कामायनी का महाकाव्यत्व
कामायनी का महाकाव्यत्व
महाकाव्य किसी संस्कृति विशेष की गौरव गरिमा का व्याख्याता, जाति विशेष के सुख-दुख और उत्थान -पतन की कहानी तथा विश्वकोश होता है। और उसमें चिरंतन मानवता के लिए अभाव -भाव -निधि सन्निहित रहती है ।महाकाव्य एक ऐसे महान कवि कृति है जिसे श्रुति में "कविर्मनीषी परिभूः स्वंभूः "कहा गया। महाकाव्य के रचयिता न केवल युग विशेष का प्रतिनिधि होता है ,अतीत अतीत का गायक ,वर्तमान का चितेरा एवं भविष्य का वक्ता होता है ।उसकी कृति अपने महाकलेवर में शाश्वत मानवीय आदर्शों की विपुल राशि समेटे रहती है और इसलिए महाकाव्य के नाम से अभिहित की जा सकती है ।इस दृश्य से भारतीय वांग्मय अत्यंत संपन्न है और उसमें रामायण ,महाभारत तथा रामचरितमानस जैसे तीन महाकाव्य विद्यमान है. विश्व के किसी भी राष्ट्र में इतनी महत् स्तर की तीन महाकाव्य नहीं है। संस्कृत आचार्यों ने महाकाव्य के जो लक्षण निर्धारित किए हैं ,उनके आधार पर रघुवंश ,कुमारसंभव, किरात,नैषध, शिशुपाल वध आदि अन्य ग्रंथ भी महाकाव्य के गौरवशाली पद पर अभिषिक्त किए जा सकते हैं। जयशंकर प्रसाद द्वारा मंडित कामायनी को भी हिंदी महाकाव्यों की पँक्ति में अत्यंत उच्च स्थान प्राप्त है।
महाकाव्य की दृष्टि से कामायनी का सम्यक् अवलोकन करने पर स्पष्ट हो जाता है कि इस महाकाव्य में पाश्चात्य और भारतीय आदर्शों का अपूर्व समन्वय है। प्राचीन आचार्यों द्वारा निर्दिष्ट महाकाव्य के लक्षण की कसौटी पर इस महाकाव्य का मूल्यांकन नहीं किया जा सकता । इसी प्रकार केवल महाकाव्य दर्शन के आधार इसकी समीक्षा नहीं की जा सकती ।इस संबंध में डॉक्टर गोविंदराम शर्मा का मत है कि कामायनी में कवि ने महाकाव्य की परंपरागत और अनंत नूतन शैलियों के सम्मिश्रण द्वारा एक नवीन महाकाव्य शैली का सृजन किया है। उसमें क्रांतिदर्शी कवि की अंतरभेदनी दृष्टि जिस प्रकार देश काल की सीमाओं का उल्लंघन करके संपूर्ण मानव जीवन को आत्मसात करती है।उसी प्रकार कामायनी का महाकाव्य भी देश विशेष या युग विशेष के निर्दिष्ट लक्षणों का अतिक्रमण करता हुआ विश्वजनीन महाकाव्य की भव्य भूमि पर प्रतिष्ठित दीख पड़ता है।
महाकाव्य की दृष्टि से कामायनी का अध्ययन करने के लिए भामह, दांडी, भोज ,विश्वनाथ जैसे काव्यशास्त्रियों द्वारा वर्णित महाकाव्य के लक्षणों से परिचय प्राप्त करना आवश्यक हो जाता ।महाकाव्य सर्गवद्ध होना चाहिए ।उस में सर्गो की संख्या आठ या उससे अधिक होनी चाहिए ।प्रत्येक वर्ग में एक ही छंद प्रयुक्त होना चाहिए ।सर्ग के अंतिम 2-3 छंद परिवर्तित होने चाहिए और उसमें आगामी कथा सूत्र के संकेत होने चाहिए ।महाकाव्य के आरंभ में मंगलाचरण का विधान होना चाहिए। प्रभात संध्या, सूर्य ,चंद्रमा ,प्रदोष ,रात -दिन ,आखेट ,संग्राम ,यात्रा ,विवाह ,वन, स्वर्ग ,नगर ,पर्वत ,आदि का सांगोपांग प्रदर्शन होना चाहिए। महाकाव्य का कथानक लोक विख्यात, वृहदाकार तथा क्रमबद्ध होना चाहिए। श्रृंगार ,वीर और शांत में से कोई एक रस प्रधान तथा अन्य रस गौड़ होने चाहिए। महाकाव्य का नायक धीरोदात्त गुणों से युक्त होना चाहिए। अर्थ, धर्म ,काम ,मोक्ष में से एक फल की प्राप्ति उसमें होनी चाहिए। नाटकों की सभी संधियां यथासंभव उसमें होनी चाहिए। उसका नाम कवि के नाम से ,चरित्र के नाम से अथवा चरित्र नायक के नाम से होना चाहिए ।महाकाव्य की शैली विस्तारमयी, विविध वर्णनों में समर्थ, गंभीर तथा अलंकर युक्त होनी चाहिए।
