स्वामी दयानंद सरस्वती

                                         
                          साभार :गूगल (केवल चित्र )
स्वामी दयानंद सरस्वती का जन्म 12 फरवरी 1824 को गुजरात प्रान्त के मौर्वी तहशील में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था . इनके पिता वेदों के प्रकांड विद्वान् थे .इन्होने शुरुआती दिनों में अपने पिता से ही शिक्षा प्राप्त की थी .समय से आगे की सोच रखनेवाले मूलशंकर की  हिन्दू धर्म की मूर्तिपूजा से विश्वास तब डिगा ,जब उन्होंने एक चूहे को भगवन पर चढ़े हुए अक्षत को खाते हुए देखा.21वर्ष की अवस्था में मूलशंकर ने अपना घर छोड़कर 1845 ई.में चल पड़े .1848 ई. में भ्रमण के क्रम में उनकी मुलाकात स्वामी पूर्णानंद से हुयी ,जिन्होंने उनका प्रसिद्द नाम दयानंद सरस्वती दिया.1861 ई. में मथुरा 15 वर्षों तक भटकने के बाद पहुचे ,जहा उनकी भेंट स्वामी सहजानंद से हुई. स्वामीजी ने दयानंद को वेदों की वास्तविक शिक्षा प्रदान की.उन्होंने अपने गुरु को वचन दिया की वे पुरे भारत में वैदिक धर्म और संस्कृति का प्रचार-प्रसार करेंगे .इसी क्रम में उन्होंने हरिद्वार में कुम्भ के अवसर पाखंड  खंडिनी  पताका फहरायी .वैदिक धर्म के उत्थान के लिए हरिद्वार में ही वैदिक मोहन आश्रम की स्थापना की .
            पाश्चात्य अपसंस्कृति  से  हिन्दू धर्म को बचने के लिउए स्वामी दयानंद सरस्वती ने  वेदों को सर्वोपरि माना तथा वेदों की लौटों का नारा दिया .वेदों की महत्ता सिद्ध करने के लिए उन्होंने वेद भाष्य एवं वेद भाष्य की भूमिका नामक ग्रन्थ की रचना की .केशवचंद्र से प्रेरणा प्राप्त कर उन्होंने हिंदी भाषा में 1874 ई. में विश्वप्रसिद्ध सत्यार्थ प्रकाश नामक ग्रन्थ की रचना की . दयानंद सरस्वती पहले भारतीय थे जिन्होंने स्वदेशी का नारा दिया .भारतियों में आत्मगौरव पैदा करने के लिए उन्होंने भारत भारतियों के लिए है ,की अवधारणा को प्रस्तुत किया . महत्मा गाँधी से बहुत पहले स्वामी ने यह जान लिया था कि  भारतियों में एकता हिंदी भाषा के माध्यम से ही स्थापित हो सकती है . इसलिए उन्होंने हिंदी भाषा को संपर्क भाष के रूप में अपनाये जाने पर बल दिया .
   भारतीय समाज को धर्म परिवर्तन से बचने के लिए दयानंद सरस्वती शुद्धि आन्दोलन चलाया .सरस्वती की सबसे बड़ी उपलब्धि 1875 ई. में आर्य समाज की स्थापना थी . पहले इसका मुख्यालय बम्बई में स्थापित किया गया था बाद में 1877 ई. में  लाहौर कर दिया गया . 1882 ई. में इन्होने गौरक्षा  समिति  बनाई . अजमेर में 30 अक्तूबर ;1883 ई.को दयानंदसरस्वती की मुत्यु हो गयी .

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