हड़प्पा कालीन धर्म और समाज
हड़प्पाकालीन समाज के शीर्ष पर तीन प्रकार के लोगों की अदृश्य श्रेणियाँ विद्यमान थी - शासक,व्यापारी तथा पुरोहित।पुरावशेषों और उपकरणों के आधार पर सैंधव समाज को कई श्रेणियों में बांटा जा सकता है।रक्षा प्राचीर से घिरे हुए विशिष्ट सुविधाओं से युक्त हड़प्पा,मोहनजोदड़ो एवं कालीबंगन आदि के दुर्ग क्षेत्र में निःसंदेह विशेषाधिकारों से सम्पन्न व्यक्तियों अथवा शासकवर्ग के लोगों के निवास से संबंधित रहे होगें।नगर क्षेत्र में व्यापारी,अधिकारी,सैनिक एवं शिल्पी रहते थे।मोहनजोदड़ो एवं हड़प्पा की खुदाइयों में मिले आमने -सामने के दो कमरोवाले मकानों का उपयोग समाज के गरीब लोग करते थे,जो भारत के आधुनिक शहरों के कुलियों से प्रायः मिलते -जुलते थे।इसी साक्ष्य के आधार पर इतिहासकार सिंधु सभ्यता में दासप्रथा के प्रचलित होने की ओर संकेत करते है।
नृतात्विक दृष्टि से हड़प्पाई लोग चार वर्गों में विभाजित किये जा सकते है - आद्य ऑस्ट्रेलियाई,भूमध्यसागरीय,अल्पाइन और मंगोलाभ।सिंध और पंजाब के निवासी भोजन के रूप में गेहूँ और जौ खाते थे।रंगपुर और सुरकोतड़ा के निवासी चावल और बाजरा खाना पसंद करते थे।वे तेल और चर्बी तिल,सरसो तथा संभवतः घी से प्राप्त करते थे।गन्ने की खेती की जानकारी नहीं मिलती है।खाने को मिट्ठा बनाने के लिए शहद का प्रयोग किया जाता था।इसके अतिरिक्त हड़प्पा निवासी मांस भक्षण भी करते थे।इसप्रकार कहा जा सकता है कि सैंधव लोग शाकाहारी और मांसाहारी दोनों थे।उनके वस्त्र सूती और ऊनी दोनो प्रकार के थे।स्त्री-पुरुष दोनो आभूषण पहनते थे।आभूषण सोने-चाँदी और माणिक्य के बनाये जाते थे।हाथीदाँत और शंख का उपयोग अलंकरण एवं चूड़ियों के निर्माण में होता था।गरीब लोग शंख,सीप् और मिट्टी के आभूषण पहनते थे।केश सज्जा और श्रृंगार प्रसाधन की सामग्रियों के बहुतायत में मिलने से यह साबित होता है कि सैंधव निवासी सुरुचिपुर्ण जीवन व्यतीत करते थे।ताँबे के दर्पण और हाथीदाँत की कन्घियां मिली है।चांहूदड़ो से लिपिस्टिक के प्रमाण मिले है।मोहनजोदड़ो की नारियाँ काजल,पाउडर तथा श्रृंगार प्रसाधनों का प्रयोग करती थी।
धर्म
हड़प्पा संस्कृति के धर्म के विषय में लिखित साक्ष्यों का पूर्ण अभाव है।इस संस्कृति के उत्खनन से मिले साक्ष्यों से धर्म के सिर्फ क्रियापक्षों पर ही प्रकाश डाला जा सकता है,सैद्धांतिक पक्ष पर कोई टिप्पणी नहीं की जा सकती।मोहनजोदड़ो के किलेबन्द नगर तथा निचले नगर की कई बड़ी इमारतें मंदिरों के रूप में देखी गयी है।लेकिन अभी तक सिर्फ मंदिर होने का अनुमान भर लगाया जाता रहा है,स्पष्ट रूप से एक भी मंदिर का साक्ष्य नहीं मिला है। हड़प्पा सभ्यता के सबसे प्रसिद्ध देवता आदिशिव है।कई मुहरों में एक देवता जिनके सिर पर भैंस के सींग का मुकुट है योग की मुद्रा में बैठा दिखाया गया है। यह देव बकरी,हाथी,शेर तथा मृग से घिरा हुआ है।मार्शल ने इन्हें पशुपति कहा है।इन्हें पीपल के पेड़ का अधिष्ठाता देव मन गया है।हड़प्पा संस्कृति से मातृदेवी की पूजा के साक्ष्य बड़े पैमाने पर मिले है।परन्तु इसको राजाश्रय प्राप्त नही था,यह जनसाधारण का धर्म हो सकता है;क्योंकि मातृदेवी की कोई वृहदाकार आकृति नहीं मिली है।प्रकृति के प्रजनन शक्ति के रूप में लिंग-योनि की पूजा की जाती थी।पशुपूजा शक्ति के प्रतीक के रूप में की जाती थी।बैल,भैस,घड़ियाल तथा बाघ आदि की पूजा होती थी।सैंधव सभ्यता में नाग-पूजा का प्रचलन था।लोथल से प्राप्त तीन ठीकरों पर 2-2 सापों का चित्र मिला है।मोहनजोदड़ो से मिले एक ताबीज पर एक नाग को एक चबूतरे पर लेटा हुआ दिखाया गया है। सैंधव लोग बृषभ को सबसे पवित्र और पूज्य मानते थे।वृक्ष आत्माओं की पूजा की जाती थी जिसमें नीम और पीपल प्रमुख थे।जलपूजा और सरीतपूजा की अवधारणा व्याप्त थी।कबूतर एक पवित्र पंछी माना जाता था।जल,स्वास्तिक तथा चक्र भी सिंधु सभ्यता के पवित्र प्रतिक थे। योग की परम्परा हड़प्पा सभ्यता में प्रचलित थी।मोहनजोदड़ों में एक पुरुष आकृति को पद्मासन की मुद्रा में तथा एक अन्य मूर्ति को शाम्भवी मुद्रा में दर्शाया गया है।कालीबंगन,आम्री और लोथल से अग्निपूजा के साक्ष्य मिले है।
