हड़प्पा सभ्यता का भौगोलिक विस्तार

      भारत एवं पाकिस्तान के जिस क्षेत्र में कालान्तर में सिन्धु सभ्यता विकसित हुयी उसके आस-पास के क्षेत्रो में ताम्रपाषणकालीन संस्कृतियों के पुरातात्विक साक्ष्य मिलते है .कालक्रम की दृष्टि से ये संस्कृतियां सिधु सभ्यता की पूर्ववर्ती एवं अंशतः समकालीन थी.इन ग्रामीण संस्कृतियों को पाकिस्तानी विद्द्वान रफीक मुग़ल आरम्भिक हड़प्पा संस्कृति का नाम देते है .दक्षिणी अफगानिस्तान ,पाकिस्तान के बलूचिस्तान ,पूजब का पूरा इलाका ,सिंध,उत्तरी राजस्थान ,इस संस्कृति के आगोश में समाहित था.आरम्भिक हड़प्पा के प्रमुख स्थलों में मुंडीगाक (अफगानिस्तान),किली गुल्मुहम्मद ,कुली,मेही,डम्ब-सद्दात ,हड़प्पा (पाकिस्तान)और कोटदिजी ,कालीबंगन,बनवली,राखिगढ़ी(भारत)है.मृदभांडो और क्षेत्रीय विविधताओं के आधार पर प्राक-सैन्धव संस्कृति को कई संस्कृतियों में विभाजित किया गया है -जैसे क्वेटा संस्कृति,आमरी-नाल संस्कृति ,कुली संस्कृति ,जॉब संस्कृति और सोती संस्कृति आदि .
          हड़प्पा सभ्यता के बारे में पहली बार चार्ल्स मैसन ने 1826 ई.में उल्लेख किया था.तत्पश्चात,1831 ई.एलेक्जेंडर बर्न्स ने यहाँ नगर के नदी वाले किनारे पर किले के खँडहर देखे .लेकिन सिन्धु सभ्यता की बस्तियों के बारे में पहली पुरातात्विक रिपोर्ट 1875 ई. में सर एलेक्जेंडर कनिंघम ने लिखी .सर जॉन मार्शल की प्रेरणा और निर्देश में मोहनजोदड़ो एवं हड़प्पा का उत्खनन 1920 के दशक में शुरू हुआ .उस समय से आब तक 1500 से आधिक स्थलों की खुदाई की जा चुकी है.इन्स्थालो का क्षेत्रफल करीब 12.99 लाख वर्ग किमी.है,जो यह दर्शाता है कि यह दुनिया की सबसे विस्तृत क्षेत्र में फैली प्राचीन सभ्यता है.
            हड़प्पा सभ्यता का भौगोलिक विस्तार सिंध से लेकर दखिन पूरब की ओर हुआ है .इसकी पश्चिमी सीमा बलूचिस्तान एवं पूर्वी सीमा उत्तरप्रदेश का आलमगीरपुर हो,जो बहुत बड़ा गेहू उत्पादक क्षेत्र है .जम्मू स्थित चेनाब नदी पर मांडा रोपड़ (पंजाब )उत्तरी सीमा के रूप में प्रदर्शित होती है ,तो दक्षिण में यह सभ्यता दैमाबाद (महाराष्ट्र )एवं भगत्रव (गुजरात ) तक अपने पैर फैलाती है .पूर्वी उत्तरप्रदेश के गांजीपुर और वाराणसी जिलों में मिले चित्रलेख और कार्नेलियन मनके तथा बिहार की राजधानी पटना में मिली हड़प्पा सभ्यता के विस्तार को काफी बढ़ा देती .इसप्रकार जिन सम्पूर्ण क्षेत्र में हड़प्पा सभ्यता के अवशेष मिले है , वह पूरा इलाका एक त्रिभुज के आकर का है.इस सभ्यता के भौतिक साक्ष्यो में अद्भुत साम्य है.हड़प्पा सभ्यता का सभी समुदाय नाप-तौल का समान बाट,एक लिपि .तथा ताम्बे एवं कांसे निर्मित एक ही आकार-प्रकार के औजार का प्रयोग करते थे.उनके कुछ नगरों में बनी इमारतों ,किलों आदि की बनावटों में काफी एकरुपतायें थी.इस्तेमाल में लायी गयी ईटों का अनुपात 4:2:1 था.हड़प्पा सभ्यता की बस्तियों को अधिकतर गुलाबी रंग के मिट्टी के बर्तनों से पहचाना जा सकता है. इन बर्तनों पर काले रंग के पेड़ो,पशु-पक्षियों,के एक ही प्रकार के चित्र बने हुए है ,साथ ही ज्यामिति की आकृतियाँ भी उकेरी जाती थी .परिपक्व हड़प्पा सभ्यता का अस्तित्व मोटे तौर पर 2550 ई. पूर्व से लेकर 1900 ई.तक माना जाता है.
                  हड़प्पा सभ्यता के लिए तीन नामो का प्रयोग साधारणतः किया जाता है- सिन्धु सभ्यता ,सिन्धु घाटी की सभ्यता तथा हड़प्पा सभ्यता .प्रारंभ में जब 1921 ई. में पश्चिम पंजाब में हड़प्पा स्थल पर इस सभ्यता का पता चला और अगले वर्ष मोहनजोदड़ो की खोज हुयी ,तब यह सोचा गया कि यह सभ्यता सिन्धु घटी तक ही सीमित है .अतः इस सभ्यता का संकेत देने के लिए "सिन्धु घाटी की सभ्यता "शब्दावली का प्रयोग किया गया .लेकिन बाद में हुए उत्खननों से मिले स्थलों को रेखांकित करने में यह नाम उपयुक्त नहीं लगा ,अतः इसके लिए हड़प्पा सभ्यता जैसे गैर भौगोलिक शब्द के प्रयोग का निर्णय लिया गया ..