उपयुक्त मानदंडों के आधार पर कामायनी की परीक्षा करने पर प्राप्त होता है कि कामायनी का कथानक ऐतिहासिक है। कमायनी का नायक मानव -सृष्टि का आदि पुरुष मनु है। संपूर्ण कथावस्तु की प्रेरक शक्ति श्रद्धा है ,अतएव उसी के नाम पर इस महाकाव्य का नामकरण हुआ है ।कामायनी में श्रृंगार रस की प्रधानता है तथा शांत ,वीर ,करुण ,रौद्र ,वात्सल्य आदि रसों को भी उसमें समाविष्ट किया गया है। कामायनी एक सर्गवद्ध रचना है। उसके सर्गो की संख्या आठ से अधिक है ।प्रत्येक सर्ग का नामकरण वर्ण्य विषय के आधार पर हुआ है। कामायनी के प्रत्येक सर्ग में एक ही शब्द प्रयुक्त है ।प्रत्येक सर्ग के अंत में छंद परिवर्तन के नियम का कहानीकार ने पालन नहीं किया है ।छंद परिवर्तन का प्रयोजन महाकाव्य में रोचकता की सृष्टि करता है ।इसके अभाव में भी कामायनी अत्यंत रोचक और सरस कृति है। अतएव नियम का उल्लंघन नहीं खटकता। कामायनी में नाटक की पांचों सन्धियाँ विद्यमान है ।आशा स्वर्ग से श्रद्धा सर्ग तक मुख संधि ,काम सर्ग से कर्म सर्ग तक प्रतिमुख संधि ,ईर्ष्या सर्ग से इड़ा सर्ग तक गर्भ संधि ,स्वप्न सर्ग से निर्वेद सर्ग तक विमर्श संधि, और दर्शन सर्ग से आनंद सर्ग तक कामायनी में निर्वहन संधि का योजना की गई है ।कामायनी में उषाकाल ,रजनी ,पर्वत ,संध्या, संयोग -वियोग ,युद्ध ,नगर आदि के वर्णन प्राप्त होते हैं। अर्थ, धर्म ,काम और मोक्ष में कामायनी का मुख्य लक्ष्य मोक्ष की प्राप्ति है।मोक्ष का अर्थ इस महाकाव्य में समरसता -जन्य शांति से लिया गया है। इस अवस्था में समस्त द्वैत भाव मिट जाते हैं।
इस प्रकार देखा जा सकता है कि संस्कृत आचार्यों ने महाकाव्य के जो लक्षण निर्दिष्ट किए है,उसमें से अधिकांश कमायनी में उपलब्ध है। परंतु वास्तव में कामायनी का महाकाव्य तो इन परंपरागत लक्षणों के निर्वाह मात्र पर अवलंबित नहीं है। उसमें पाश्चात्य विचारकों के महाकाव्य संबंधी आदर्शों का समायोजन भी हुआ है ।पाश्चात्य विचारकों में महाकाव्य संबंधी दृष्टिकोण का अध्ययन करके प्रोफेसर दीनानाथ शरण ,डॉक्टर उमाकांत एवं डॉक्टर शंभूनाथ सिंह प्रवृत्ति विद्वानों ने महाकाव्य के लक्षण निर्धारित किए हैं ।डॉक्टर शंभूनाथ सिंह के अनुसार महाकाव्य के तत्व इस प्रकार हैःः-
महत् उद्देश्य, महत्ती प्रेरणा और उत्कृष्ट कार्य ः- डॉक्टर शंभूनाथ सिंह के मतानुसार उद्देश्य की महानता की दृष्टि से कामायनी की तुलना रामचरितमानस के अतिरिक्त हिंदी के किसी अन्य महाकाव्य से नहीं की जा सकती ।मानस का उद्देश्य मानव -कल्याण और बुद्धिवाद की मृग मरीचिका में भटके हुए विश्व -मानव की चरम शांति का मार्ग बताना है ।प्रसाद जी ने इस शांति मार्ग का साधन श्रद्धा को बनाया है ।जीवन की सबसे बड़ी विडंबना इच्छा ,क्रिया, ज्ञान की विश्रृंखलता होती है। जब-जब इन तीनों में सामंजस्य का अभाव हुआ है, तब तब जीवन -विकास रूद्धहो गया है तथा सर्वत्र संघर्ष ,उत्पीड़न एवं अशांति का साम्राज्य फैल गया है ।आज का भौतिक जीवन भी इसी अभिशाप से ग्रस्त है ।फलस्वरूप विश्व अशांति की अग्नि में झुलस रहा है ।और दिन- प्रतिदिन निराशा के कगार पर पहुंचता जा रहा है। इस विडंबना को दूर करके अर्थात श्रद्धा द्वारा ज्ञान ,कर्म और भाव का सामंजस्य करके ही मानवता का कल्याण हो सकता है ।इसप्रकार ,कामायनी की लोकमंगल -भावना अत्यंत भव्य और गरिमा मंडित है और अखिल विश्व के कल्याण की भावना उसमें सन्निहित है ।कामायनी का उद्देश्य है मानव को आनंदमय लोक अथवा व्यावहारिक मोक्ष की स्थिति में पहुंचाना।अर्थ, धर्म और काम की सिद्धि भी इसमें विद्यमान है। किंतु मोक्ष प्रधान साधन है ।काम को प्रसाद जी ने मोक्ष प्राप्ति का साधन प्रधान साधन बताया है। समन्वित प्रभाव की दृष्टि से कामायनी का फल मोक्ष प्राप्ति ही है ।
