भारत में आदिम मानव का विकास भाग -2
विश्व परिदृश्य में नवपाषण काल का उद्भव 9000 ई.पूर्व में हुआ था ,जबकि भारतीय महाद्वीप के सन्दर्भ में नवपाषण काल का आरम्भ 7000 ई.पूर्व से माना जाता है .इस काल का प्राचीनतम पुरास्थल बलूचिस्तान स्थित मेहरगढ़ है .5000 ई. पूर्व के पहले यहाँ के लोग मृदभांड का प्रयोग नहीं करते थे .विन्ध्य क्षेत्र में नवपाषण कालीन बस्तियाँ 5000 ई.पूर्व तथा दक्षिण भारत में यह 2500 ई. पूर्व की है .इस युग के लोग पत्थर के औजार एवं हथियारों का प्रयोग करते थे खासकर पट्ठे की कुल्हाडियों का .कश्मीर से प्राप्त नवपाषण कालीन स्थलों में बुर्झोम एवं गुफ्फ्कराल विशेष रूप से उल्लेखनीय है.बुर्जहोम नामक पुरास्थल की खोज 1935 ई. में डी.टेरा एवं पीटरसन ने की थी .जबकि गुफ्फ्करल की खोज बाद के काल में 1981 ई.ए .के. शर्मा ने करवाई थी .कश्मीरी नवपाषण कालीन संस्कृति की कई विशेषताएं है;जैसे गर्त्तावास (गड्ढे में घर बनाकर रहना ),मृदभांड की विविधता ,तथा पत्थर एवं हड्डी के औजार .बुर्जहोम के लोग जमीन के नीचे घर बनाकर रहते थे तथा शिकार एवं मछली पर जीते थे.गुफ्फकराल ,जिसे कुम्हारों की गुहा भी कहा जाता है,के लोग कृषि एवं पशुपालन करते थे .बुर्जहोम की एक खास विशेषता यह है कि यहाँ की कब्रों में पालतू कुत्ते अपने मालिक के शवों के साथ दफनायें हुए मिले है.
विन्ध्य क्षेत्र में नवपाषण कालीन स्थल बेलान्घती में स्थित कोल्दिहावा ,महागडा ,और पंचोह है.कोल्डीहवा से नवपाषण काल के साथ-साथ ताम्र तथा लौह्कालीन संस्कृति के अवशेष भी प्राप्त होते है .कोल्डीहवा सेके उत्खनन से धन की खेती किये जाने का प्राचीनतम साक्ष्य मिला है ,जो ईसा के 7000-6000 ई.पूर्व का है .यहाँ से पशुपालन का भी साक्ष्य प्राप्त हुआ है.मध्य गंगा घाटी में सर्वाधिक महत्वपूर्ण नवपाषण कालीन स्थल चिरांद है.यहाँ से इसके साथ ही ताम्र पाषण युग के अवशेष भी प्राप्त हुए है.यहाँ से प्राप्त उपकरणों में हड्डियों से निर्मित उपकरण प्रमुख है, जो हिरन के हड्डियों से बने है.दक्षिण भारत में नवपाषण काल के प्रमुख स्थलों में कर्नाटक में मास्की,ब्रह्मगिरी ,संगनकल्लू ,हल्लूर ,कोदेकल,टी.नरसीपुर,पिकलीहल्ल ,तेक्कालकोट है.आंध्रप्रदेश में प्राप्त स्थलों में नागार्जुनीकोंडा,उत्तनुर,फलवाय,एवं सिगुनपल्लीप्रमुख है.तमिलनाडु में पय्यमपल्ली प्रमुख है.पिकलीहल्ल के नवपाषण कालीन लोग पशुपालक थे .
नवपाषण कालीन लोगों की मुख्य विशेषता यह थी कि येलोग घुम्मकड़ एवं खानावोदोश जीवन त्यागकर घर बनाकर स्थायी रूप से रहने लगे थे इस युग निवासी सबसे प्राचीन कृषक समुदाय के माने जाते है . खेती के लिए पत्थर के कुदालों(हो )का इस्तेमाल करते थे.ये लोग रागी एवं कुल्थी की खेती धड़ल्ले से करते थे .मेहरगढ़ के लोग गेहूं ,जौ एवं रुई उपजाते थे तथा कच्चे ईटों के मकानों में निवास करते थे .कुम्भकारीका प्रचलन सर्वप्रथम नवपाषण काल में ही दिखाई पड़ता है .इस काल के प्रमुख मृदभांड थे -पालिशदार काला मृदभांड ,धूसर मृदभांड ,और चटाई की छापवाले मृदभांड .इस काल के निवासी अग्नि के प्रयोग से भली-भाति परिचित थे .
विन्ध्य क्षेत्र में नवपाषण कालीन स्थल बेलान्घती में स्थित कोल्दिहावा ,महागडा ,और पंचोह है.कोल्डीहवा से नवपाषण काल के साथ-साथ ताम्र तथा लौह्कालीन संस्कृति के अवशेष भी प्राप्त होते है .कोल्डीहवा सेके उत्खनन से धन की खेती किये जाने का प्राचीनतम साक्ष्य मिला है ,जो ईसा के 7000-6000 ई.पूर्व का है .यहाँ से पशुपालन का भी साक्ष्य प्राप्त हुआ है.मध्य गंगा घाटी में सर्वाधिक महत्वपूर्ण नवपाषण कालीन स्थल चिरांद है.यहाँ से इसके साथ ही ताम्र पाषण युग के अवशेष भी प्राप्त हुए है.यहाँ से प्राप्त उपकरणों में हड्डियों से निर्मित उपकरण प्रमुख है, जो हिरन के हड्डियों से बने है.दक्षिण भारत में नवपाषण काल के प्रमुख स्थलों में कर्नाटक में मास्की,ब्रह्मगिरी ,संगनकल्लू ,हल्लूर ,कोदेकल,टी.नरसीपुर,पिकलीहल्ल ,तेक्कालकोट है.आंध्रप्रदेश में प्राप्त स्थलों में नागार्जुनीकोंडा,उत्तनुर,फलवाय,एवं सिगुनपल्लीप्रमुख है.तमिलनाडु में पय्यमपल्ली प्रमुख है.पिकलीहल्ल के नवपाषण कालीन लोग पशुपालक थे .
नवपाषण कालीन लोगों की मुख्य विशेषता यह थी कि येलोग घुम्मकड़ एवं खानावोदोश जीवन त्यागकर घर बनाकर स्थायी रूप से रहने लगे थे इस युग निवासी सबसे प्राचीन कृषक समुदाय के माने जाते है . खेती के लिए पत्थर के कुदालों(हो )का इस्तेमाल करते थे.ये लोग रागी एवं कुल्थी की खेती धड़ल्ले से करते थे .मेहरगढ़ के लोग गेहूं ,जौ एवं रुई उपजाते थे तथा कच्चे ईटों के मकानों में निवास करते थे .कुम्भकारीका प्रचलन सर्वप्रथम नवपाषण काल में ही दिखाई पड़ता है .इस काल के प्रमुख मृदभांड थे -पालिशदार काला मृदभांड ,धूसर मृदभांड ,और चटाई की छापवाले मृदभांड .इस काल के निवासी अग्नि के प्रयोग से भली-भाति परिचित थे .
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