नृतात्विक दृष्टि से हड़प्पाई लोग चार वर्गों में विभाजित किये जा सकते है - आद्य ऑस्ट्रेलियाई,भूमध्यसागरीय,अल्पाइन और मंगोलाभ।सिंध और पंजाब के निवासी भोजन के रूप में गेहूँ और जौ खाते थे।रंगपुर और सुरकोतड़ा के निवासी चावल और बाजरा खाना पसंद करते थे।वे तेल और चर्बी तिल,सरसो तथा संभवतः घी से प्राप्त करते थे।गन्ने की खेती की जानकारी नहीं मिलती है।खाने को मिट्ठा बनाने के लिए शहद का प्रयोग किया जाता था।इसके अतिरिक्त हड़प्पा निवासी मांस भक्षण भी करते थे।इसप्रकार कहा जा सकता है कि सैंधव लोग शाकाहारी और मांसाहारी दोनों थे।उनके वस्त्र सूती और ऊनी दोनो प्रकार के थे।स्त्री-पुरुष दोनो आभूषण पहनते थे।आभूषण सोने-चाँदी और माणिक्य के बनाये जाते थे।हाथीदाँत और शंख का उपयोग अलंकरण एवं चूड़ियों के निर्माण में होता था।गरीब लोग शंख,सीप् और मिट्टी के आभूषण पहनते थे।केश सज्जा और श्रृंगार प्रसाधन की सामग्रियों के बहुतायत में मिलने से यह साबित होता है कि सैंधव निवासी सुरुचिपुर्ण जीवन व्यतीत करते थे।ताँबे के दर्पण और हाथीदाँत की कन्घियां मिली है।चांहूदड़ो से लिपिस्टिक के प्रमाण मिले है।मोहनजोदड़ो की नारियाँ काजल,पाउडर तथा श्रृंगार प्रसाधनों का प्रयोग करती थी।
धर्म
हड़प्पा संस्कृति के धर्म के विषय में लिखित साक्ष्यों का पूर्ण अभाव है।इस संस्कृति के उत्खनन से मिले साक्ष्यों से धर्म के सिर्फ क्रियापक्षों पर ही प्रकाश डाला जा सकता है,सैद्धांतिक पक्ष पर कोई टिप्पणी नहीं की जा सकती।मोहनजोदड़ो के किलेबन्द नगर तथा निचले नगर की कई बड़ी इमारतें मंदिरों के रूप में देखी गयी है।लेकिन अभी तक सिर्फ मंदिर होने का अनुमान भर लगाया जाता रहा है,स्पष्ट रूप से एक भी मंदिर का साक्ष्य नहीं मिला है। हड़प्पा सभ्यता के सबसे प्रसिद्ध देवता आदिशिव है।कई मुहरों में एक देवता जिनके सिर पर भैंस के सींग का मुकुट है योग की मुद्रा में बैठा दिखाया गया है। यह देव बकरी,हाथी,शेर तथा मृग से घिरा हुआ है।मार्शल ने इन्हें पशुपति कहा है।इन्हें पीपल के पेड़ का अधिष्ठाता देव मन गया है।हड़प्पा संस्कृति से मातृदेवी की पूजा के साक्ष्य बड़े पैमाने पर मिले है।परन्तु इसको राजाश्रय प्राप्त नही था,यह जनसाधारण का धर्म हो सकता है;क्योंकि मातृदेवी की कोई वृहदाकार आकृति नहीं मिली है।प्रकृति के प्रजनन शक्ति के रूप में लिंग-योनि की पूजा की जाती थी।पशुपूजा शक्ति के प्रतीक के रूप में की जाती थी।बैल,भैस,घड़ियाल तथा बाघ आदि की पूजा होती थी।सैंधव सभ्यता में नाग-पूजा का प्रचलन था।लोथल से प्राप्त तीन ठीकरों पर 2-2 सापों का चित्र मिला है।मोहनजोदड़ो से मिले एक ताबीज पर एक नाग को एक चबूतरे पर लेटा हुआ दिखाया गया है। सैंधव लोग बृषभ को सबसे पवित्र और पूज्य मानते थे।वृक्ष आत्माओं की पूजा की जाती थी जिसमें नीम और पीपल प्रमुख थे।जलपूजा और सरीतपूजा की अवधारणा व्याप्त थी।कबूतर एक पवित्र पंछी माना जाता था।जल,स्वास्तिक तथा चक्र भी सिंधु सभ्यता के पवित्र प्रतिक थे। योग की परम्परा हड़प्पा सभ्यता में प्रचलित थी।मोहनजोदड़ों में एक पुरुष आकृति को पद्मासन की मुद्रा में तथा एक अन्य मूर्ति को शाम्भवी मुद्रा में दर्शाया गया है।कालीबंगन,आम्री और लोथल से अग्निपूजा के साक्ष्य मिले है।
Very good
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