कामायनी महाकाव्य में कवि ने जिस महत् उद्देश्य की आयोजना की है उसकी प्रेरणा हमें भारतीय संस्कृत की उदार ,व्यापक कल्याणी और समन्वयवादी दृष्टि से मिली है ।इसलिए इस महाकाव्य में भौतिक और आध्यात्मिक ,यथार्थ और आदर्श तथा प्राचीन और नवीन का मणिकांचन सहयोग हुआ है। यह समन्वयवाद कामायनी का प्रेरणास्रोत है और भारतीय संस्कृत के मानववादी विचारों से अनुप्राणित है।
कामायनीकार को अपने महत्त् उदेश्य के लिए अत्यंत महत्त् उद्गम स्थल से प्रेरणा प्राप्त हुई है। इसके साथ ही उनकी काव्य- प्रतिभा भी असाधारण रूप से उत्कृष्ट कोटि की है ।एक क्रांतिदर्शी कवि की भान्ति उन्होंने मानव जीवन का आमूल अध्ययन कर मानव- मन की अतल गहराइयों में प्रविष्ट होकर" कामायनी का प्रणयन' किया है। इसमें संदेह नहीं है कि महत् प्रेरणा और उत्कृष्ट काव्य प्रतिभा की दृष्टि से कामायनी एक उच्च कोटि का महाकाव्य है।
2. गुरुत्व ,गाम्भीर्य और महत्वः- डॉक्टर शंभूनाथ सिंह के शब्दों में" कामायनी में कवि की प्रतिभा, प्रेरणा और उद्देश्य की जो महानता दिखाई पड़ती है उसी के फलस्वरूप उसमें वह गुरुत्व, गाम्भीर्य और महत्त्व भी आ सका है जिसके कारण ही कोई काव्य महाकाव्य कहलाता है और युग-युग के लिए साहित्य की अमर संपत्ति और जातियों या राष्ट्रों का गौरव बन जाता है ।"कमायनी के गुरुत्व ,गाम्भीर्य और महत्व का कारण उसका सुदृढ़ दार्शनिक और मनोवैज्ञानिक आधार है। कामायनी में दर्शन तत्वों का निरूपण होने के कारण डॉ नगेंद्र ने अपने 'साकेत एक अध्ययन 'में उसे' मनोविज्ञान का ट्रीटाइज ' कहां है किंतु ऐसा कहना अनुचित है ।कामायनी में प्रतिभिज्ञा दर्शन के मूलतत्वों को ग्रहण अवश्य किया गया है ।किंतु दर्शन को उन्होंने काव्यात्मकता के रंग में रंग दिया है। दर्शन की शुष्क सैद्धांतिक विवेचना के स्थान पर कामायनी में दार्शनिक विचारों की सरसता और मोहकता दृष्टिगत होती है ।प्रसाद जी ने दर्शन को श्रेय से प्रेय बनाकर उपस्थित किया है ।प्
प्रत्यभिज्ञा दर्शन से पूर्णतः अपरिचित पाठक भी कामायनी का आस्वादन करने में समर्थ है। हां, इतना अवश्य है कि उनका मानसिक धरातल सामान्य स्तर से ऊंचा होना चाहिए ।यदि पाठक कोरे मनोरंजन के उद्देश्य को ध्यान में रखकर कामायनी के अध्ययन करेगा, तो उसे निराशा मिलेगी । किंतु यदि उसका बौद्धिक और सांस्कृतिक स्तर ऊंचा होगा तो निश्चय ही उसे कामायनी के अध्ययन से अपूर्व आनंद मिलेगा ।कामायनी अपने गुरुत्व, गाम्भीर्य और महत्व के कारण सामान्य स्तर और कोरे मनोरंजन के अभिलाषी पाठक के लिए भले ही महत्वहीन हो ,किंतु इतना तो स्वीकार किया ही जा सकता है कि दार्शनिक पक्ष की गुरुता, गंभीरता और सशक्तता के कारण इसमें गुरुत्व की स्वभाविक प्रतिष्ठा हो गई है , "कामायनी का महाकाव्य तो इसी में है कि वह मनुष्य के संपूर्ण जीवन, वैयक्तिक ,पारिवारिक और सामाजिक का संपूर्ण सौंदर्य ,भौतिक एवं आध्यात्मिक एवं एक कलापूर्ण और मनोहर ढंग से व्यक्त करने में सफल हुआ है। वह अलिफ लैला की भांति केवल कहानी सुनाने के लिए नहीं लिखा गया है।
