भारत में समाचारपत्रों का इतिहास

  भारत में समाचारपत्रों का इतिहास

भारत में सबसे पहले पुर्तगाली प्रेस लेकर आए थे तथा 1557 में गोवा के पादरियों ने पहली पुस्तक भारत में छपी थी। जेम्स आगस्टस हिक्की  ने 1780 ई. में पहला समाचार पत्र साप्ताहिक पत्र के रूप में बंगाल गजट या कोलकाता जनरल एडवाइजर के रूप में निकालना शुरू किया। उसके बाद इंडियन बर्ड का संपादन शुरू हुआ, जिसके संपादक डुएन थे ।1796 में मैकेनली ने टेलीग्राफ शुरू किया। 1799 देश में प्रकाशित सभी समाचारपत्रों पर सेंसर स्थापित कर दिया गया। सरकारी सहायता से प्रकाशित प्रथम पत्र 1784 इसवी में कोलकाता गजट था। बंगाल किरकारू के संपादक चार्ल्स मैक्लीन के विरुद्ध कार्यवाही की गई। 1818 में सेंसर खत्म कर दिया गया। नए नियम के अनुसार संपादक को इंग्लैंड में भारतीय अधिकारियों के आचरण पर आलोचना करने पर रोक लगा दिया गया ।कोलकाता मॉर्निंग पोस्ट (1798) आर्चीबोल्ड द्वारा प्रकाशित वेलेजली के समय में लागू समाचार पत्रों के सेंसरशिप अधिनियम का पालन करने वाला पहला समाचार पत्र था ।किसी भी भारतीय द्वारा अंग्रेजी में प्रकाशित है पहला समाचारपत्र गंगाधर भट्टाचार्य का सप्ताहिक बंगाल गजट था, जो 1816 इसी में प्रकाशित हुआ।

1818 में भारतीय भाषा में सर्वाधिक प्राचीन बांग्ला भाषा में कैरे और मार्शमैन ने समाचार दर्शन का प्रकाशन शुरू किया। इसी वर्ष 1818 में जे.एस. बकिंघम ने कोलकाता गजट निकाला। भारत सरकार ने सर टॉमस मुनरो को भारत में समाचारपत्रों की जांच करने तथा उन पर विवरण देने के लिए नियुक्त किया। 1821 में बांग्ला भाषा में संवाद कौमुदी और 1822 में फारसी में मिरातुल अखबार का प्रकाशन राजा राममोहन राय ने प्रारंभ किया था। जॉन ऐडम्स के कार्यवाहक गवर्नर जनरल के काल में 1823 ई. में लाइसेंसिंग रेग्युलेशन पारित हुआ, जिसके अनुसार कोई छापाखाना या कोई समाचारपत्र तथा पुस्तिका प्रकाशित नहीं जा पाएगी ,जब तक सरकार से उसके संबंध में लाइसेंस प्राप्त नहीं हो जाता। राजा राममोहन राय को अपनी पत्रिका मिरातुल अखबार को बंद करना पड़ा ।1823 और 1835 के बीच दो प्रमुख समाचारपत्र प्रकाशित हुए। 1830 में ईश्वरचंद्र गुप्त द्वारा संपादक प्रभाकर और 1831 में जाम- ए- जमशेद पी .एम. मोतीवाला के द्वारा। 1826 में पंडित युगलकिशोर हिंदी का प्रथम पत्र उदंत मार्तंड निकालना शुरू किया,लेकिन यह1829 के बाद नहीं चल पाया ।1835 में कार्यवाहक गवर्नर जनरल चार्ल्स मेटकॉफ ने भारतीय समाचारपत्रों पर से प्रतिबंध हटा दिया। इन्हें ‘समाचारपत्रों के मुक्तिदाता’ की पदवी प्रदान की गई। 1835 से 1857 तक भारतीय समाचारपत्र स्वतंत्र रहे ।इस दौरान बेनेट कोलमैन एंड कंपनी द्वारा अंग्रेजी में 1838 ई. में मुंबई टाइम्स का प्रकाशन प्रारंभ हो गया जो 1861 से टाइम्स ऑफ इंडिया के नाम से प्रसिद्ध हो गया। 1853 में हरिश्चंद्र मुखर्जी ने हिंदू पैट्रियाट और 1858 सोमप्रकाश का प्रकाशन ईश्वरचंद विद्यासागर के द्वारा शुरू किया गया। 1857 ई.मे प्रकाशित पुस्तकों और समाचारपत्रों के प्रसार पर पाबंदी लगाने के लिए लाइसेंसिंग एक्ट पारित किया गया जो मात्र एक वर्ष तक लागू रहा ।

