शंकराचार्य : विचार एवं दर्शन
बौद्धिक स्तर पर बुद्ध के चिंतन की जड़े हिलानेवाले मध्ययुगीन संतों एवं विचारकों में शंकराचार्य अग्रगण्य थे।इस काल में दार्शनिक ज्ञानमार्गियों में सबसे अधिक ख्याति शंकराचार्य को ही प्राप्त हुई थी।बौद्धों का प्रभाव घटाने तथा वेदों-ब्राह्मणों की महत्ता को स्थापित करने के लिए शंकराचार्य ने अपने आध्यात्मिक चिंतन में अद्वैतवाद के सिद्धांत पर जोर दिया। ज्ञान मार्ग के साथ-साथ शंकर ने निर्गुण ब्रह्म की उपासना का भी प्रचार किया।साथ ही साथ ईश्वर को शिव का स्वरूप देकर जनसाधारण के लिए शैव उपासना और पंडितों के लिए ज्ञान मार्ग के द्वारा एकेश्वरवाद का मार्ग प्रशस्त किया।शंकराचार्य का जन्म उत्तरी त्रावणकोर में अलवाय नदी के तट पर कलाड के नाम्बुदरी ब्राह्मण के घर 788 ई.में हुआ था। बहुत छोटी उम्र में ही पिता का देहांत हो गया था।उसी समय से शंकराचार्य सन्यासी हो गए।गौडपाद के शिष्य गोविन्द योगी उनको दीक्षा दी थी।अपनी छोटी सी जिंदगी में ही उन्होंने सम्पूर्ण भारत का भ्रमण किया और कठोर रूप से संगतिपूर्ण ब्रह्मवाद के अपने नए दर्शन का प्रचार किया। शंकराचार्य ने शास्त्रार्थ और वाद-विवाद में अपनी बुद्धि की प्रखर