भारत- दुर्दशा नाटक की भाषा एवं शिल्प
भारतेंदु हरिश्चंद्र की नाट्य दृष्टि और भारत- दुर्दशा नाटक की भाषा एवं शिल्प जिस तरह निराला, मुक्तिबोध ने कविता की संरचना में क्रांतिकारी परिवर्तन किये और नए सौंदर्यशास्त्र की रचना की, उसी तरह उनसे भी पहले भारतेंदु ने नाट्य संरचना में नवीन सर्जनात्मक मोड़ पैदा किए और हिंदी के नाट्य शास्त्र, दृश्य विद्या,नाटक के नवीन सौंदर्य बोध की परिकल्पना की।कथानक और पात्रों के चरित्र- चित्रण के संबंध में भरत मुनि के नाट्यशास्त्र के महत्व को मानते हुए भी भारतेन्दु हिंदी नाटक में उनका ज्यों का त्यों पालन उपयुक्त नहीं मानते और हिंदी की प्रकृति और युग की आवश्यकताओं के अनुसार परिवर्तन को अनिवार्य मानते हैं।सशक्त पात्रों के चित्रण और उनकी गहरी व्यंजनात्मकता के लिए उन्होंने देश विदेश के भ्रमण, प्राकृतिक सौंदर्य के निरीक्षण और मानव प्रकृति के सूक्ष्म अध्ययन और अनुभव को जरूरी समझा। साथ ही चरित्र- चित्रण में सजग और आलोचक की गंभीर आलोचना दृष्टि का महत्व माना है ।अधिकतर वह कालिदास और शेक्सपियर के नाटकों के कथा- विन्यास और पात्र परिकल्पना एवं सूक्ष्म चरित्र -चित्रण का उदाहरण देते हैं और मानव जगत के व्यापक दर्शन