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Showing posts from June, 2016

सामान्य ज्ञान

हल्दी का पीलापन  करक्युमिन के कारण होता है . मिर्च का तीखापन कैपसेसिन के कारण होता है . 10मई 2009  को सुचना का आधिकार अधिनियम पारित हुआ था . चाय का रंग टैनिन के कारण होता है . हिप्पोक्रेटस् को मानव  चिकित्सा   विज्ञान का जनक  कहा जाता है . अक्ल दांते (wisdom teeth)मोलर(molar teeth) होती है . इनैमल शरीर का सबसे मजबुत अंग होता है .आर्थोपोडा प्राणी जगत का सबसे बड़ा संघ है .सैक्लोस्तोमैता वर्ग सबसे प्राचीन वर्टिब्रेट समूह है अनावश्यक पदार्थों के विघटन के कारण लाइसोसोम को आत्महत्या की थैली कहते  है. गौल्जीकाय कोशिका के भीतर और बाहर पदार्थो को भेजने का कार्य करता है .श्वसन एक उपापचयी क्रिया होती है जिससे शरीर का भार कम होता है .श्वसन की क्रिया माइत्रोकोन्द्रिया में होता है .थिओफ़्रेतस ने सर्वप्रथम लाईकेन(Liken) शब्द का इस्तेमाल किया था . अल्कोहल उद्योग मे अधिकांशतः यीस्ट(yeast) का प्रयोग होता है . कंप्यूटर से संप्रेषित सभी डाटा सीधे रैम में ही जाते है,जहां से आवश्यकतानुसार अन्य जगह भेजे जाते है.</li> क्षेत्रीय भाषा मे कंप्यूटर व्यवस्था को विकसित करने के लिए भारत भाषा

भूगोल भाग - 1

शीतोष्ण कटिबंधीय घास के मैदानों में कैल्सिकेरल ,सहित एवं आर्द्र प्रदेशों में पौद्जोलीकरण,टुन्ड्रा प्रदेश में ग्लेकरण ,तथा मरुस्थली प्रदेश में लावानिकरण की प्रक्रिया महत्वपूर्ण होती है .चुना-पत्थर वाले प्रदेश में पौडजोल मिटटी पाई जाती है'. *उष्ण कटिबंधीय सवाना पठारी भागों में लाल मिटटी पाई जाती है . *लेटराइट मिटटी विषुवतीय प्रदेशों एवं सवाना क्षेत्रो में पाई जाती है. *प्रेयरी मिटटी अमेरिका में पाई जाती है .यह विश्व की सर्वाधिक उपजाऊ मिटटी मानी जाती है .अमेरिका में मक्का मी पेटी इसी मृदा प्रदेश में स्थित है . *चेर्नोजेम मिटटी शीतोष्ण प्रदेश की मिटटी है . *परिस्तिकी तंत्र शब्द का प्रथम प्रयोग ए जी टान्सले  ने किया था. *ग्रीनहाउस प्रभाव के लिए सबसे उतरदायी गैस कार्बन डाई ऑक्साईड गैस है . वर्त्तमान समय में अमेरिका  कार्बन डाई ऑक्साईड गैस का उत्सर्जन करनेवाला सबसे बड़ा देश है . *ओजोन छिद्र का पता सर्वप्रथम 1985 ई. अंटार्काटिका के ऊपर फरमान द्वारा लगाया गया . *कार्बन मोनो ऑक्साइड वायु प्रदुषण के लिए सबसे ज्यादा उतरदायी है. *पर्यावरण संरक्षण के लिए सर्वप्रथम स्टॉकहोम में

