गौतम बुद्ध (GAUTAM BUDDHA)
गौतम बुद्ध का जन्म 563 ई.पूर्व में नेपाल की तराई के लुम्बिनी वन (आधुनिक रुमिन्देइ)में हुआ था।पिता शुद्धोधन,शाक्य गण के प्रधान और माता मायादेवी कोलिय गणराज्य की कन्या थी।गौतम को देखकर कालदेव तथा कौण्डिन्य ने भविष्यवाणी की थी कि बालक या तो चक्रवर्ती राजा होगा या सन्यासी। यशोधरा उनकी पत्नी थी जो बिम्बा,गोपा,भद्रकच्छाना आदि नामों से जानी जाती थी।बुद्ध ने 29 वर्ष की अवस्था में गृहत्याग किया था।बौद्ध ग्रंथों में इसे महाभिनिष्क्रमण कहा गया है।इस कार्य के लिए जो घोड़ा उपयोग में लाया गया वह गौतम का प्रिय अश्व कंथक था।वैशाली निवासी अलारकलाम बुद्ध के पहले गुरु हुए,फिर वे राजगृह चले गए जहाँ उन्होंने रुद्रक रामपुत्र को अपना गुरु बनाया।35 वर्ष की आयु में बैशाख पूर्णिमा की रात में पीपल के वृक्ष के नीचे उरुवेला (बोधगया)में ज्ञान प्राप्त हुआ।इसके बाद ही उन्हे बुद्ध की उपाधि प्राप्त हुई।बुद्ध का अर्थ होता है प्रकाशमान अथवा जाग्रत।जो अनित्य,अनंत और आतमविहीन है।संबोधि में गौतम को प्रतीत्यसमुत्पाद के सिद्धांत का बोध हुआ था।इस सिद्धांत की व्याख्या प्रतित्यसमुत्पाद नामक ग्रंथ में की गयी है।
ऋषिपतनम् (सारनाथ) में गौतम ने कौण्डिन्य सहित पाँच ब्राह्मण सन्यासियों को अपना प्रथम उपदेश सुनाया;जिसे बौद्ध ग्रंथों में प्रथम धर्मचक्रप्रवर्तन (धम्मचक्कपवतन)कहा गया है।सारनाथ में ही बुद्ध ने संघ की स्थापना की थी। इसके बाद गौतम बुद्ध ने धर्मप्रचार हेतु कई प्रदेशों का दौरा किया।उत्कल के तपस्सु और भल्लीक नामक सौदागर महात्मा बुद्ध के सबसे पहले उपासक थे। शाक्य गणराज्य के राजा भद्रिक,उनके सहयोगी आनंद,अनिरुद्ध,उपालि और देवदत्त ने बौद्धधर्म अपनाया। वैशाली में उन्होंने अपना 5वाँ वर्षाकाल और कौशाम्बी में 9वाँ वर्षाकाल बिताया था।उल्लेखनीय तथ्य यह है कि बौद्धधर्म का सर्वाधिक प्रचार कौशल राज्य में हुआ था जबकि बुद्ध ने सर्वाधिक धर्मोपदेश श्रावस्ती में दिए थे।भरहुत से प्राप्त अभिलेख में उद्घृत है कि अनाथपिण्डक ने 18 करोड़ स्वर्णमुद्राओं में राजकुमार जेत से खरीदकर जेतवन विहार बौद्ध संघ को प्रदान किया था।प्रसेनजीत ने सपरिवार बौद्धधर्म स्वीकार किया तथा संघ के लिए पुव्वाराम विहार बनवाया।बिम्बिसार,अजातशत्रु,प्रसेनजीत और उदयन ने बौद्ध धर्म को राजाश्रय प्रदान किया था।श्रावस्ती का प्रमुख डाकू अंगुलिमाल और वैशाली की प्रसिद्ध वेश्या आम्रपाली बुद्ध के शिष्य थे।80 वर्ष की आयु में कुशीनारा (आधुनिक कुशीनगर) के एक लोहार जाति के शिष्य चुन्द के घर शुक्करमद्दव नामक पदार्थ खाने से उनकी मृत्यु हो गयी।बौद्ध साहित्य में इस घटना को महापरिनिर्वाण बताया गया है।निर्वाण इसी जन्म में प्राप्त हो सकता है जबकि महापरिनिर्वाण मृत्यु के बाद ही सम्भव है।बुद्ध की मृत्यु के बाद उनके अवशेष को 8 भागों में विभाजित किया गया।मगध के राजा अजातशत्रु तथा इस क्षेत्र के गणराज्यों ने स्तूप का निर्माण कर इसे सुरक्षित रखा।
ऋषिपतनम् (सारनाथ) में गौतम ने कौण्डिन्य सहित पाँच ब्राह्मण सन्यासियों को अपना प्रथम उपदेश सुनाया;जिसे बौद्ध ग्रंथों में प्रथम धर्मचक्रप्रवर्तन (धम्मचक्कपवतन)कहा गया है।सारनाथ में ही बुद्ध ने संघ की स्थापना की थी। इसके बाद गौतम बुद्ध ने धर्मप्रचार हेतु कई प्रदेशों का दौरा किया।उत्कल के तपस्सु और भल्लीक नामक सौदागर महात्मा बुद्ध के सबसे पहले उपासक थे। शाक्य गणराज्य के राजा भद्रिक,उनके सहयोगी आनंद,अनिरुद्ध,उपालि और देवदत्त ने बौद्धधर्म अपनाया। वैशाली में उन्होंने अपना 5वाँ वर्षाकाल और कौशाम्बी में 9वाँ वर्षाकाल बिताया था।उल्लेखनीय तथ्य यह है कि बौद्धधर्म का सर्वाधिक प्रचार कौशल राज्य में हुआ था जबकि बुद्ध ने सर्वाधिक धर्मोपदेश श्रावस्ती में दिए थे।भरहुत से प्राप्त अभिलेख में उद्घृत है कि अनाथपिण्डक ने 18 करोड़ स्वर्णमुद्राओं में राजकुमार जेत से खरीदकर जेतवन विहार बौद्ध संघ को प्रदान किया था।प्रसेनजीत ने सपरिवार बौद्धधर्म स्वीकार किया तथा संघ के लिए पुव्वाराम विहार बनवाया।बिम्बिसार,अजातशत्रु,प्रसेनजीत और उदयन ने बौद्ध धर्म को राजाश्रय प्रदान किया था।श्रावस्ती का प्रमुख डाकू अंगुलिमाल और वैशाली की प्रसिद्ध वेश्या आम्रपाली बुद्ध के शिष्य थे।80 वर्ष की आयु में कुशीनारा (आधुनिक कुशीनगर) के एक लोहार जाति के शिष्य चुन्द के घर शुक्करमद्दव नामक पदार्थ खाने से उनकी मृत्यु हो गयी।बौद्ध साहित्य में इस घटना को महापरिनिर्वाण बताया गया है।निर्वाण इसी जन्म में प्राप्त हो सकता है जबकि महापरिनिर्वाण मृत्यु के बाद ही सम्भव है।बुद्ध की मृत्यु के बाद उनके अवशेष को 8 भागों में विभाजित किया गया।मगध के राजा अजातशत्रु तथा इस क्षेत्र के गणराज्यों ने स्तूप का निर्माण कर इसे सुरक्षित रखा।
गौतम बुद्ध ने ही बौद्ध धर्म की शुरुआत की थी। इनका जन्म नेपाल में हुआ था और बचपन में इनका नाम सिद्धार्थ गौतम रखा गया था।
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