3. महत् कार्य और युग जीवन का समग्र चित्रः कामायनी महाकाव्य का एक सम्यक अवलोकन करने से प्रकट होता है कि कामायनी का कार्य सुख दुख से परे समरसता की स्थिति को प्राप्त कर चिदानंद लाभ प्राप्त करना है ।कामायनी के नायक मनु का अलौकिक दृश्य से अभ्युदय नहीं प्रदर्शित हुआ है ।सारस्वत प्रदेश में भौतिक समृद्धि की उन्नति का परिणाम उसकी स्वेच्छाचारिता होती है और इसके परिणामस्वरूप उसका पराभव होता है । लौकिक दृश्य से असफल हो जाने के उपरांत वे श्रद्धा के पथ - प्रदर्शन में निःश्रेयस के पथ -पथिक बनते हैं और चिदानंद में लीन हो जाते हैं ।प्रसाद जी ने इस आनंद को वैयक्तिक नहीं सामाजिक भी बना दिया है ।कामायनी में उन्होंने बताया है कि इच्छा, क्रिया और ज्ञान के समन्वय से समाज में असीम आनंद का साम्राज्य छा जाएगा। और समस्त विरोधों और संघर्षों की समाप्ति हो जाएगी ।डॉक्टर शंभूनाथ सिंह के अनुसार "यह कल्पना तुलसी के रामराज्य की कल्पना के समान ही विराट और सर्वकल्याणनिवेशी है ।अतः जिसतरह रामराज्य की स्थापना ही मानस का महत् कार्य है उसी तरह कमायनी का उद्देश्य महत् आनंदराज्य स्थापना है।"
कामायनी में युग- जीवन का समग्र चित्रण होना वांछनीय माना गया है ।इस दृश्य से कामायनी का अध्ययन करने पर पता चलता है कि रूपक, कथानक और प्रतीकात्मक शैली का महाकाव्य होने के कारण उसमें रामायण ,महाभारत और रामचरितमानस के समान जीवन और जगत का सर्वतोमुखी चित्रण नहीं हुआ है। कामायनी घटनाप्रधान काव्य नहीं है ,वह भावप्रधान महाकाव्य है ।उसमें घटना वैविध्य के स्थान पर मानव हृदय के विविध भावों के माध्यम से युग जीवन का समग्र चित्र प्रस्तुत किया गया है ।किंतु फिर भी ऐसा नहीं है कि कामायनी में वस्तु वर्णन का बिल्कुल अभाव हो ।कामायनी में नगर ,समुद्र ,पर्वत, सूर्य, चंद्र ,रात्रि ,उषा ,संध्या , यात्रा तथा संयोग श्रृंगार को का विशद् चित्रण हुआ है ।हिमालय पर्वत को कवि ने विश्व कल्पना सा ऊंचा बताया है और उसका चित्र इस प्रकार किया हैः-
‘’ अचल हिमालय का शोभनतम
लता कलित शुचि शानु शरीर।“
कामायनी के स्वप्न और संघर्ष सर्ग में नगर का वर्णन हुआ है ।संघर्ष सर्ग में मनु और प्रजा का संघर्ष दिखाया गया है। श्रृंगार के संयोग -वियोग पक्षों का भी इसमें सजीव चित्रण हुआ है ।लज्जा, ईर्ष्या ,चिंता ,आशा आदि भावों के भी कामायनी में सुंदर ,सजीव और स्वभाविक चित्र मिलते हैं। इसप्रकार, महाकाव्य की समग्र जीवन के चित्रण की कसौटी पर भी कहा जा सकता है कामायनी इस प्रकार कामायनी खरी उतरती है।
4. सुसंगठित और जीवंत कथानकः- डॉ नगेंद्र के शब्दों में महाकाव्य के कथानक का निर्माण ऐसी घटनाओं से होता है जिनका प्रभाव प्रबल और स्थाई हो और देश तथा काल दोनों में जिसका विस्तार हो ।इसके साथ ही उद्धात कथानक के लिए यह भी आवश्यक है कि उसका स्वरूप प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप में ध्वन्सात्मक न होकर रचनात्मक हो ।उसकी परिणति शुभ और मंगलमयी हो ।