हिंदी उपन्यास में सांप्रदायिक चेतना
बहुभाषी अत्यंत जटिल सामाजिक संरचना वाले विविध धर्म एवं संप्रदाय वाले देश भारत में सांप्रदायिकता एवं सांप्रदायिक समस्या सदियों से मूलभूत समस्या के रूप में रही है संप्रदायिक मनु भावना और उससे अवांछित रूप काल के अपने विशिष्ट संदर्भों में अपने-अपने ढंग से अतीत के भारतीय इतिहास का भी उसी तरह हिस्सा रहे जैसे कि वे आधुनिक भारत के हमारे अपने समय में हमारी अपनी चिंता का अभिन्न और आत्यंतिक हिस्सा है भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में जहां सभी धर्म जातियों एवं वर्गों के लोग शांति पूर्ण पूर्ण पूजा के साथ सह अस्तित्व की भावना से रहते हैं उसी भूमि को इस भावना ने रोग ग्रस्त कर दिया है सदियों से एक साथ एक भूमि पर हत्या रहे हिंदू मुसलमानों के बीच धीरे-धीरे पनपता घूर अविश्वास भयानक संप्रदायिकता का रूप ले लिया है लेकिन देखा जाए तो भारतीय समाज में इसकी जड़ें प्राचीन काल से ही गहरी और मजबूत है समय के बदलाव के साथ यह कट्टरता और उदारता का चोला धारण कर लेती है सत्ता पर काबिज रहने के लिए समाज के विभक्ति करण की प्रक्रिया अपनाने का कार्य सदियों से अनवरत रूप से चलता आ रहा है। की समस्याओं का रेखांकन सिर्फ इतिहास की पु