर्यों का मूल स्थान मुल्तान स्थित देविका क्षेत्र को बताते हैं । एल डी कल्ल का मानना है कि आर्य कहीं कश्मीर तथा हिमालय क्षेत्र में बसते थे। तिलक ने तो इन्हें उतरी ध्रुव का बतलाया है । मैक्समूलर ने  आर्यों के मूल स्थान को मध्य एशिया स्थित किया है। गाइस महोदय डेन्यूब नदी के किनारे स्थित हंगरी प्रदेश को आर्यों का मूल स्थान बताया है, जबकि गार्डन चाइल्ड, मेयर और पीक ने आर्यों को दक्षिणी रूस का होना निश्चित किया है। आर्यों के समाज में पुरुष की प्रधानता थी उनके जीवन में घोड़े का सबसे अधिक महत्व था । पालतू घोड़े पहली बार 6000 ईस्वी पूर्व में काला सागर और यूराल पर्वत क्षेत्र में इ