मोहनजोदड़ो :  अर्थात मृतकों का टीला,पाकिस्तान के लरकाना जिले में सिन्धु नदी के किनारे अवस्थित है.मोहनजोदड़ो अपने जीवन काल में नौ बार विनष्ट हुआ और नौ बार इसका पुनर्निर्माण हुआ था .खुदाई से पूर्व इसके ऊपरी सतह पर कुषाण कालीन बौद्ध स्तूप पाया गया है .सर्वप्रथम राखालदास बैनर्जी ने इसकी खुदाई 1922 ई.में की थी .तत्पश्चात 1922-23 में मार्शल ,1931 ई.अर्नेस्ट मैके,1950 ई. में मार्टिमर व्हीलर और 1963-64 में जार्ज एफ.डेल्स ने मोहनजोदड़ो में उत्खनन कार्य किया .यह स्थल हड़प्पा सभ्यता का राजधानी नगर था .फेयरसर्विस ने इसकी जनसँख्या 41,250 बताई है . मोहनजोदड़ो के निवासी अधिकांशतः भूमध्यसागरीय थे.उत्खनन मी मोहनजोदड़ो में एक विशाल स्नानागार मिला है.इस स्नानागार की लम्बाई उत्तर से दक्षिण 55 मीटर तथा चौड़ाई पूर्व से पश्चिम 30 मीटर है .ठीक इसके मध्य में 11.88 x 7.01 x 2.45 मी.गहरे स्नानकुंड का निर्माण किया गया है.उतरने और चढ़ने के लिए 2.50 मी.चौड़ी सीढियाँ बनी है.स्नानकुण्ड के उत्तर में दो पक्तियों में स्नानघर बने हुए है.पानी बगल के कुएं से लाया जाता था .आवश्य ही इसका उपयोग धार्मिक उद्देश्य के लिए होता था .मोहनजोदड़ो के स्नानागार के फर्श एवं दीवार की जुड़ाई जिप्सम से की गयी है.बाहरी दीवार पर बिटुमन का प्लास्टर लगाया गया है .स्नानागार के य्त्तर-पूर्व में 83 x 24 मी.लम्बा एक भवन मिला है ,जिसे पुरोहित भवन कहा जाता है.दुर्ग के दक्षिण भाग में 20 स्तंभों पर टिकनेवाला एक महल मिला है ,जिसे पुरातत्ववेत्ता राजभवन बताते है.इन स्थम्भो का निर्माण पांच-पांच की चार पंक्तियों में किया गया था. मोहनजोदड़ो का विशालतम भवन अन्नागार था.55 x 37 मी. आकारवाले  इस अन्नागार में सत्ताईस विभिन्न खंड थे .
        मोहनजोदड़ो के नगर क्षेत्र में सड़को का निर्माण उत्तर से दक्षिण और पूर्व से पश्चिम दिशा में किया गया था,जो एक दुसरे को समकोण पर काटती थी .इसप्रकार यह नगर 12 आयताकार खंडो में विभाजित लगता था मुख्य सड़के 9.15 मी.और सहायक सड़कें 3 मी.चौड़ी थी.सड़क निर्माण पद्धति को आक्सफोर्ड सर्कस का नाम दिया गया है.सडकों के किनारे कूड़ा डालने के लिए गड्डे बने हुए थे.मोहनजोदड़ो के मकान पक्की ईटों के बने हुए थे .प्रत्येक मकान में एक आँगन और तिन ओर से छोटे-बड़े कमरे होते थे . घरो में किवाड़ दीवार के किनारे लगाये जाते थे.ईटों की चिनाई इंगलिश बांड पद्धति से होती थी.कुछ घरों में सीढियों के अवशेष मिले है.घरो में निजी कुए ,स्नानागार ,पानी  निकास के लिए नाली और शौचालय बने हुए थे .मकानों के दरवाजे एवं खिड़कियाँ गलियों में खुलती थी .मोहनजोदड़ो में शव विसर्जन पूर्ण समाधिकरण एवं आंशिक शवाधन दोनों प्रकार से होता था .यहाँ से 42 नरकंकाल पाए गए है.
हड़प्पा :  पाकिस्तान के पंजाब प्रान्त के मांटगोमरी जिले में रावी नदी  नदी के बाये किनारे पर स्थित है.हड़प्पा को वैदिक साहित्य में हरियुपिया कहा गया है.इसके अवशेषों का सबसे पहले  चार्ल्स मेशन ने पता लगाया था .लेकिन इसका उत्खनन  1921  ई. में दयाराम सहनी के नेतृत्त्व मेकिया गया .तत्पश्चात इन तिल्लों पर 1923 -24 और 1946 में क्रमशः माधोस्वरूप वत्स और मार्टिमर व्हीलर द्वारा उत्खनन कार्य किया गया .हड़प्पा में दो प्रकार के टीले पाए गए है-पूर्व में दुर्ग टीला और पश्चिम में नगर टीला.दुर्ग क्षेत्र रक्षा प्राचीर से घिरा हुआ था.इसका आकर समलम्ब चतुर्भुज जैसा था .दुर्ग की लम्बाई-चौड़ाई क्रमशः 420 मीटर और 196 मीटरहै.दुर्ग का प्रमुख द्वार उत्तर दिशा में था.यहाँ से प्राप्त अन्नागार में 6 -6 के दो कतारों में 12 कक्ष बने हुए है ,जिसका क्षेत्रफल 2745 वर्ग मीटर है.यह अन्नागार उतना ही बड़ा है जितना  की मोहनजोदड़ो में प्राप्त अन्नागार . हड़प्पा के अन्नागार गढ़ी के बाहर मिले है जबकि मोहनजोदड़ो से यह गढ़ी के अन्दर मिले है.हड़प्पा के एफ  (F) टीलों में पक्की ईटों के 18 गोल चबूतरे प्राप्त हुए है .शायद इनका इस्तेमाल फसल से अन्न निकालने के लिए होता था .यहाँ से श्रमिक आवास के रूप में 15 मकान दो पंक्तियों में बने मिले है ,जिसमे एक या दो कमरें बने मिले है.इस बस्ती के समीप 16 भट्ठियां और धातु बनाने की मुषा (Crucible) मिली है .इतिहासकारों का मानना है कि शायद यह ताम्रकारों की बस्तियां रही होगी.
                 हड़प्पा नगर मोहनजोदड़ो से अधिक विस्तृत है .यह नगर लगभग पांच किमी. की परिधि में स्थित था .हड़प्पा एवं मोहनजोदड़ो इस सभ्यता की दो जुसवा राजधानियाँ थी.यह से मोहनजोदड़ो की भांति घरों से कुएं नहीं मिले है.   फेयरसर्विस ने हड़प्पा की जनसँख्या  23544 बताई है .यहाँ से दक्षिण क्षेत्र में एक कब्रिस्तान मिला है ,जिसे समाधी आर-37 कहा जाता है ,यहाँ से 57 कब्रें प्राप्त हुयी है.एक कब्र में लकड़ी के ताबूत में लाश दफनाया गया है .शव प्रायः सिरउत्तर और पैर दक्षिण में रखकर दफनाये जाते थे .1954  में उत्खनन में समाधी एच मिली है ,जिसका सम्बन्ध सिन्धु सभ्यता के बाद के काल से जोड़ा जाता है.

