Act Of South East Policy

                              एक्ट एट दक्षिण- पूर्व एशिया पॉलिसी के निहितार्थ




आभार: गूगल इमेज 

: http://gyanpradayani.com/act-at-south-east-policy प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी  25वें एशियन सम्मेलन ने पी टो ((म्यानमार) में अपने अभिभाषण के क्रम में दक्षिण- पूर्व देशों के साथ भारत के सम्बन्धों को रेखांकित करते हुए कहा कि इन  देशों के साथ हमारे सिर्फ राजनीतिक ही नहीं वरन सांस्कृतिक और आध्यात्मिक सम्बन्ध भी सदियों से रहे हैं. प्रधानमंत्री का आर्थिक गतिविधियों के साथ सांस्कृतिक और आध्यात्मिक स्तर  इन देशों को पर जोड़ने की कवायद भारत की विदेश नीति में  विचलन को दर्शाता है . 1990 के उतरार्द्ध से सफलतापूर्वक संचालित 'लुक एट ईस्ट' पालिसी अब पुरानी पड़ चुकी है ,अब कुछ करने का समय है .यहीं कारण है कि नई दिल्ली पूर्वी एशियाई देशों के साथ अब 'एक्ट एट ईस्ट' पालिसी अजमाना चाहता है . इसका एकमात्र मंतव्य पूर्वी देशों के भारत में विदेशी निवेश को आकर्षित कर प्रधानमंत्री अपनी महत्वाकांक्षी योजना ' कम इन इंडिया एंड मेक इन इंडिया को गति प्रदान करना चाहते है .
                                   आर्थिक सम्बन्धों के साथ -साथ अपने सांस्कृतिक एवं अध्यात्मिक सम्बन्धों पर बल देना , इस बात का द्योतक है कि भारत इन देशों के साथ अपने रिश्तों को नए सिरे से व्याख्यायित कर रहा है .नयी दिल्ली की विदेश नीति सदैव से ही आपसी  सहमति और सौहार्द्र के साथ आगे बढ़ा है .भारत पूर्वी देशों के सहयोग से यहाँ के आधारभूत ढांचें का  विकास  करना चाहता है; साथ ही वह एक कारीडोर स्थापित करना चाहता है ताकि इन देशों तक पहुँच आसन हो सके . लेकिन विदेश नीति के जानकर और म्यांमार में भारत के राजदूत रह चुके जी .पार्थसारथी का मानना है कि भारत अपने मुद्राभंडार में तब तक  कोई  वृद्धि नहीं कर सकता है जब तक अपने पर्यटन को नई ऊँच्चाई नहीं देगें . पूर्वी एशियाई देशों  के अधिकांश देश बुद्धिस्ट और हिन्दू धर्मावलम्बी है; अपने धार्मिक स्थलों के साथ बुद्धिस्ट सर्किट को  सही ढंग से व्यवस्थित कर बड़े पैमाने पर यहाँ के पर्यटकों को आकर्षित कर सकते है .बुद्धिस्ट सर्किटों के विकास में म्यांमार, श्रीलंका .जापान .चीन. इंडोनेशिया ,मलेशिया थाईलैंड हमारे स्वाभाविक सहयोगी हो सकते है . 
                                                         बुद्धिस्ट सर्किट में बौद्ध धर्म से सम्बन्धित उन पवित्र स्थलों को समावेशित गया किया है जिसका सम्बन्ध किसी न किसी प्रकार से बुद्ध से रहा है यथा ,उनका जन्मस्थान लुम्बिनी ,बोधगया जहाँ उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई थी ,सारनाथ जहाँ उन्होंने अपना प्रथम धर्मचक्रप्रवर्तन किया तथा कुशीनगर ,जहाँ बुद्ध को मोक्ष की प्राप्ति हुई थी .इनके अतिरिक्त उन स्थलों को भी इस सर्किट में जोड़ने का प्रयत्न किया गया है जहाँ किसी न किसी उद्देश्य से महात्मा बुद्ध ने यात्रा की थी .ये स्थल उत्तरी भारत एक बड़े भाग में बिखरें पड़े है .
