भारत में प्रचलित प्रामुख सम्बत्

विक्रम संवत्  - इसका प्रारम्भ 57  ई.पूर्व में हुआ था।मालव शासक विक्रमादित्य ने शकों को पराजित करने के उपलक्ष्य में इसे चलाया था। यज संवत् दो और नामों से जाना जाता है- 1. कृत संवत् और 2. मालव संवत् ।


शक संवत् - शक संवत् को कुषाण शासक कनिष्क ने 78 ई. में चलाया था। सर्वप्रथम शक शासकों ने इस संवत् का प्रयोग किया था। फलतः यह कनिष्क संवत् से शक संवत् में बदल गया ।पांचवीं सदी के बाद के लेखों में शक संवत् का उल्लेख मिलता है।

गुप्त संवत् - इसका प्रचलन गुप्तवंशीय शासक चन्द्रगुप्त प्रथम ने 319 ई. में किया था। इस संवत् को गुप्तप्रकाल भी कहा जाता है। गुप्तयुग में ही गुजरात के शासक इस संवत् का प्रयोग करते थे।

बल्लभी संवत् -  बल्लभी संवत् की जानकारी का स्रोत अलबरूनी का किताबुल हिन्द नामक ग्रंथ है। इसके अनुसार इसे किसी बल्लभ राजा ने 319 ई. में प्रचलित किया था।

हर्ष संवत् - हर्ष संवत् का प्रचलन पुष्यभूति वंश के शासक हर्षवर्धन द्वारा 606 ई. करवाया गया था। उत्तरगुप्त राजाओं के लेखों तथा नेपाल से प्राप्त कुछ लेखों में इसका उपयोग मिलता है।

कलचुरि-चेदि संवत्  - इस संवत् का प्रचलन आभीर शासक ईश्वरसेन ने 248-249 ई. में पश्चिम भारत में किया था।बाद में कलचुरियों इसे अपना नाम दिया। यह वस्तुतः स्थानीय गणना है।

Comments

Popular posts from this blog

प्रख्यात आलोचक हजारी प्रसाद द्विवेदी

साम्प्रदायिकता का उद्भव एवं विकास

ब्रिटिश राज के अन्तर्गत स्त्री-शिक्षा