कालीबंगन :  राजस्थान के गंगानगर (हनुमानगढ़ )जिले में घग्घर नदी के किनारे अवस्थित है .1950 -55 में अमलानंद घोष ने इस स्थल की खोज की थी.1960 से 1967 के बीच इस स्थान  पर बी.बी.लाल एवं बी.के .थापर  के नेतृत्व खुदायियाँ करवाई गयी थी. कालीबंगन से आठ कार्बन तिथियाँ प्राप्त हुयी है ,जिसके आधार पर इसे दो कालखंडों में विभाजित किया जाता है - प्राक सैन्धव सभ्यता का काल (2400 ई पूर्व से 2200 ई,पूर्व तक ) तथा  सैन्धव सभ्यता का काल .हड़प्पाकालीन कालीबंगन में पश्चिमी दिशा में दुर्ग और पूर्वी दिशा में नगर क्षेत्र  स्थित था .दुर्ग में चारों दिशाओं में प्रवेशद्वार थे. यहाँ से प्राप्त गढ़ी का आकार समानांतर चतुर्भुज के आकार का था .कालीबंगन का निचला शहर भी दुर्गीकृत किया गया था.यहाँ के मकान कच्ची ईटों से निर्मित किये गए है.सार्वजानिक नालियों के साक्ष्य नहीं मिले है,जो हड़प्पा सभ्यता की अपनी खास विशेषता थी.कुछ विद्वानों का मानना है कि कालीबंगन इस सभ्यता की तीसरी राजधानी आवश्य रही होगी .
                  कालीबंगन के प्राक सैन्धव  संस्कृति से एक जुटे हुए खेत का साक्ष्य मिला है.पूर्व से पश्चिम की ओर कुण्ड से कुण्ड की दूरी 30 सेमी. तथा उत्तर से दक्षिण दिशा में बनाये गुए कुण्डों की दूरी 190 सेमी. है. दोनों एक-दूसरे को समकोण पर कटती है.सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यह के लोग एक ही खेत में एक साथ दो फसलों की खेती करते थे .इस काल में जौ की खेती के साक्ष्य मिले है.यहाँ से आयताकार अग्निकुंडो के अवशेष मिले है,एक प्लेटफार्म तो ऐसा मिला है जिसपर 7 वेदिकाएं बनी हुयी है .कालीबंगन के दक्षिण -पश्चिम में कब्रिस्तान मिला है .यहाँ से 37 शव के विसर्जन के प्रमाण मिले है .यह इस बात की ओर संकेत करते है कि यहाँ के लोग शव विसर्जन के पूर्ण समाधिकरण, आंशिक समाधिकरण एवं दाह संस्कार तीनो विधियों का प्रयोग करते थे .यहाँ से भूकंप आने के प्राचीनतम साक्ष्य मिलते है,जिन्होंने कालीबंगन को नष्ट होने में प्रभावी भूमिका  निभाई..

