चित्रकला की अदभुत शैली- पटना कलम

17वीं-18वीं शताब्दी में पारंपरिक भारतीय चित्रकला की एक क्षेत्रीय शाखा नए रूप में बिहार राज्य की राजधानी पटना और उसके आस-पास के क्षेत्रों में आकार ले रही थी,जिसे पटना कलम के रूप में पहचान मिली।वास्तव में इस शैली के कलाकार मुगल चित्रकार ही थे जो औरंगजेब और उसके परवर्ती शासकों के चित्रकला के प्रति अरुचि के कारण पलायन के लिए बाध्य हुए थे। ये कलाकार पटना जैसे उभरते नवीन व्यापारीक केंद्रों की ओर उन्मुख हुए और इसे अपनी कला के केंद्र के रूप में विकसित किया। ये चित्रकार पटना के लोदी कटरा,दीवान मुहल्ला,नित्यानंद का कुआँ और मच्छरहत्ता जैसे इलाकों में स्थाई रूप से बस गए।
         पटना कलम के चित्रकारों ने व्यावसायिक तौर पर बाजार की मांग के अनुरूप चित्रों के निर्माण का कार्य शुरू किया। इन चित्रों को उस समय विदेशी व्यापारी और पटना के कुलीन वर्ग के लोग बड़े चाव से खरीदते थे।रईसों की अभिरुचि पोट्रेट्स या व्यक्तिचित्र में  तथा फूल एवं पक्षियों में अधिक थी ;जबकि विदेशियो की रुचि भारपिकझेतीय संस्कृति,परम्परा,पर्व-त्योहार,वेश-भूसा,रीति-रिवाज तथा उद्योग-धंधों में अधिक था।इस प्रकार के चित्रों को बनवाने के पीछे इनका दो मंतव्य था,एक भारीतय संस्कृति एवं परंपरा से अपने निकट संबंधियों को परिचित कराना चाहते थे और दूसरा,भारतीयों के पिछड़ेपन,गरीबी और बुरी व्यावसायिक स्थिति को प्रचारित कर सम्पूर्ण यूरोपीय विरादरी की सहानुभूति बटोर कर  भारत से धन वहिर्गमन को आसान बना दिया जाय।इसप्रकार के  चित्रों मे विषयानुसार फिरका सेट के रूप में चित्रों का एक पूरा एलबम तैयार किया जाता था।विदेशीयों में कुछ लेखक वर्ग के लोग अपनी पुस्तकों के दृष्टान्त चित्र के रूप में इन चित्रों का प्रयोग करने लगे थे।उदाहरण के तौर पर 1826 में प्रकाशित कैप्टन ग्रीण्डले की पुस्तक "सीनरी कॉस्ट्यूम्स एण्ड आर्किटेकचर" में इन चित्रों का धड़ल्ले से प्रयोग मिलता है।
कथ्य की विविधता पटना शैली की प्रमुख पहचान है।इस शैली के चित्रकार जीवन के हर क्षण ,हर रंग और हर अनुभूति को अपने कैनवास पर उत्तार लेना चाहते थे।उनकी कल्पनाशीलता के आगे दुनिया छोटी पड़ रही थी।चाहे पाठशाला हो या मदरसा,ईद हो या होली,मेल हो या  पूजा,दाह-संस्कार हो या दफन,नृत्य-संगीत हो य वाद्यवृन्द सब पर इनकी कूची समान अधिकार से  चल रही थी।महिलाओं के गृहकार्य ,बाजार का दृश्य,दुकानें,यहाँ तक कि साधु-फकीरों तक को चित्रित किया गया था।गोरखपंथी साधु,कानफटे साधु,चिमटा लिए साधु,भैरव के उपासक साधु एवं घण्टियाँ बांधे साधु विशेष आकर्षण के केंद्र थे।श्रमजीवी वर्ग भी इनसे अछूता नहीं था;नाई,धोबी,कुली,कहार,भिश्ती,चोबदार,नौकर,दरवान ,दस्तकारों में लोहार,बुनकर,कुम्हार,बढ़ई,जुलाहे,पतंग बनानेवाले,कंघी बनानेवाले तथा संगतरास शामिल थे।हर प्रकार के साजिंदे, खेल-तमाशे और तत्कालीन आवागमन के साधनों को इन चित्रों में स्थान मिला था।
                     पटना कलम के चित्रों की विविधता कला पारखियों के लिए आश्चर्य एवं कौतुहल का विषय बना हुआ है।मुगलकालीन शाही चित्रकारों की विरासत लिए इन चित्रकारों ने कितनी तत्परता से मध्यकालीन रुढ़ियों को तोड़ दिया।जहाँ मुगल चित्रकला में राजसी शानों-शौकत,युद्ध,शिकार,राग-रागिनी,बारहमासा आदि का चित्रण बड़े भव्य रूप में किया जाता था;वहीं पटना आकर सामान्य जान जीवन को अपनी चित्रकला का विषयवस्तु बनाया।पटना कलम के दो चित्र अभी भी सुरक्षित अवस्था में है;एक ,पटना संग्रहालय में महादेव लाल द्वारा बनाई "रागिनी गंधारी" और दूसरा, माधो लाल द्वारा निर्मित "रागिनी तोड़ी"जो अभी पटना स्थित खुदाबख्श खां  ओरिएंटल लाइब्रेरी में है।रागिनी गान्धारी चित्र में नायिका विरहिणी की मुद्रा में पर्ण कुटी के सामने बैठी है,विरह के अवसाद को सघन करने के लिए आकाश में गहरे नीले रंग का इस्तेमाल किया गया है।सोया हुआ कुत्ता अवसादी मन की शिथिलता को और बढ़ा देता है।रागिनी तोड़ी में कलाकार विरहिणी नायिका को वीणा लिए प्रदर्शित किया है।श्याम मृग शावक कमल ताल राग को उभारने में सहायक सिद्ध हुआ है।इसके अतिरिक्त शिव लाल द्वारा निर्मित मुस्लिम निकाह का चित्र,यमुना प्रसाद का बेगमों की शराबखोरी का चित्र अत्यंत मनमोहक है।
       पटना कलम के चित्रकार अधिकतर कागज,हाथीदाँत और अभ्रक पर अपने चित्र बनाये है।यहाँ गहरे रंगों का प्रयोग मिलता है।गहरे रंग विषय को उभारने और आकृष्ट करने में अधिक में अधिक सहायक होते है।रंग अधिकांशतः पत्थर,घास,फूल और पेड़ों की छालों से तैयार किये जाते थे।कुसुम के फूल से पीला,हरश्रीन्गार से लाल,लाजवर्द से नीला तथा स्याही से काला रंग बनाया जाता था।तूलिका निर्माण हेतु गीलहरी पुंछ,भैंस की पूछ और सुअर के बालों का प्रयोग किया जाता था।कागज हस्त निर्मित या  नेपाल का बंसा कागज या यूरोपीयन ड्रॉइंग पेपर होता था।चित्र सीधे कागज पर उकेरे जाते थे और रंग भरे जाते थे।

Comments

  1. जय बिहार
    पटना कलम चित्र कला बिहार से जुड़ी तस्वीरों को देखकर एक अजीब अनुभूति महसूस होती है की तब हमारा बिहार कैसा था।

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