1866 में द बंगाली तथा अखबार- ए -आम लाहौर में सप्ताहिक पत्र के रूप में आरंभ किया गया।1867  रजिस्ट्रेशन कानून पारित किया गया। इसके 25वें अधिनियम से 1835 के अधिनियम को रद्द कर दिया गया तथा प्रत्येक मुद्रित पुस्तक तथा समाचारपत्र पर मुद्रक, प्रकाशक, मुद्रण के स्थान का नाम होना आवश्यक बना दिया गया।1868 में शिशिरकुमार घोष और मोतीलाल घोष ने कोलकाता से अमृतबाजार पत्रिका का प्रकाशन शुरू किया।इसके बाद प्रथम सान्ध्य समाचार पत्र 1868 में मद्रास मेल प्रकाशित हुआ । 1875 से स्टेट्समैन और 1878 में वीर राघवाचारी ने द हिंदू का प्रकाशन शुरू किया।1878 में लॉर्ड लिटन ने वर्नाकुलर प्रेस एक्ट पारित किया। इसके द्वारा सरकार ने भारतीय समाचार भाषा में भारतीय भाषा के समाचार पत्रों को अधिक नियंत्रण में लाने का प्रयास किया और इसे राजद्रोही लेखों को दबाने और दंडित करने के लिए अस्त्र के रूप में प्रयोग किया ।इसमें मजिस्ट्रेट को इस बात का अधिकार दिया गया कि वह  प्रांतीय सरकार की पूर्व स्वीकृति से किसी मुद्रक तथा प्रकाशक को जमानत जमा करने की आज्ञा दे तथा ऐसे प्रतिज्ञापत्र भरवाए जिससे वह सरकार के प्रति घृणा की भावना भड़काने वाले किसी वस्तु का मुद्रण या प्रकाशन न कर सके तथा वह सरकारी सेन्सर को  प्रूफ भेजे एवं ऐसी सामग्री को हटा दें, जो अस्वीकृत हो ।इस अधिनियम को' मुंह बंद करने वाला अधिनियम' कहा गया । इस एक्ट की सबसे बड़ी कमजोरी यह थी कि इसमें देसी भाषा और अंग्रेजी भाषा के समाचार पत्रों में भेदभाव किया गया था। और अपराधी को अपील करने का अधिकार नहीं मिला था ।इसका व्यापक विरोध हुआ, केवल पायनियर ने इसका पूर्णरूपेण समर्थन किया था ।इस अधिनियम के द्वारा सोमप्रकाश, ढाका प्रकाश ,भारत मिहिर और सहचर को प्रतिबंधित कर दिया गया  तथा अमृतबाजार पत्रिका इससे एक्ट से बचने के लिए रातों -रातअंग्रेजी में प्रकाशित होने लगी। सितंबर 1818 में पूर्व परीक्षण की धारा हटा दी गई तथा एक समाचारपत्र आयुक्त की नियुक्ति की गई ।जिसका कार्य सच्ची और यथार्थ समाचार देना था ।बाद में लॉर्ड रिपन ने इस अधिनियम को रद्द कर दिया।

1881 में अंग्रेजी में मराठा और मराठी में  केसरी का प्रकाशन बाल गंगाधर तिलक ने शुरू किया। 1888 में गोपाल गणेश आगरकर के संपादकत्व मेंं सुधारक समाचारपत्र का प्रकाशन शुरू हुआ। 1877 मेंं सरदार दयाल सिंह मजीठिया द्वारा द ट्रिब्यून, 880 में विपिनचन्द्र पाल और अरविंद घोष द्ववारा पारिदशक आरम्भ किया गया।1908 मेंं समाचार अधिनियम पारित हुआ जिसका उद्देश्य हिन्सा फैलाने वाले समाचार पत्रों को बंद  करना था। इस अधिनियम के अधीन सरकार ने 9 समाचारपत्रों पर मुकदमे चलाए और सात मुद्रणालय जप्त किए। युगांतर, वंदेमातरम और संध्या का प्रकाशन बंद कर दिया गया । 1910 का भारतीय समाचारपत्र अधिनियम ने लॉर्ड लिटन के 1878 के अधिनियम के सभी घिनौने लक्षण पुनर्जीवित कर दिए ।स्थानीय सरकार किसी मुद्रणालय के स्वामी अथवा समाचारपत्र के प्रकाशक से पंजीकरण जमानत मांग सकती थी जो ₹500 से लेकर ₹2000 तक होती। पुनः पंजीकरण कराने पर ₹1000 से ₹10000 देने होंगे। प्रत्येक प्रकाशक को समाचारपत्र की दो प्रतियां बिना मूल्य सरकार को देनी थी और मुख्य सीमाशुल्क अधिकारी को आपत्तिजनक आयातित सामग्री को जब्त करने का अधिकार था। इस अधिनियम के द्वारा आपत्तिजनक परिभाषा निश्चित कर दी गई।