  लोथल :  गुजरात राज्य में खंभात की खाड़ी के नजदीक साबरमती एवं भोगवा नदी के संगम पर अहमदाबाद जिले के सरगवल नामक गाँव में  स्थित है . इस स्थल की खोज एस.आर.राव ने 1954 ई. में की थी.यह भारतीय भूभाग में पाया जानेवाला एकमात्र बंदरगाह नगर है.लोथल नगर 6 खंडो में विभाजित है. इसके पूर्वी क्षेत्र में एक बहुत बड़ी गोदी मिली है ,जो  खुदाई में प्राप्त सम्पूर्ण  हड़प्पा स्थलों में सबसे बड़ा है. इसका का आकर  218 x 37 x 3.30  मी. है. इसके उत्तरी भाग में प्रवेशद्वार एवं दक्षिणी भाग में निकास द्वार है.  यह विश्व का प्राचीनतम ज्ञात गोदिवाडा है.यहाँ मिस्र एवं मेसोपोटामिया से व्यापारिक जहाज सदैव आते-जाते थे.इसका सम्बन्ध मोहनजोदड़ो से घनिष्ट रूप से जुदा हुया था. लोथल एकमात्र ऐसा हड़प्पा स्थल है ,जहा दरवाजे बगल की गल्यों में न खुलकर सामने सड़क की ओर खुलते थे .लोथल आयताकार बस्ती है ,इसका आंतरिक विभाजन नहीं किया गया है. यहं की सबसे बड़ी उपलब्धि पक्की ईंटो का प्रयोग है  .यहाँ से वृताकार एवं चौकोर अग्निकुण्ड मिले है,जो कालीबंगन से काफी समय रखते है.लोथल की सबसे बड़ी विशेषता उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र से 20 समाधियों का मिलना है .यहाँ से तीन युग्मित समाधियों के उदहारण भी मिले है ,जिससे हड़प्पा सभ्यता में सती प्रथा के प्रचालन का कयास लगाया जा रहा है .यहाँ से मिश्र में प्राप्त होनेवाले मम्मी सदृश आकृति प्राप्त हुआ है.


