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असाध्य वीणा : कथ्य और शिल्प

 'असाध्य वीणा ' कई दृष्टिकोण से अज्ञेय की प्रतिनिधि काव्य रचना मानी  जाती है। यह रचना सर्वप्रथम 1961 में उनकी कविता संग्रह 'आँगन के पर द्वार 'में प्रकाशित हुयी थी। यह एक लम्बी रहस्यवादी कविता है जिस पर जापान  में प्रचलित बौद्धों की एक  शाखा जेन संप्रदाय का प्रभाव परिलक्षित होता है। डॉक्टर राम स्वरूप चतुर्वेदी ने लिखा है कि  असाध्य वीणा  एक जापानी लोककथा पर आधारित है ,परन्तु इस कविता का परिवेश भारतीय है ,इसमें आने वाले दो पत्रों के नाम भी भारतीय ही है,यथा वज्रकीर्ति और प्रियंवद केशकंबली। संभव है कि वज्रकीर्ति महायानी दार्शनिक धर्मकीर्ति के अनुकरण पर गढ़ा गया एक नाम हो,इस कविता का केशकम्बली एक तरह से काल्पनिक चरित्र है ,क्योंकि ऐतिहासिक केशकम्बली के विपरीत  महायानी दार्शनिक के अनुयायी के रूप में हमारे सामने आता है। हो सकता है कि इस कविता के चरित्र यथार्थ न   होकर बहुत दूर तक कवि  की कला सृष्टि है.पर यह सम्पूर्ण रचना क्रम में उतना ही गौण हैं जितना यह पता  लगाना की निराला ने 'राम की शक्तिपूजा 'का मूल वृत्त कृत्तिवास से लिया था कि रामचरित मानस से या वाल्मीकि रामायण से