इतिहास के स्मरणीय तथ्य

1.आदमगढ़ (मध्यप्रदेश)और बगौर से पशुपालन का प्राचीनतम साक्ष्य 5000ई. पूर्व में प्राप्त हुआ था . 2.भीमबेटका मे पुरापाषाणकाल,मध्यपाषाणकाल और नवपाषाणकाल के चित्र प्राप्त हुए है . 3.मिर्जापुर (बेलानघाटी ) तथा विन्ध्य पर्वत के उत्तरी छोर पर पुरापाषाणकाल की तीनों अवस्थायें मिली है . 4.भारत में केवल चिरांद से हड्डियों के औजार मिले है.ये औजार हिरण के हड्डियों से बने है. 5.बुर्जहोम (कश्मीर )की कब्रों में पालतू कुत्ते अपने मालिक के शवों के साथ दफनाए हुए मिलते है . 6.महाराष्ट्र में लोग मृतक को कलश में रखकर अपने घर में फर्श के अन्दर उत्तर -दक्षिण दिशा में गाड़ते थे .कब्र में मिट्टीकी हंडियांऔर ताम्बे की कुछ वस्तुएं भी रखी जाती थी ,जो परलोक में मृतक के इस्तेमाल के लिए रखी जाती थी . 7.गणेश्वर (राजस्थान )से मिली कुछ ताम्बे की वस्तुएं सिन्धु स्थल से मिले वस्तुयों की आकृतियों से मिलती-जुलती  है .गणेश्वर मुख्यतः हड़प्पा को ताम्बे की वस्तुयों की आपूर्ति करता था .गणेश्वर को ताम्र नगरी भी कहा जाता है . 8.चित्रित मृदभांडों के प्रथम प्रयोगकर्ता ताम्रपाषाणकालीन लोग थे .सर्वप्रथम ताम्रपाषाण जनों ने

हड़प्पा कालीन धर्म और समाज

हड़प्पाकालीन समाज के शीर्ष पर तीन प्रकार के लोगों की अदृश्य श्रेणियाँ विद्यमान थी - शासक,व्यापारी तथा पुरोहित।पुरावशेषों और उपकरणों के आधार पर सैंधव समाज को कई श्रेणियों में बांटा जा सकता है।रक्षा प्राचीर से घिरे हुए विशिष्ट सुविधाओं से युक्त हड़प्पा,मोहनजोदड़ो एवं कालीबंगन आदि के दुर्ग क्षेत्र में निःसंदेह विशेषाधिकारों से सम्पन्न व्यक्तियों अथवा शासकवर्ग के लोगों के निवास से संबंधित रहे होगें।नगर क्षेत्र में व्यापारी,अधिकारी,सैनिक एवं शिल्पी रहते थे।मोहनजोदड़ो एवं हड़प्पा की खुदाइयों में मिले आमने -सामने के दो कमरोवाले मकानों का उपयोग समाज के गरीब लोग करते थे,जो भारत के आधुनिक शहरों के कुलियों से प्रायः मिलते -जुलते थे।इसी साक्ष्य के आधार पर इतिहासकार सिंधु सभ्यता में दासप्रथा के प्रचलित होने की ओर संकेत करते है। नृतात्विक दृष्टि से हड़प्पाई लोग चार वर्गों में विभाजित किये जा सकते है - आद्य ऑस्ट्रेलियाई,भूमध्यसागरीय,अल्पाइन और मंगोलाभ।सिंध और पंजाब के निवासी भोजन के रूप में गेहूँ और जौ खाते थे।रंगपुर और सुरकोतड़ा के निवासी चावल और बाजरा खाना पसंद करते थे।वे तेल और चर्बी तिल,सरसो तथा संभव

हड़प्पाई लोगों की आर्थिक गतिविधियाँ

हड़प्पाकालीन संस्कृति मूलतः शहरी संस्कृति थी।हड़प्पा और मोहनजोदड़ो जैसे शहरों के अतिरिक्त अल्लाहदिनों जैसी बहुत सी छोटी बस्तियों से भी ऐसे प्रमाण मिले है जो शहरी अर्थव्यवस्था के सूचक थे।हड़प्पन लोग वाणिज्य-व्यापार के साथ-साथ कृषिकार्य भी बखुबी किया करते थे।हड़प्पा,बहावलपुर और मोहनजोदड़ो वाला भु-भाग सभ्यता का मूल क्षेत्र था।इसके अतिरिक्त अफगानिस्तान के शोतुर्घई और गुजरात के भगत्रव जैसे दूर-दूर फैले हुए क्षेत्र में हड़प्पा सभ्यता के लोगों की बस्तियाँ होने का मूल कारण संसाधनों की प्राप्ति है।इन संसाधनों में खाद्य-सामग्री,खनिज एवं लकड़ी प्रमुख है।धातुओं में सोना,चाँदी,टिन,सीसा और ताँबा ज्ञात थे।इस संस्कृति में सिक्के का प्रचलन नहीं था;व्यापार वस्तु-विनिमय प्रणाली पर आधारित था।यातायात के साधनों में भैसागाड़ी,बैलगाड़ी,हाथियों,पहाड़ी क्षेत्रों में खच्चरों और मस्तुलवाली नावों का प्रयोग होता था।भगत्रव,लोथल,बलूचिस्तान क्षेत्र में तीन स्थान - दाश्क नदी के मुहाने पर स्थित सुतकांगेडोर,शादीकौर नदी के मुहाने पर स्थित सोत्काकोह एवं सोन मियामी खाड़ी के पूर्व में विंदार नदी के मुहाने पर स्थित बालाकोट बंदरगाह नगर क