इस दृष्टि से कामायनी के कथानक का अध्ययन करने पर प्रकट होता है कि घटनाएं अत्यंत उदार एवं महान है। किंतु उनका क्षेत्र मानव- चेतना होने के कारण उनकी महानता भी अध्यात्मिक ही है। इन घटनाओं का अध्ययन इस प्रकार भी किया जा सकता है' स्वार्थ मंडित अहंकार का पतन ,पुरुष और नारी का मिलन एवं परस्पर आकर्षण, नारी को सर्वस्व समर्पण ,नर -नारी के संघर्ष से संसृति का विकास, पुरुष की निर्बाध अधिकार की कामना, अतृप्त कामवासना एवं बुद्धि पर एकाधिपत्य स्थापित करने का प्रयास, परिणामस्वरूप मानव चेतना की विफलता ,अंत में ,समरसताजन्य पूर्ण आनंद की प्राप्ति ।इन घटनाओं की उदातता में किसी प्रकार का संदेह नहीं किया जा सकता। किंतु साथ ही यह महानता अध्यात्मिक मानी जाएगी ।मगर यह भी स्पष्ट है कि कामायनी की घटनाएं भौतिक जगत की सघनता से नितांत शून्य नहीं है। देवसृष्टि के दंभ और विलासातिरेक के परिणामस्वरुप उनका विध्वंस और मनु का सारस्वत प्रदेश की भौतिक उन्नति के अनंतर प्रजा के साथ संघर्ष इसप्रकार की घटनाएं हैं। फिर भी कामायनी के कथानक की भव्यता मानव- चेतना के इतिहास के परिपेक्ष में अधिक है ,इसमें संदेह नहीं ।डॉ नगेंद्र के शब्दों में हम कामायनी के कथानक की उदात्तता इस प्रकार देख सकते हैं कि "सामाजिक रूप से विचार करने पर भी कामायनी के कथानक में अपूर्व आयाम है। वह केवल एक महापुरुष की जीवन गाथा नहीं है ।एक राजवंश का वर्णनमात्र नहीं है ,एक युग या राष्ट्र की कथा नहीं है ,वह तो संपूर्ण मानवता के विकास की गाथा है- अथ से इति तक। अन्य महाकाव्य जहां मानव सभ्यता के खंडचित्र प्रस्तुत कर रह जाते हैं वहां कामायनीकार ने उसका समग्र चित्र प्रस्तुत करने का साहसपूर्ण प्रयास किया है ।"
5.महच्चरित्रः- कामायनी चरित्र- प्रधान और कोरा आदर्शवादी महाकाव्य नहीं है। उसमें आदर्श और यथार्थ का समन्वय हैं। इन दोनों के अतिवादी स्वरूप को त्याग कर समन्वय मार्ग को अपनाते हुए उन्होंने कामायनी के पात्रों की चरित्र सृष्टि की है ।भारतीय काव्यशास्त्रो के अनुसार महाकाव्य के नायक को धीरोदात्त गुणों से युक्त होना चाहिए ।कामायनी के नायक मनु इस कसौटी पर खरे नहीं उतरते ।धीरोदात्त नायक को नैतिक, सामाजिक और धार्मिक आदर्शों का प्रतिरूप होना चाहिए और उसके चरित्र में किसी प्रकार की दुर्बलता नहीं होनी चाहिए ।किंतु ऐसा मनुष्य हमें इस संसार में नहीं मिल सकता। जिस व्यक्ति के चरित्र में उतार-चढ़ाव नहीं है ,जो मानव सुलभ दुर्बलताओ से ग्रस्त नहीं है वह या तो देवता है ,या निर्जीव कठपुतली ।इसप्रकार के व्यक्ति को प्रसाद ने कामायनी का नायक नहीं बनाया । मनु एक ऐसे चरित्र हैं जो मानव जनोचित दुर्बलताओं से ग्रस्त हैं, उनसे मुक्ति पाने के लिए बार-बार प्रयत्नरत्त होते हैं, गिरते हैं और फिर उठते हैं तथा अंत में अपने लक्ष्य को प्राप्त करते हैं। आज के युग में ऐसे ही चरित्र को उदात्त और महान कहा जाएगा , और माना भी जाएगा। कामायनी में मनुष्य को प्रसाद ने न तो देवत्व पद प्रदान किया है और ना उसे पशु के रूप में प्रस्तुत किया है। कामायनी की पात्र मनुष्य हीं है, ऐसे मनुष्य जो अपनी दुर्बलताओं से ऊपर उठते हैं और नीचे से ऊपर की ओर अग्रसर होते हैं। प्राचीनकाल से यह धारणा प्रचलित थी कि आदर्श चरित्र ही महान होते हैं और आज यह धारणा अस्वीकृत हो चुकी है । आज उसे ही महान माना जाता है जो बार -बार गिरकर भी ऊपर उठता है, दुर्बलताओं से ग्रस्त होने पर भी उनसे छुटकारा पाता है ।यह महाकाव्योचित गरिमा कामायनी के मनु के चरित्र में है।
