भारत में आर्यों का आगमन
भारत में आर्य भाषा भाषियों का आगमन 1500 ईसवी पूर्व के कुछ पहले हुआ था। आर्यों की जानकारी सर्वप्रथम ऋग्वेद में मिलती है। इनका प्रारंभिक जीवन पशुचारी था और कृषि उनका गौण व्यवसाय था। आर्यों का मूल निवास आल्पस पर्वत के पूर्वी क्षेत्र जो यूरेशिया कहलाता है, कहीं पर बताया जाता है। लेकिन इतिहासकारों में आर्यों के मूल स्थान को लेकर मतैक्य नहीं है ,उदाहरणस्वरूप , गंगानाथ झा इन्हें ब्रह्मर्षि देश का मानते हैं। जबकि डी एस त्रवेदी आर्यों का मूल स्थान मुल्तान स्थित देविका क्षेत्र को बताते हैं । एल डी कल्ल का मानना है कि आर्य कहीं कश्मीर तथा हिमालय क्षेत्र में बसते थे। तिलक ने तो इन्हें उतरी ध्रुव का बतलाया है । मैक्समूलर ने आर्यों के मूल स्थान को मध्य एशिया स्थित किया है। गाइस महोदय डेन्यूब नदी के किनारे स्थित हंगरी प्रदेश को आर्यों का मूल स्थान बताया है, जबकि गार्डन चाइल्ड, मेयर और पीक ने आर्यों को दक्षिणी रूस का होना निश्चित किया है। आर्यों के समाज में पुरुष की प्रधानता थी उनके जीवन में घोड़े का सबसे अधिक महत्व था । पालतू घोड़े पहली बार 6000 ईस्वी पूर्व में काला सागर और यूराल पर्वत क्षेत्र में इस्तेमाल किए गए हैं भारत आगमन के क्रम में आर्य लोग मध्य एशिया और इरान पहुंचे थे। ऋग्वेद की अनेक बातें ईरानी भाषा के प्राचीनतम ग्रंथ अवेस्ता में मिलती है।
आरंभिक आर्य पूर्वी अफगानिस्तान, पंजाब और पश्चिमी उत्तरप्रदेश के सीमावर्ती भागों में निवास करते थे। प्रमुख रूप से सप्त सिंधु प्रदेश के उल्लेख से यह स्पष्ट होता है कि प्रारंभिक आर्यजनों का प्रमुख क्षेत्र सिंधु सभ्यता वालाऔर उसके आस-पास का क्षेत्र है। आर्य लोग जिस क्षेत्र में बसे उसे 'सप्तसिंधु' क्षेत्र कहा जाता है। सप्तसिंधु में पांच पंजाबी नदियां सतलुज (शुतुद्री),(विपासा) व्यास, (अस्किनी)चेनाव,( पुरुष्णी) रावी, (वितस्ता) झेलम, सिंधु और सरस्वती शामिल है। वैदिक साहित्य में उल्लेखित 31 नदियों में से 25 नदियों का उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है ।इससे स्पष्ट होता है के आर्य नदी घाटियों के ऊपरी स्थलों पर निवास करते थे। ऋग्वेद में यमुना नदी का उल्लेख तो मिलता है लेकिन प्रारंभिक आर्यों को इसके आगे का भौगोलिक ज्ञान नहीं था। ऋग्वेद में सरस्वती नदी को विशेष महत्व दिया गया है ।जबकि आर्यों की निवास स्थल की प्रमुख नदी सरयू नदी तथा गंगा नदी का वैदिक साहित्य में बहुत ही कम (एक बार)उल्लेख किया गया है ।आर्य लोग हिमालय पहाड़ से परिचित थे, उसकी एक चोटी को आर्य मुज्जवंत कहा करते थे, जो सोम पौधे के लिए प्रसिद्ध थी। इसी से सोमरस का उत्पादन होता था ,जो वैदिक कार्यों के संपन्न होने के पश्चात आर्य उसका पान करते थे अफगानिस्तान आर्यों के निवास स्थल का एक प्रमुख केंद्र रहा होगा ।ऋग्वेद में समुद्र की चर्चा की गई है लेकिन इसका मतलब समुद्र ना होकर बड़ा जलाशय ही रहा होगा । हरियुपिया शब्द जो वैदिक ग्रंथों में मिलता है ,वह प्राचीन नदी घाटी सभ्यता हड़प्पा सभ्यता का द्योतक है। वैदिक आर्य सरस्वती नदी को सर्वश्रेष्ठ नदी मानते थे और उसी 'नदीतमा' के नाम से अभिहित करते थे।
आर्यों का भौगोलिक विस्तार के क्रम में दास, दस्यु आदि के नाम की स्थानीय जनों से संघर्ष हुआ। दास पूर्ववर्ती आर्यों की ही एक शाखा थे। ऋग्वेद में कहा गया है कि भारत वंश के राजा दिवोदास ने शंबर को हराया था ।ऋग्वेद में जो दस्यु कहे गए हैं वे संभवतः इस देश के मूल निवासी थे। आर्यों के जिस राजा ने उन्हें पराजित किया, वह 'त्रासदस्यु' कहलाया। आर्य राजा दासों के प्रति कोमल और दस्यु के प्रति कथा कठोर था। दस्यु लोग लिंगपुजक थे और दूध के लिए पशुपालन नहीं करते थे। ऋग्वेद में दास और दस्यूओ की पहचान के लिए कुछ विशेष शब्दों का प्रयोग किया जाता था ,यथा , अकर्मन( वैदिक क्रियाओं को नहीं करने वाले), अदेवयु: (देवताओं को ना मानने वाले), मृद्धवाक (अपरिचित भाषा बोलने वाले), अयज्न (यज्ञ करने वाले) ,अन्य व्रत (वैदिकेत्तर व्रतों का अनुसरण करने वाले) अब्रलन (श्रद्धा और धार्मिक विश्वास से रहित)। आर्यों के पांच कबिले थे, जिन्हें 'पंचजन' कहा जाता था। पंचजन में अनु, द्रुह्य, यदु, पुरु और तुर्वस आते थे। भरत जन सबसे महत्वपूर्ण जन था, जो सरस्वती तथा यमुना नदियों के बीच के प्रदेश में निवास करता था। भरत और त्रित्सु आर्यों के शासक वंश थे और पुरोहित वशिष्ठ दोनों वंशों के समर्थक थे। बाद में भरत त्रित्सु वंश के प्रतापी राजा हुए जिनके नाम पर इस देश का नाम भारत पड़ा। विस्तार के क्रम में आर्य जनों के बीच दसराज्ञ युद्ध (दस राजाओं का युद्ध) पुरुष्णी नदी के किनारे लड़ा गया था। इस महायुद्ध में त्रित्सु और पुरु आपस में भिड़े थे। त्रित्सु जन्म के पुरोहित वशिष्ठ थे और पुरु जन के पुरोहित विश्वामित्र थे। इसमें त्रित्सु राजा सुदास की जीत हुई थी। कालांतर में भरत और पुरु मिल गए और कुरुवंश के रूप में उत्तरवैदिक काल में पंचालों के साथ मिलकर गंगा मैदान में अपना संयुक्त राज्य स्थापित किया।
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