धौलाबीरा : गुजरात राज्य में  कच्छ जिले के भचाऊ तालुका के खादिर बैठ  के उत्तरी-पश्चिमी किनारे पर स्थित है. यह दो शब्दों धौला (सफ़ेद) और बीरा (कुआँ) से बना है. इसके निकट मानसर एवं मनहर नामक दो बरसाती नदियाँ बहती है .धौलाबीरा की खोज सर्वप्रथम जगतपति जोशी ने की 1967 68 ई. में की थी .यहाँ की नगर योजना आयताकार थी.रक्षा प्राचीर के अन्दर तीन बस्तियां -1.दुर्ग क्षेत्र (गढ़ी),2.मध्यम नगर (अवम ) 3.निचला नगर (परम ) मिलती है. धौलाबीरा में सड़कों एवं गलियों का निर्माण योजनानुसार नहीं है.यहाँ से एक सिन्धु लिपि दिवार पर अंकित मिली है,जिसका प्रत्येक अक्षर 36सेमी. ऊँचा एवं 25 सेमी. चौड़ा है.धौलाबीरा में पानी रोकने के लिए बांधों के निर्माण के साक्ष्य मिले है.यहीं से आधुनिक नहर प्रणाली स्थापित किये जाने का भी प्रमाण मिला है.लगता कि हड़प्पा निवासी अपने खेतों तक पानी तक पानी नहरों से ही पहुचाते थे .सबसे बड़ी बात यह है कि यहाँ से पालिशदार श्वेत पाषणखण्ड  (Polished rock blocks ) बड़ी संख्या में मिले है .इस स्थल की सम्पूर्ण मिटटी सफ़ेद रंग की है.संभवतः इसका प्रयोग स्तंभों के निर्माण में होता होगा .









Comments

  1. आपने बहुत ही अच्छी जानकारी दी है सर, आपने उन्ही बिंदुओं पर प्रकाश डेल हैं जिन्हे हमें जानना बहुत ही आवश्यक है साथ ही मुझे नए नए बिंदुओं को जानने तथा समझने का मौका मिला। THANK YOU सो मच सर (हड़प्पा सभ्यता के भौगोलिक विस्तार पर प्रकाश डालने के लिए)

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  2. Thank you its very helpful for me.

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