कामायनी में श्रद्धा का चरित्र अत्यंत भव्य गौरवमयी और उदात्त चित्रित किया गया है ।वह हृदय की कोमल वृत्तियों प्रतीक है । अतएव मनु की भांति उसका व्यक्तित्व विकास की अपेक्षा नहीं रखता ।मनु मानव चेतना के प्रतीक है , उसकी निम्रत्तर और उच्चतर दोनों वृत्तियाँ उनमें समाविष्ट है ।किंतु ,श्रद्धा उच्चतर प्रवृत्तियों की प्रतीक है ।वह मानव चेतना को पूर्ण आनंद की प्राप्ति में सहायता देती है। उसके चरित्र में दया, माया, ममता ,मधुरिमा और अगाध विश्वास जैसे गुण अपने आप आ गए हैं। उसका व्यक्तित्व अत्यंत उज्जवल एवं गरिमामंडित है।
कामायनी में तीसरा महत्वपूर्ण चरित्र इडा़ का है। वह अपने प्रतीकात्मक अर्थ को ही अधिक स्पष्ट करती है इसलिए उसके व्यक्तित्व की रेखाएं दृढ़ और मूर्ति साधन नहीं बन पाई है ।फिर भी वे पर्याप्त स्पष्ट हैं। उसका चरित्र भी मनु की तरह विकासशील है। प्रारंभ में वह आधुनिक युग की विदुषी, समाजनेत्री के रूप में और कालांतर में 'गैरिक- वसना संध्या से जिसके चुप थे सब कलरव ' के रूप में हमारे समक्ष उपस्थित होती है।
कामायनी के तीनों प्रमुख पात्रों में सर्वप्रधान स्थान श्रद्धा का है ।श्रद्धा के गौरवमय स्वरूप के कारण यह महाकाव्य भी गौरवान्वित हो उठा है ।आचार्य नंददुलारे वाजपेई के अनुसार-" कामायनी या श्रद्धा का चरित्र अपने आदर्शात्मक विशेषता के कारण काव्य का सर्वप्रमुख चरित्र है। कामायनी को नायिका प्रधान काव्य कहा जा सकता है।
6.गरिमामय उद्दात्त शैलीः- डॉक्टर शंभू नाथ सिंह के शब्दों में अधिक केवल शैली की पूर्णता को ध्यान में रखकर निर्णय देना हो तो बिना हिचक के कहा जा सकता है कि कामायनी हिंदी का सर्वश्रेष्ठ अलंकृत महाकाव्य है कमाने की शैली विधान की सामान्य विशेषताओं का डॉक्टर नगेंद्र ने इस प्रकार विवेचन किया है कि कामायनी में अद्भुत ईश्वर यमक अलंकार विलास है लक्षणा व्यंजना का विचित्र चमत्कार है कल्पना तथा भावना के पूर्वजों के कारण इस शैली में मूर्ति विधान एवं विमा योजना की अद्भुत समृद्धि मिलती है कामायनी की भाषा सर्वत्र ही चित्र भाषा एवं प्रतीक भाषा है जिसमें तत्सम तथा सचित्र संदर्भ शब्दावली का प्रयोग हुआ है भाषा और अभिव्यंजना के इस असाधारण गुरु के फलस्वरूप कामायनी की शैली सामान्य से सर्वथा भिन्न हो गई है।
कमानी में अनेक शैलियों का सुंदर समन्वय हुआ है रूपक कथा त्मक शैली पर गीत सैनी मनोवैज्ञानिक शैली क्लासिकल सहेली भावनात्मक शैली चित्रात्मक शैली आदि जिस सैनिकों की दृष्टि से इसे देखा जाए रखकर पाठक का म कामायनी का अध्ययन करेगा उसे या उसी शैली का महाकाव्य दिखाई पड़ेगा कमाने की शैली में महाकाव्य उचित गुर्दा और गरिमा के होते हुए भी कोमलता और सूक्ष्मता है इस महाकाव्य के शैली विधान की विशेषता यह है कि यह विराट होते हुए भी कोमल है स्कूल होते हुए भी सक्षम है कमानी छायावादी काव्य धारा के महाकाव्य है और इसीलिए उसमें छायावादी अभिव्यंजना शैली का आदि से अंत तक निर्वाह हुआ है ध्वन्यात्मक था लाक्षणिक का प्रतीकात्मक का आदि छायावादी अभिव्यंजना सैनी के गुण कामायनी में अवश्य पर लक्षित होते हैं निसंदेह कामायनी की शैली अत्यंत भव्य उदास और गरिमामंडित है।