भक्ति आंदोलन

* भक्ति आन्दोलन में अधिकत्तर  सभी संतों ने एकेश्वरवाद का प्राचर किया था * निम्बार्क को सुदर्शन चक्र का अवतार मन जाता है.इन्होनें सनक संप्रदाय की स्थापना की थी * माधवाचार्य ' आनंदतीर्थ ' और 'पूर्णप्रज्ञ ' नाम से प्रसिद्द हुए थे .इनका द्वैतवाद भागवत पुराण पर आधारित था .इनके द्वारा प्रचलित संप्रदाय को 'व्रह्म ' या 'स्वतंत्रतास्वतन्त्रवाद ' कहा जाता था . *रामानंद ने रामभक्ति के प्रचार के लिए उत्साही विरक्त दल का गठन किया था ,जो वैरागी के  नाम से विख्यात थे . *रामानंद प्रथम वैष्णव संत थे ,जिन्होनें होंदी भाषा के माध्यम से अपने विचारों को जनता तक पहुचाया . *पीर सदरुद्दीन ने भारत आकर खोजाह संप्रदाय का प्रचार किया था . *शिया सप्रदाय के धर्मगुरु बोहरा शाखा ने गुजरात में अपना दर्म प्रचार किया था. *मुहम्मद साहब कुरेश काबिले से सम्बंधित थे,उन्होंने अपना प्रथम उपदेश अपनी पत्नी खदीजा को दिया था.मुहम्मद साहब ने 622 ई. में मक्का से मदीना की ओर प्रस्थान किया था और यहीं से हिजरी संवत का प्रारंभ हुआ था . *शिया संप्रदाय 12 इमामों में विश्वास करता है,जिसके अ

वस्तुनिष्ठ इतिहास भाग- 2

1.कुम्भकारी का सर्वप्रथम साक्ष्य किस काल में दिखाई देता है? ( क) पुरापाषाण काल             (ख) नवपाषाण काल ( ग) मध्यपाषाण काल।          (घ) ताम्रपाषाण काल 2.निम्नलिखित में से किस स्थान पर पुरापाषाण काल,मध्यपाषाण काल और नवपाषाण काल के चित्र मिलते है? (क)बोलान घाटी                  (ख) गुफकराल (ग) उत्तनूर।                       (घ) भीमबेटका 3.ताम्रपाषाणकाल के  किस पालतू पशु से परिचित नहीं थे? (क) गाय                    (ख) भैंस (ग) घोड़ा।                (घ)  बकरी 4.कौन सा ताम्रकालीन स्थल हड़प्पा सभ्यता को ताम्बे की वस्तुओं की आपूर्ति करता था ? (क)  गणेश्वर                           (ख मेहरगढ़ (ग)  दैमाबाद                           (घ) उत्तनूर 5.अंकोरवाट के विष्णु मंदिर का निर्माण किस शासक ने करवाया था? (क) श्रेष्ठवर्मन।                          (ख) भद्रवर्मन (ग) सूर्यवर्मन प्रथम।                  (घ) सूर्यवर्मन द्वितीय 6.कलचुरी चेदि सम्बत् का प्रचलन किस शासक द्वारा किया गया था ? (क) प्रवरसेन।                            (ग)  ईश्वरसेन (ग) मयूरशर्मन        

