महिला सशक्तिकरण:19वीं शताब्दी में महिला सशक्तिकरण के प्रयास
19वीं शताब्दी में महिला सशक्तिकरण के प्रयास महिला अधिकारिता के प्रश्न पर चिन्तन और वैचारिक संघर्षों की शुरुआत दो शताब्दियों से कुछ पहले अमेरिकी और युरोपीय बुर्जुआ जनवादी क्रांतियों की पूर्ववेला में हुई थी जब प्रबोधनकालीन आदर्शों से प्रभावित और जनान्दोलनों में सक्रिय जागरुक स्त्रियों ने मनुष्य के प्राकृतिक अधिकार और स्वतंत्रता- समानता-भातृत्व की धारणाओं को स्त्रियों के लिए भी लागू करने की मॉँग उठाई। तब से लेकर 19वीं शताब्दी के अंत तक विश्व के प्रायः सभी हिस्सों में स्त्री आन्दोलनों का, स्त्री-पुरुष समानता एवं स्त्री अधिकारों के विविध पक्षों को लेकर चली बहसों का और स्त्री-प्रश्न पर विचार एवं पुनर्विचार का सिलसिला चल पड़ा। 19वीं शताब्दी में भारत में भी बौद्धिक एवं सांस्कृतिक हलचलें अॅँगड़ाईयॉँ ले रही थी जिनको सामाजिक क्षेत्रों में भी महसूस किया जाने लगा था। यह बौद्धिक लहर ब्रिटिश साम्राज्य की प्रतिक्रियास्वरुप उठी। विदेशी संस्कृति के फैलाव से भारतीयों के लिए यह जरुरी हो गया था कि वे आत्मनिरीक्षण करें और सांस्कृतिक एवं सामाजिक संस्थाओं की शक्ति और कमजोरियों की पहचान करें। उन्होंने अपनी