7. तीव्र प्रभावान्विति और गंभीर रसवत्ताः-प्रभावान्विति का अभिप्राय समग्र प्रभाव की पुष्टि प्रदा से है जो मन को झकझोर देती है और नायक के प्रति सहानुभूति उत्पन्न करके दुख के कारणों के उन्मूलन पर मनन करने के लिए बाध्य करती है यह प्रवृत्ति पाश्चात्य महाकाव्यों में परिलक्षित होती है प्रवक्ता का अभिप्राय रसात्मक तासे है यदि महाकाव्य का कथानक पश्चात झुमका है तो उसमें शुभ प्रभाव आने हुई थी होगी और यदि भारतीय ढंग का है तो उसमें गंभीर प्रश्न पत्र प्राप्त होगी कामायनी की कथानक पर विचार करने से पता चलता है कि वह भारतीय और पाश्चात्य दोनों आदर्शों के समन्वय से निर्मित हुआ है कामायनी का परिवहन यद्यपि आनंद की पृष्ठभूमि में होता है किन्तु संपूर्ण महाकाव्य में विरोध वेदना और सुख की प्रधानता है कमाने की समाप्ति यदि निर्वेद शरीर के मध्य में हो जाती जहां पर विरोध और संघर्ष का परिणाम सुख और दुख और सुख होता है तो निश्चय ही उस में उत्कृष्ट कोटि के प्रभाव और नीति कही जा सकती थी किंतु कथा आगे बढ़ती है और अंत में आनंद सर्ग में पहुंचकर शांत रस में कथा का परिवहन होता है यही कामायनी की विशेषता है इसमें दुखों की अधिकता दिखाकर उसके बीच से आनंद का उद्भव प्रदर्शित किया गया है यदि प्रसाद का जीवन दर्शन है जिसे उन्होंने श्रद्धा के माध्यम से व्यक्त किया है।
भारतीय काव्य में आदर्शवाद की योजना होने के कारण सुख का अधिक दिखाया जाता है और पाश्चात्य काव्य में यथार्थवाद का अंचल थामने के कारण दुख का दर्शन कराया जाता है प्रसाद जी ने सुख दुख में समरसता का अनुभव करने को सच्चे आनंद का कारण बताया है सुख-दुख की आंख मिचौली चलती रहती है जब दुख आदित्य आदित्य होता है तो सहरसा आनंद का उदय हो जाता है इस प्रकार यह स्पष्ट हो जाता है कि कामायनी में जितनी प्रभावाम विधि है उतना ही रस वक्ता का सुंदर समन्वय इस महाकाव्य में है।
8.जीवनी शक्ति और सशक्त प्राणवत्ताः- जिस महाकाव्य में जितनी अधिक जीवनी शक्ति होती है वह उतना अधिक देश और काल के देव दानों को तोड़कर जीवित रहता है और कवि की कृति कॉमेडी का दिग दिगंत प्रसार करता है इस दृष्टि से कामायनी की जीवनी शक्ति अब छोड़ कही जा सकती है यह महाकाव्य सन 1935 में प्रकाशित हुआ परंतु इसकी ख्याति इतनी बड़ी कि राष्ट्र की शिक्षा संस्कृति परिषद द्वारा रामचरितमानस के साथ उसका भी संसार के विविध भाषाओं में अनुवाद कराया गया अनेक विद्वानों का मत है कि मानस के पश्चात कामायनी ही हिंदी का सर्वाधिक गौरवशाली महाकाव्य है।
कामायनी में सशक्त प्राण वक्ता भी पूर्णरूपेण विद्यमान है कामायनी में जिस आदर्श का विवेचन हुआ है वह केवल भारतवर्ष के लिए ही महत्व नहीं रखता अतीत संपूर्ण विश्व के लिए भी उसकी उपादेयता है आज संपूर्ण विश्व बुद्धि बाद और भौतिकवाद के अतिरिक्त के कारण विनाश के कगार पर पहुंच चुका है बुद्धि वाद के कारण भौतिक समृद्धि तो मिली है किंतु सच्चा आनंद नहीं मिला है हृदय हृदय के बीच दूरी बढ़ गई है संघर्ष विपलों और रक्तपात में उत्तरोत्तर वृद्धि होती जा रही है और दुख सुख सागर में डूबते हुए मानव को अपनी रक्षा के लिए कोई सहारा नहीं मिल पा रहा है ऐसे समय में प्रसाद जी ने उसे आशा जनक संदेश दिया है संध्या अध्यात्मिक विकास ही वह दूर है जिसके सहारे आज का मानव दुख सागर से बाहर निकल सकता है इस प्रकार कामायनी में वर्णित संदेश केवल भारत के लिए ना होकर सार्वजनिक और सर्वकालिक है कामायनी में विश्व कल्याण की अत्यंत सशक्त प्राण बता विद्यमान है।