पल्लव कला

पल्लव शासकों ने सुदूर दक्षिण में द्रविड़ शैली के मंदिरों का निर्माण कार्य किया।इनके द्वारा बनाये गए मंदिर कांचीपुरम, महाबलिपुरम,तंजौर,तथा पुत्तडूकोराई में पाये जाते है।प्रारम्भ में मंदिरों पर काष्ठकला और कंदराकला का प्रभाव दिखाई देता है किन्तु परवर्ती मंदिर इन प्रभावों से मुक्त है।बाद में पल्लव वास्तुकला ही दक्षिण की द्रविड़ कला शैली की आधार बनी।उसी से दक्षिण भारतीय स्थापत्य की तीन प्रमुख अंगों का जन्म हुआ-1.मंडप 2.रथ तथा 3.विशाल मंदिर । दक्षिण भारत के इतिहास में पल्लव काल प्राचीन काल से मध्यकाल की ओर संक्रमण का प्रतीक है।यह काल परवर्ती गुप्तकाल का समकालीन है।तीन शताब्दियों के शासन के दौरान पल्लव शासकों ने मुख्यतः दो प्रकार की शैलियों में मंदिरों का निर्माण करवाया;वह है शैलकर्त्तन अर्थात पत्थरों को तराश कर और संरचनात्मक विधि।लेकिन अध्ययन की सुविधा के लिए राजाओं के शासन के दौरान बने मंदिरों के आधार पर इन्हें चार शैलियों में विभाजित किया जाता है- 1) महैंद्रवर्मन शैली (610 - 640) 2.मामल्ल शैली (640-674) 3.राजसिंह शैली (674-800) और 4.अपराजित शैली (800-900)।प्रथम दो शैली पत्थरों के तराश पर

वस्तुनिष्ठ इतिहास भाग-1

1.ऋग्वेद में जल के नियंत्रक देवता के रूप में किसे पहचाना गया है ? (क) वरुण।                      (ख) रुद्र (ग) इन्द्र                         (घ) प्रजापति 2.ऐतिहासिक दृष्टि से सबसे महत्वपूर्ण वेद कौन सा है ? (क) ऋग्वेद।                 (ख)  यजुर्वेद (ग)  सामवेद।                (घ)   अथर्ववेद 3.तैत्तिरीय ब्राह्मण किस वेद से जुड़ी संहिता है ? (क) ऋग्वेद।                      (ख)अथर्ववेद (ग) सामवेद                     (घ)यजुर्वेद 4.किस ब्राह्मण के अनुसार विदेध माधव ने वैश्वनार अग्नि को मुँह में लेकर सरस्वती से सदनीरा तक के जंगलों को जला दिया था ? (क) गोपथ                        (ख) तैतिरीय (ग)  शतपथ                     (घ) ऐतरेय 5.किस वेद में राजतिलकोत्सव के मन्त्र उल्लेखित है ? (क) ऋग्वेद                    (ख) यजुर्वेद (ग)सामवेद                   (घ) अथर्ववेद 6.भागदूघ किस प्रकार के अधिकारी थे ? (क) कोषाध्यक्ष                      (ख)कर संग्राहक (ग) दौवारिक                        (घ)विदूषक 7.वैदिक काल में अग्रज से पहले विवाह करनेवाले को क्या कहा जाता

भारत में प्रचलित प्रामुख सम्बत्

विक्रम संवत्  - इसका प्रारम्भ 57  ई.पूर्व में हुआ था।मालव शासक विक्रमादित्य ने शकों को पराजित करने के उपलक्ष्य में इसे चलाया था। यज संवत् दो और नामों से जाना जाता है- 1. कृत संवत् और 2. मालव संवत् । शक संवत् - शक संवत् को कुषाण शासक कनिष्क ने 78 ई. में चलाया था। सर्वप्रथम शक शासकों ने इस संवत् का प्रयोग किया था। फलतः यह कनिष्क संवत् से शक संवत् में बदल गया ।पांचवीं सदी के बाद के लेखों में शक संवत् का उल्लेख मिलता है। गुप्त संवत् - इसका प्रचलन गुप्तवंशीय शासक चन्द्रगुप्त प्रथम ने 319 ई. में किया था। इस संवत् को गुप्तप्रकाल भी कहा जाता है। गुप्तयुग में ही गुजरात के शासक इस संवत् का प्रयोग करते थे। बल्लभी संवत् -  बल्लभी संवत् की जानकारी का स्रोत अलबरूनी का किताबुल हिन्द नामक ग्रंथ है। इसके अनुसार इसे किसी बल्लभ राजा ने 319 ई. में प्रचलित किया था। हर्ष संवत् - हर्ष संवत् का प्रचलन पुष्यभूति वंश के शासक हर्षवर्धन द्वारा 606 ई. करवाया गया था। उत्तरगुप्त राजाओं के लेखों तथा नेपाल से प्राप्त कुछ लेखों में इसका उपयोग मिलता है। कलचुरि-चेदि संवत्  - इस संवत् का प्रचलन आभीर शासक ईश्वर