1910 से 1930 तक कई समाचारपत्रों का प्रकाशन हुआ ।1913 में बी .जी.हार्निमैन के संपादकत्व  में फिरोजशाह मेहता ने बाम्बे क्रॉनिकल की स्थापना की । इसका मुख्य उद्देश्य कांग्रेस के सूरत विभाजन के बाद जनता तक अपनी बात को पहुंचाना था ।1914 में एनी बेसेंट ने कामनवीलऔर न्यू इंडिया एवं मद्रास स्टैंडर्ड का संचालन शुरू किया ।मौलाना अबुल कलाम आजाद ने 1912 में अल-हिलाल ,1918 में सच्चिदानन्द सिन्हा ने सर्चलाइट ,महात्मा गांधी ने 1919 में यंगइंडिया का प्रकाशन प्रारंभ किया ।1919 में मोतीलाल नेहरू ने इंडिपेंडेंट समाचार पत्र निकालना शुरू किया । 1922 में के.एम.पन्निकर ने हिंदुस्तान निकालना शुरू किया जिसे बाद में मदनमोहन मालवीय ने खरीद लिया ।यह पत्र अकालियों से धन  प्राप्त कर शुरू किया गया था जिसका उद्देश्य अकाली शिक्षा आंदोलन का प्रचार -प्रसार करना था। समाचार संबंधी कानूनों की समीक्षा के उद्देश्य से 1921 में प्रेस कमेटी की नियुक्ति हुई जिसके अध्यक्ष सर तेज बहादुर सप्रू बनाए गए ।उनकी सिफारिशों के आधार पर 1908 तथा 1910 के प्रेस अधिनियम रद्द कर दिए गए। 1931 में भारतीय समाचार पत्र अधिनियम पारित कर हत्या या हिंसक कार्रवाइयों को प्रोत्साहित करनेवाले समाचारपत्रों को बंद करना था तथा जमानत की राशि ₹1000 से ₹10000 कर दी गई। 1932 के  विदेश संबंध अधिनियम के द्वारा  प्रकाशकों को दंडित करने का प्रयास किया गया।1934 में भारतीय राज्य सुरक्षा अधिनियम पारित हुआ। इस अधिनियम का उद्देश्य देसी राज्यों के प्रशासन पर ब्रिटिश भारत के समाचारपत्रों में अकारण आक्रमणों को रोकना था तथा ब्रिटिश भारत में अधिकारियों को  इस प्रकार के अधिकार प्रदान करना था जिसके द्वारा ऐसे समूहों तथा प्रदर्शनकारियों को जो अर्ध फौजी पद्धति में संगठित हो तथा जिनका उद्देश्य भारतीय रियासतों में प्रविष्ट होना तथा संतोष फैलाना हो, दंडित किया जा सके। 1947 में भारत सरकार ने एक समाचार पत्र जांच समिति का गठन कर उसे आदेश दिया कि वह संविधान सभा में स्पष्ट किए गए मौलिक अधिकारों के प्रकाश में समाचारपत्र के कानूनों की समीक्षा करें ।इसकी सिफारिशों में 1931 के अधिनियम में संशोधन करना था। इसके बाद 1951 में  समाचारपत्र आपत्ति विषयक अधिनियम पारित कर अधिकांश पत्रों को स्वतंत्र कर दिया गया। इसके अतिरिक्त यह भी देखा गया  1935 तक चार समाचार एजेंसियों की स्थापना की जा चुकी थी जिसमें 1860 में  रायटर, 1905 में एसोसिएटेड प्रेस ऑफ इंडिया, 1927 ई. में फ्री प्रेस न्यूज सर्विस तथा 1934 ई. में यूनाइटेड प्रेस आँफ इंडिया प्रमुख थी।


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