उपयुक्त विवेचन के आधार पर कहा जा सकता है कि महाकाव्य तो की कसौटी पर प्रसाद जी ने कामायनी अत्यंत खरी उतरती है प्राचीन आचार्यों द्वारा प्रतिपादित सभी शास्त्रीय लक्षण उसमें भले ही हूं बहू ना पाए जाए किंतु उसके महाकाव्य तो अपन किसी प्रकार का संदेह नहीं किया जा सकता विद्यमान विभिन्न विद्वानों ने इस मत से इसके महाकाव्य त्व को स्वीकार किया है आचार्य नंददुलारे वाजपेई के शब्दों में परंपरागत महाकाव्य के लक्षणों की पूर्ति न करने पर भी कामायनी को नए युग का प्रतिनिधि महाकाव्य करने में हमें कोई हिचक नहीं होनी चाहिए महादेवी वर्मा का मत है कि प्रसाद की कामायनी महाकाव्य के इतिहास में एक नया अध्याय एक नए युग को जोड़ती है क्योंकि वहां ऐसा महाकाव्य है जो ऐतिहासिक धरातल पर भी प्रतिष्ठित है और सांस्कृतिक अर्थ में मानव विकास का रूपक भी कहा जा सकता है डॉक्टर शंभू नाथ सिंह लिखते हैं कि कमानी आधुनिक हिंदी साहित्य का ऐसा ही अमर महाकाव्य है जिसमें आम जीवन की प्रवृत्तियों और विशेषताओं का पूर्ण प्रतियोगिता हुआ है और इस जो अनेक दृष्टिकोण से हिंदी के ही नहीं अपने युग के पूर्वर्ती समस्त भारतीय महाकाव्य से भिन्न एक निराली स्थान का अधिकारी है डॉक्टर गोविंद शरण शर्मा का कीमत है के रामचरितमानस के पश्चात मानव जीवन का सर्वाधिक संपन्न चित्र प्रस्तुत करने वाला हमारा काव्य हिंदी साहित्य में कामायनी ही है एक दक्षिणी हिंदी प्रांत के साहित्यकार वाराणसी राममूर्ति रेणु ने लिखा है कि कविवर प्रसाद का महाकाव्य कामायनी की रचना विश्व सदी के भारतीय साहित्य जगत की एक अनुपम घटना है जहां तक मुझे ज्ञात है किसी भी आधुनिक भाषा साहित्य में इसके टक्कर का कोई महाकाव्य संभवतः नहीं है प्रसाद की अमर वाणी का सहारा पाकर हिंदी साहित्य अमर हो गया है।
डॉ नगेंद्र का हिम्मत है कि कामायनी का महाकाव्य तो और संदिग्ध है परंपरा का नितांत निर्वाह प्रसाद जी के स्वभाव के विपरीत है अतः कामायनी में भारतीय और पाश्चात्य काव्यशास्त्र दोनों में से किसी एक के लक्षणों का भी फुल निर्वाह खोजना व्यर्थ होगा फिर भी महाकाव्य के प्राय सभी महत्व तत्व कामायनी में विद्यमान है पंडित विनोद शंकर व्यास ने भी लिखा है कि रामचरितमानस के बाद यही एक ऐसा महाकाव्य है जो हिंदी को विश्व साहित्य में स्थान दिला सकता है घूमर मिल्टन बाल्मीकि और कालिदास से तुलना करके भी इसका गुण दोष देखा जाए इसकी जोगिता इस कलाकृति में है।
इस प्रकार जयशंकर प्रसाद द्वारा प्रणीत कामायनी आधुनिक युग का सर्वोत्कृष्ट महाकाव्य है क्या कथा में क्या चरित्र चित्रण क्या शैली क्या उद्देश्य और क्या कार्य सभी दृष्टिकोण से इसमें गरिमा वैभव और उदारता है कामायनी में पूर्वर्ती महाकाव्यों की भात कथावस्तु घटना प्रधान नहीं है और इसलिए कुछ आलोचक इसे प्रबंध तत्व पर आपत्ति उठाते हैं। किंतु इस संबंध में यही कहना है कि कामायनी हिंदी का वस्तु प्रधान महाकाव्य न होकर भाव प्रधान महाकाव्य है, वस्त्तु विन्यास और घटना वैविध्य में कवि की रुचि नहीं रहे। उन्हें तो मानव मन की अतल गहराइयों में प्रविष्ट होकर भावरत्नों को बाहर निकालना अधिक अधिक श्रेय था और अधिक प्रिय था। कामायनी का महाकाव्यत्व प्राचीन परंपरा की एक कड़ी के रूप में हमें देखना चाहिए। कामायनी एक अभिनव दिशा की ओर संकेत करती है।इसमें कवि ने जिन सास्वत आदर्शों की अभिव्यंजना की है वे युगो-युगो तक प्रकाश स्तंभ की भांति मानव समाज का पथ प्रदर्शन करती रहेगी।
Comments
Post a Comment