यू जी सी नेट इतिहास -तृतीय पत्र

1 .साँची के स्तूप पर किस सातवाहन राजा का नाम अंकित है ? (क) शातकर्णि प्रथम               (ख) गौतमीपुत्र शातकर्णि (ग) वशिष्ठिपुत्र पुलुमावी           (घ) यज्ञश्री शातकर्णि 2.सातवाहन अभिलेखों में प्राप्त कटक शब्द किस चीज को अभिव्यक्त करता है? (क) सैनिक शिविर                    (ख) सैनिक वस्तियाँ (ग) पर्वत स्थित गृह                   (घ)  जिला प्रशासन 3. समुद्रगुप्त द्वारा नियुक्त अधिकारी गोपसरमणी किस कार्य को संपादित करता था ? (क) मंडल अधिकारी            (ख) कृषि लाभ का निर्धारण (ग) राजकीय भोजनालय का अध्यक्ष (घ) हस्ति सेना का प्रधान 4.राज्य में उत्पन्न होनेवाली वस्तुओं पर गुप्तकाल में एक प्रकार का कर लगाया जाता था,जिसे कहा जाता था- (क)  भूतकर                     (ख) उपात्तकर (ग)  भोगकर                     (घ) मल्लकर 5.ब्राह्मण पुरुष और शुद्र स्त्री से उत्पन्न संतान को क्या कहा जाता है? (क) अम्बष्ठ                   (ख) उग्र (ग) पराशव                   (घ) चांडाल &nbsp; प्रश्न संख्या 6 से लेकर 20 तक कथन और कारण दिए गए है ;यदि (क) कथन सही है, कारण गलत

महत्वपूर्ण तथ्य

<ol> <li>भारत छोड़ो आन्दोलन के समय मौलाना अबुल कलाम आज़ाद कांग्रेस के अध्यक्ष थे .</li> <li>हाँ मैं समाजवादी हूँ और मेरा  लक्ष्य समाजवाद की स्थापना करना है- जवाहरलाल नेहरु .</li> <li>1937 का कांग्रेस अधिवेशन पहली बार एक गाँव में फैजपुर में हुआ था .</li> <li>कलकत्ता में सर्वाधिक दस (10) बार कांग्रेस का अधिवेशन आयोजित हुआ हैं .</li> <li>1885 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रथम अधिवेशन में कुल  72 व्यक्ति शामिल थे .</li> <li>1844 में सर्वप्रथम हिन्दू कॉलेज कलकत्ता में  इंजिनीयरिंग की कक्षा प्रारम्भ की गई थी .</li> <li>कलकत्ता, मुम्बई, और चेनई विश्वविद्यालय की स्थापना लन्दन विश्वविद्यालय की तर्ज पर हुआ था .</li> <li>चार्ल्स ग्रांट को आधुनिक शिक्षा का जन्मदाता मानाजाता हैं .</li> <li>जेम्स थाम्पसन के प्रयासों से 1847 में रुड़की इंजिनीयरिंग कॉलेज की स्थापना की गई थी, जो भारत का प्रथम इंजिनीयरिंग कॉलेज है .</li> <li>शिक्षा के क्षेत्र मे अधोनिस्यन्दन  सिध

ग्रामीण लोककला का जीवंत रूप: मिथिला पेंटिंग

मिथिला लोककला का विकास कई क्षेत्रों में विभिन्न रूपों में हुआ है। मिथीला पेंटिंग अपनी जीवंतता एवं सजीवता के लिए विश्व प्रसिद्ध है।आधुनिक युग में यह शैली स्टाईल का प्रतीक बन गया है।मिथिला की लोक चित्रकला एक अलौकिक रचना संसार का निर्माण करती है जिसमें पूरी मिथिला संस्कृति ;मिथिला की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि रची-बसि होती है।यह नायाब कला बिहार के मधुबनी,दरभंगा,सहरसा और पूर्णिया जिले के समस्त लोकजीवन को अपने में समेटे हुए है।मिथिला पेंटिंग में चित्र बनाने का कार्य तीन प्रकार से किया जाता है - 1. भित्तिचित्र 2. पट्ट चित्र तथा 3.अरिपन।तीनों चित्र मिथीलावासियों के जीवन का अभिन्न अंग है।भुमिचित्रण की परम्परा मिथिला में काफी प्रचलित है और इसमें मिथिला की संस्कृति परिलक्षित होती है।अरिपन के मूल में धार्मिक भावना प्रबल रही है।यह मिथिला की महिलाओं की मष्तिष्क की उपज है।तीज-त्यौहार तथा मंगल उत्सव के अवसर पर बिना किसी वर्ग विशेष के हर घर में आरिपन को बनते हुए आसानी से देखा जा सकता है मानों यह मैथिल लोगों के जीवन का अपरिहार्य अंग हो।कार्य प्रारम्भ होने में भले ही विलंब हो जाय परंतु बिना अरिपन कार्य की सा

