हिंदी उपन्यासों में साम्प्रदायिक परिप्रेक्ष्यः स्वरूप एवं विकास
हिंदी उपन्यासों में साम्प्रदायिक परिप्रेक्ष्यः स्वरूप एवं विकास
उपन्यास एवं कहानी विधा का उद्देश्य मानवीय जीवन की समस्याओं का यथार्थ अंकन करना है ताकि मनुष्य सांप्रदायिकता जैसी क्रूर सामाजिक मानसिकता का डटकर मुकाबला कर सके । डॉ शशि भूषण सिंघल के अनुसार उपन्यास हिंदी साहित्य में आज शतायु हो चला है. यह विधा सर्वाधिक लोकप्रिय है और जीवन के चित्रण विश्लेषण कार्य में विशेष समर्थ होने के कारण आलोचकों द्वारा नवीन चेतना के महाकाव्य की संज्ञा प्राप्त कर चुकी है ।
उपन्यास मनुष्य की व्यापक जीवन की यथार्थता, मानसिक भाव- विचारों का अंकन तथा मन की असीम गहराइयों की नाप- जोख के साथ परिवर्तनशील समाज के विविध आयामों को आयात कर मानवीय द्वंद के विकास का प्रामाणिक चित्रण उपस्थित करने की अद्भुत क्षमता का उद्घाटन करने की शक्ति है । स्वतंत्रता पूर्व के उपन्यासों में सांप्रदायिकता के कथानक पर थोड़ा बहुत लिखने का प्रयास किया गया था ।उस समय हिंदू -मुस्लिम सांप्रदायिकता की भावना जड़ जमा रही थी । धार्मिक आंदोलनों द्वारा अद्भुत सांस्कृतिक जागरण के इस नवयुग में राजनीतिक धार्मिक कारणों से मुसलमानों को उचित रूप में चित्रित करना आश्चर्यजनक बात नहीं है ।गुलामी के कारण औपनिवेशिक सत्ता की मुखालफत हिंदी उपन्यासकारों के लिए आसान नहीं था । अतः अपने आक्रोश को व्यक्त करने के लिए मुसलमान शासकों के अनाचार ,अत्याचार को माध्यम के रूप में चुना। किशोरी लाल गोस्वामी कृत 'हीराबाई या बेहमई का बुर्का 'लखनऊ की कक्ष या शाही महल सरा', ताजिया बेगम का रंग महल में हलाहल आदि उपन्यासों में पूर्वाग्रह से ग्रस्त होकर मुसलमान शासकों को उचित रूप में चित्रित किया. अन्य रचनाएं राधाकृष्ण दास कृत निस्सहाय हिंदू ,प्रेमचंद कृत सेवा सदन, कायाकल्प, प्रेमाश्रम ,कर्मभूमि ,पांडे बेचन शर्मा उग्र का 'चंद हसीनों के खातूत'भगवतीचरण वर्मा का टेढ़े मेढ़े रास्ते, प्रसाद का कंकाल तथा यशपाल का देशद्रोही आदि इसी प्रकार की रचनाएँ है जिसमें साम्प्रदायिक समस्याएं ज्यादा व्यापक फलक तो नहीं पाया, लेकिन उस समस्या को उभारने का प्रयास जरूर किया। इन उपन्यासों में सांप्रदायिकता की समस्या को समाज की अन्य विसंगतियों और कुरीतियों आदि के साथ ही प्रस्तुत किया गया है। प्रेमचंद जी के पश्चात या स्वतंत्रता के बाद भारत में सांप्रदायिकता अत्यंत विकृत तथा उग्र रूप में प्रस्तुत हुई जो सामाजिक एवं क्षेत्रीय स्तर पर अलगाववाद पलायनवाद ,दंगे ,आतंकवाद आपसी वैमनस्य तथा जातीय संघर्ष आदि परंपराओं के रूप में आई। इन समस्याओं ने जहां समाज को बुरी तरह से छिन्न-भिन्न कर दिया ,वही हिंदी उपन्यास जगत में खलबली मचा दी. उपन्यासों में संप्रदायिकता को विस्तृत फलक मिला, जिससे अनेक सांप्रदायिक समस्याओं पर आधारित उत्कृष्ट कृतियां लिखी गई। जसपाल. विजय साहनी, भैरवप्रसाद गुप्त ,भगवतीचरण वर्मा ,शिवप्रसाद सिंह ,असगर वजाहत अली खान ,त्रियंबक ,भगवानदास मोरवाल ,मोहम्मद आरिफ आदि उपन्यासकारों ने इस विषय को केंद्र में रखकर उपन्यास लिखे।
भारत में सांप्रदायिक वैमनस्य का प्रभाव गांव एवं शहरों में अपनी भिन्न-भिन्न प्रकृति के साथ प्रकट होता है। अतः इसे आधार बनाकर अनेक उपन्यासकारों ने ग्रामीण एवं आंचलिक परिवेश पर आधारित उपन्यास लिखें ।जिसमें ग्रामीण परिवेश में साम्प्रदायिकता ने किस कदर ग्रामीण समाज को दूषित कर विभाजित एवं विखंडित किया है इसे बताने की भरसक कोशिश हुई है ।मैलाआन्चल, आधा गांव ,परती परिकथा, जल टूटता हुआ, अलग अलग वैतरणी ,माटी की महक कुछ इस प्रकार के श्रेणी के उपन्यास हैं .इसके अतिरिक्त संप्रदाय के समस्या पर आधारित अनेक उपन्यास लिखे गए। यशपाल का झूठा सच ,भीष्म साहनी का तमस, कमलेश्वर का एक सड़क सतावन गलियां, कितने पाकिस्तान, भैरव प्रसाद का सती मैया का चोरा, रेणु कृत जुलूस ,देवेंद्र सत्यार्थी का कठपुतली, बद्दीउज्जमा कृत छाको की वापसी, मंजूर एहतेशाम कृत्य सूखा बरगद ,नासिरा शर्मा कृत जिंदाबाद मुहावरे, अब्दुल बिस्मिल्लाह कृत झीनी झीनी बीनी चदरिया ,शिवमूर्ति कृत लघु उपन्यास त्रिशूल, तरसेन गुजराल कृत सोया हुआ गुलाब, भगवान सिंह कृत्य उन्माद, असगर वजाहत कृत कैसी आग लगाई, मैं हिंदू आदि।
सांप्रदायिकता की समस्या को लेकर है भीष्म साहनी का एक अन्य उपन्यास नीलू नीलिमा नीलोफर ,दूधनाथ सिंह का आखिरी कलाम, गीतांजलि का हमारा शहर उस बरस, डॉक्टर रोहिणी अग्रवाल कृत उन्माद ,हिंदू ईसाई आदिवासी सांप्रदायिकता पर आधारित तेजिंदर खन्ना कृत काला पादरी ,गुजरात कांड की पृष्ठभूमि पर लिखा गया हरीश राय का उपन्यास नागफनी के जंगल ,कश्मीरी आतंकवाद पर आधारित उपन्यास संजना कॉल का पाषाण युग तथा हिंदुत्व का आतंकी चेहरा प्रस्तुत करता हुआ उपन्यास' वे वहां कैद' हैं, आदि संप्रदायिकता के विविध पहलुओं को उद्घाटित करने वाले उपन्यासों की फेहरिस्त काफी लंबी है।
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