साम्प्रदायिकता का उद्भव एवं विकास जनतांत्रिक एवं विकासशील देश के लिए राष्ट्रीय स्तर पर सामाजिक सौहार्द एवं जनता में एकता कायम रखना प्रमुख प्राथमिकता में शामिल है। आधुनिक भारत के इतिहास में इस प्रकार की एकता के लिए भारतीय जनता, समाज तथा राजनीति के साम्प्रदायिकीकरण के कारण बहुत बड़ी चुनौती उठ खड़ी हुई थी। जहाँ एक ओर भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन का उद्देश्य सभी भारतीयों की एकता थी, वहीं धार्मिक सम्प्रदाय, धार्मिक हितों और अंततः धार्मिक राष्ट्र की कृत्रिम सीमाएँ तैयार करके लोगों में धार्मिक आधार पर फूट डालने के लिए साम्प्रदायिकता प्रयत्नशील रही। 19वीं शताब्दी के विशिष्ट सामाजिक, आर्थिक विकास, औपनिवेशिक शासन की भूमिका, इसकी प्राथमिकताएं और उन्हें पूरा करने के लिए इसके द्वारा उठाये गये कदम, साम्प्रदायिकता विरोधी शक्तियों की कमजोरियाँ एवं सीमायें और बीसवीं शताब्दी में साम्प्रदायिक शक्तियों का उत्थान के कारण भारत का विभाजन एवं पाकिस्तान का गठन साम्प्रदायिकता की तार्किक परिणाम था। साम्प्रदायिकता ऐसी मान्यता है जिसके अनुसार धर्म समाज का आधार तथा समाज के विभाजन की आधारभूत ईकाई तैयार करता है।
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