हिंदी उपन्यास में सांप्रदायिक चेतना

 बहुभाषी अत्यंत जटिल सामाजिक संरचना वाले विविध धर्म एवं संप्रदाय वाले देश भारत में सांप्रदायिकता एवं सांप्रदायिक समस्या सदियों से मूलभूत समस्या के रूप में रही है संप्रदायिक मनु भावना और उससे अवांछित रूप काल के अपने विशिष्ट संदर्भों में अपने-अपने ढंग से अतीत के भारतीय इतिहास का भी उसी तरह हिस्सा रहे जैसे कि वे आधुनिक भारत के हमारे अपने समय में हमारी अपनी चिंता का अभिन्न और आत्यंतिक हिस्सा है भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में जहां सभी धर्म जातियों एवं वर्गों के लोग शांति पूर्ण पूर्ण पूजा के साथ सह अस्तित्व की भावना से रहते हैं उसी भूमि को इस भावना ने रोग ग्रस्त कर दिया है सदियों से एक साथ एक भूमि पर हत्या रहे हिंदू मुसलमानों के बीच धीरे-धीरे पनपता घूर अविश्वास भयानक संप्रदायिकता का रूप ले लिया है लेकिन देखा जाए तो भारतीय समाज में इसकी जड़ें प्राचीन काल से ही गहरी और मजबूत है समय के बदलाव के साथ यह कट्टरता और उदारता का चोला धारण कर लेती है सत्ता पर काबिज रहने के लिए समाज के विभक्ति करण की प्रक्रिया अपनाने का कार्य सदियों से अनवरत रूप से चलता आ रहा है।

की समस्याओं का रेखांकन सिर्फ इतिहास की पुस्तकों में ही नहीं होता साहित्यकार पूरी ईमानदारी से न केवल इन समस्याओं का चित्रण ही करता है बल्कि समाज की उन मूलभूत आत्मा कोई भी को भी चित्रित करता है जिसका कुत्सित भावनाओं से कोई रिश्ता नहीं होता हिंदी कथा साहित्य में इसके सामाजिक आर्थिक एवं राजनीतिक आधार के साथ-साथ उसके बेचारी उत्साह एवं चरित्र के बीच गतिशील अंतर संबंधों की पहचान की गई है तथा उन्हें पुनर्जीवित करने की कोशिश भी हुई है सांप्रदायिकता को विषय बनाकर विशुद्ध साहित्य सर्जन भले ही 90 के दशक में शुरू हुआ किंतु उसकी जड़े ऐतिहासिक उपन्यास के कालखंड तक जाती है जिसे कभी संस्कृति गौरव के रूप में तो कभी क्षत्रिय गौरव के रूप में चित्रित किया गया है उपन्यास कारों ने सांप्रदायिकता के उद्भव और विकास को लेकर अब तक की स्थिति पर गहनता से न केवल लिखा समाधान के रास्ते भी खोजें इन कथाओं में हिंदू मुसलमानों के में कटुता और अविश्वास विभाजन के पहले और विभाजन के बाद भीषण सांप्रदायिक दंगे और मनुष्य का रक्त पाठ आगजनी स्त्रियों पर बलात्कार की अमान्य घटनाएं परिचित भूमि को छोड़कर बिल्कुल अनजान जगह में आश्रय की तलाश में जाती लोगों पर हुए अत्याचारअपनी पैतृक भूमि से उखाड़ने और उजड़ने की वेदना विस्थापित के रूप में नए देश में बसने की समस्या परिवार से बीच हुई स्त्रियों के पुनः अपने परिवार में स्थान पाने की समस्या को प्रमुखता मिली है इसके साथ ही मानवीय करूंगा और सौहार्द को प्रकट करने वाली घटनाएं भी अनेक है इनका ले दिनों में मानवता की मशाल जलाए रखने वाले संवेदनशील लोगों की भी कमी नहीं है जिन्होंने राजनीतिक क्रूरता और निर्मलता सांप्रदायिक हिंसा घृणा से ऊपर उठकर मनुष्य मात्र की रक्षा हेतु अपना जीवन बलिदान कर दिया।

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