मध्य - एशिया के साथ भारत के सांस्कृतिक सम्बन्ध :- प्राचीन काल में दक्षिण - पुर्व एशियाई देशओं को पूर्वी देश और हिन्द-चीन कहा जाता था जिसके अंतर्गत कम्बोडिया, म्यानमार,इंडोनेसिया , मलेशिया, थाईलैंड, बानियों और बाली के द्वीप शामिल थे | भारतवासी इस सम्पूर्ण भू-भाग को 'सुवर्णभूमि' तथा 'सुवर्णद्वीप' के रूप से जानते थे | इन क्षेत्रो में भारतीयों ने प्राकृतिक आपदायों को नजरअंदाज कर अपने व्यापारिक गतिविधियों को काफी आगे तक पहुचाया| क्योंकि यह भू-भाग खनिजों , बहुमूल्य धातुओं, गर्म मशालो का एक समृद्ध भंडार सुरक्षित रखा था | बुद्धिस्ट कानिकल, जातक ग्रंथों एवं यात्रियों के वृतांतों से पता चलता है की बौद्ध भिक्षुओ ने इन प्रदेशों में जाकर अपने धर्म का प्रचार किया था | साहसी क्षत्रिय राजकुमारों ने वहाँ पहूंचकर अपने राज्य स्थापित किये | अंकोरवाट का विष्णु मंदिर (कम्बोडिया) माईसोन का आनन्द मंदिर आदि एवं बोरोबुदुर बौद्ध-स्तूप जैसे कीर्ति स्मारकों का निर्माण करवाया था .
अंकोरवाट के प्रख्यात विष्णुमंदिर का निर्माण 1125 ई० में कम्बोडिया के शक्तिशाली शासक सूर्यवर्मन द्वितीय ने करवाया था | यह मंदिर चारों ओर से खाईयों से घिरा है जिसकी लम्बाई 2.5 मील और चौड़ाई 650 फीट है . मंदिर में जाने के लिए 40 फीट चौड़ा एक पुल है | यह मंदिर ढाई मील के घेरे में पूर्णतः पत्थरों से निर्मित है | तीन हजार फुट की चौकोर चबुतरें पर बने इस मंदिर के प्रवेशद्वार से अंदर जाते ही लगभग आधे मील की परिधि में बनी एक गैलरी जिसे मंदिर का प्रदक्षिणापथ कहा जाता है ,मिलती है .मंदिर का गर्भगृह ऊंचे स्थान पर निर्मित किया गया है ,जहाँ सपहुचने के लिए सीढियाँ बनाई गयी है .मंदिर के बीच का शिखर सबसे ऊँच्चा है तथा चारों कोनो पर चार अन्य शिखर बनाये गए है .मंदिर अपनी मूर्तिकारी के लिए प्रसिद्ध है .इसकी दीवारों पर पौराणिक कथाओं का अंकन चित्रों द्वारा किया गया है .रामायण की संपूर्ण कथा यहाँ उत्त्कीर्ण मिलती है .
बोरोबद्दुर के विशाल बौद्ध -स्तूप का निर्माण 750- 850 ई. के मध्य शैलेन्द्र राजाओं के संरक्षण में हुआ था .इसमें कुल नौ चबूतरें है .प्रत्येक उपरी चबूतरा अपने निचले से छोटा होता गया है .सबसे ऊपरी चबूतरे के मध्य में घंटाकृति का स्तूप बनाया गया है ,जो संपूर्ण निर्माण को घेरें हुए है .नौ चबूतरों में से छः वर्गाकार है तथा उपरी तीन गोलाकार है .ऊपर के तीन चबूतरों पर 72 स्तूप निर्मित है जिनके ताखों में बुद्ध प्रतिमायें है .नीचे के चबूतरों की दीवार पर जातक कथायें बनाई गई है तथा चारों दिशाओं से ऊपर जाने के लिए सीढ़ियाँ बनी है . 

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