प्राचीन ऐतिहासिक धरोहर :मौर्यकालीन कला

आर्यावर्त का प्रथम साम्राज्य मगध से ही प्राचीन भारतीय इतिहास में पहले पहल कलात्मक गतिविधियों का इतिहास निश्चित रूप से शुरू होता है।राज्य की समृद्धि और मौर्य शासकों की प्रेरणा से कलाकृतियों को प्रोत्साहन मिला। मौर्यकाल में कला के दो रूप प्रचलित थे।एक राजदरबार में कार्यरत्  कारीगरों द्वारा निर्मित कला ,जिसका साक्षात्कार मौर्य प्रासाद और सम्राट अशोक के भव्य स्तंभों में होता है।दूसरा वह रूप है जो परखम के यक्ष,दीदारगंज की चामर ग्राहिणी यक्षिणी तथा वेसनगर की यक्षिणी में देखने को मिलता है।राजसभा से संबंधित कला की प्रेरणा का स्रोत स्वयं सम्राट था।जबकि लोककला के यक्षिणियों में लोककला का रूप मिलता है।लोककला के रूपों की परम्परा पूर्व रूपों से काठ और मिट्टी में चली आ रही थी;अब इसे पाषाण के माध्यम से अभिव्यक्ति मिल रही है।मौर्यकाल के अधिकांश अवशिष्ट स्मारक अशोक के समय के है। चन्द्रगुप्त मौर्य कालीन स्थापत्य कला का विवरण मुख्यतः यूनानी लेखकों के विवरण से प्राप्त होता है।अर्थशास्त्र में दुर्ग विधान के अंतर्गत वास्तुकला के जिन लक्षणों का विवेचन किया गया है उसमें नगर के चतुर्दिक गहरी परिखा ,ऊंचे वप्र

बौद्धों की प्राचीन कला शैली : पाल कला

बिहार और बंगाल में पाल शासको का दीर्घ काल तक शासन रहा था।उनके समय में नालन्दा, विक्रमशिला और उदंतपुरी कलात्मक गतिविधियों के केंद्र के रूप में खासे प्रसिद्ध थे।इस समय बौद्ध कला की छटा कुछ मद्धिम हो चली थी;फिर भी पाल शासकों ने स्थापत्य कला,चित्रकला और मूर्तिकला को नई उच्चाइयाँ प्रदान की।इसके उदाहरण आलोच्य पांडुलिपियों की चितरकारीयां और सरायटीले के भित्तिचित्र है। ऐसा देखने में मिला है कि इस समय अजन्ता शैली में चित्र बनाये गए थे जिसके सर्वोत्तम नमूने नेपाल के शाही दरबार,रॉयल एशियाटिक सोसायटी कलकत्ता,कला भवन काशी,महाराजा संग्रहालय बड़ौदा तथा बोस्टन संग्रहालय अमेरिका में सुरक्षित है। मूर्तिकला :  पालयुग में पत्थर और कांसे की मूर्तियों के निर्माण की एक उन्नत शैली का विकास बिहार प्रदेश में जिसका क्रमशः विकास बंगाल में दिखाई पड़ता है।कांस्य प्रतिमाओं के निर्माण में निर्णायक देन राजतक्षक धीमान और उनके पुत्र विठपाल की रही जिन्हें दो महान पाल शासकों धर्मपाल और देवपाल का संरक्षण प्राप्त था।नालन्दा और कुक्रिहार से प्राप्त कांस्य प्रतिमाए इस तथ्य की ओर संकेत करती है कि कांस्य प्रतिमाये साँचे में ढा