मैला आँचल कथ्य एवं शिल्प

             मैला आंचल कथ्य एवं शिल्पः

 1954 में प्रकाशित मैला अंचल कथ्य और शिल्प दोनों ही दृष्टिकोण से हिंदी कथा साहित्य को विशिष्ट करती है .मैला आंचल के लेखक फणीश्वरनाथ रेणु एक  प्रकार से  विशिष्ट उपन्यासकार भी हैं . लेखक के ही शब्दों में "मैला आँचल "एक अँचल का उपन्यास है, कथानक है  पूर्णिया बिहार राज्य का एक जिला है .इसके एक ओर नेपाल है दूसरी ओर पाकिस्तान और पश्चिमी बंगाल . विभिन्न सीमा रेखाओं  से इसकी बनावट मुकम्मल हो जाती है जब हम दक्षिण में संथाल परगना और पश्चिम में मिथिला की सीमा रेखा खींच देते हैं.  प्रेमचंद के बाद गांव की जिंदगी का इतना सूक्ष्म विश्लेषण एवं चित्र  पहली बार रेणु के मैला आंचल में दिखाई पड़ता है.

 मैला आँचल का  कथा -क्षेत्र मेरीगंज है। नील की खेती से संबंधित किसी अंग्रेज अफसर डब्लू० जी०   मार्टिन की पत्नी का नाम ,जब इस जनपद से जुड़ गया तो लोग उनका पुराना नाम भूल गए. मेरी जो मार्टिन की नई पत्नी थी  और जिसके लिए मार्टिन ने कोठियां बनवाई थी बहुत दिन उस में नहीं रह सकी. मेरी को मलेरिया ने ऐसा दबाया कि वह परलोक सिधार गई .मार्टिन उसके वियोग में पागल होकर मर गया और उसी  के साथ भारत में नील युग का अंत भी हो गया .मार्टिन जब जीता रहा मेरीगंज में मलेरिया सेंटर खुलवाने का प्रयास करता रहा .इस पृष्ठभूमि में बिहार के पूर्णिया जिले के ग्रामीण अंचल में मेरीगंज गांव के लोगों की कथा की शुरुआत उपन्यास में की गई है.

 उपन्यास के आरंभ में ऐसा लगता है कि मेरीगंज एक सोया हुआ गांव है .यहां तक कि स्वाधीनता आंदोलन के बीच 1942 में घटित होने वाली घटनाओं का कोई प्रभाव उसके ऊपर नहीं पड़ा .केवल अफवाहों के रूप में कुछ खबरें वहां तक पहुंची थी. लेकिन स्वतंत्रता मिलने के कुछ वर्ष पहले इस सोए हुए अंचल में कुछ हलचल होने लगी और जनजीवन बदलने लगता है. बदलते हुए परिदृश्य को लेखक गांव में आए हुए मलेरिया सेंटर बनाने वाले सरकारी कर्मचारियों के द्वारा दिखाता है. यहीं से लेखक कथा-सूत्र को पकड़ता है ,कोसी के अंचल में पहले मेरीगंज के आसपास का भौगोलिक क्षेत्र उपस्थित करता है. नवाबी ताड़वना यानी कि ताड़- वन दिखता है। ताड़वना के बाद ही एक मैदान है, जो नेपाल की तराई से शुरू होकर गंगा जी के किनारे खत्म हुआ है। लाखो एकड़ जमीन। बंध्या धरती का विशाल अंचल। इसमें दूब  भी नहीं पनपती है ,बीच-बीच में बालूचर और कहीं-कहीं बेर की झाड़ियां। कोस भर मैदान पार करने के बाद पूरब की ओर काला जंगल दिखाई पड़ता है- वही है मेरी गंज की कोठी। 

मेरी गंज एक पिछड़ा हुआ गांव है .अनेक कथाओं ,परिकथाओं ,रूढ़ियों ,संस्कारों तथा अंधविश्वासों से यह  गांव घिरा हुआ है। मेरीगंज में कई जाति और वर्ण के लोग रहते हैं. लेखक ने इस अंचल की लोक संस्कृति और लोक जीवन को उभारा है। मेरीगंज एक बड़ा गांव है। बारहों वर्ण  के लोग रहते हैं। लेखक ने गांव के लोगों के बीच पारस्परिकईर्ष्या -द्वेष  के साथ-साथ राजनीति राजनीतिक प्रभाव को भी चित्रित किया है। प्रस्तुत उद्धरण से उपन्यास रचना के पृष्ठभूमि एकदम से स्पष्ट हो जाती है-" राजपूतों और कायस्थों में पुश्तैनी मनमुटाव और झगड़े होते आए हैं., ब्राह्मणों में संख्या कम है ,इसलिए वह हमेशा तीसरी शक्ति का  कर्तव्य पूरा करते हैं। अभी कुछ दिनों से यादवों  के दल ने भी जोर पकड़ा है." इन सभी दलों के अपने -अपने  मुखिया और नेता है. गांव की संरचना का यह जातिगत आधार परंपरा से मिला है. जातिगत आधार पर बने इस गुटों में परस्पर निरंतर संघर्ष की स्थिति रहती है, अपनी जाति और अपनी गुटके स्वार्थों में डूबे हुए मेरीगंज के लोग न तो अपना विकास कर पाते हैं और ना गांव का। जातिगत स्वार्थों से ऊपर उठकर सोचने की शक्ति उनमें नहीं है. इन लोगों के बीच शिक्षा की हालत यह है कि सारे मेरी गंज में 10 आदमी पढ़े लिखे हैं. पढ़े-लिखे का मतलब हुआ अपना दस्तखत करने से लेकर तहसीलदारी  करने तक की पढ़ाई। नए पढ़ने वालों की संख्या है पन्द्रह। 

 मैला आंचल के लेखक ने आंचलिक समाज की विसंगतियों को उद्घाटित करने के लिए हर पहलू को पकड़ा है. मठ  के महंतों के चरित्र तथा मठों में व्याप्त  व्याभिचार  को उपन्यास में अनेक स्थलों पर अंकित किया गया है। सेवादास ज्ञानी साधु समझे जाते थे. सभी शास्त्र पुराण के पंडित। मठ पर आकर लोग भूख प्यास भूल जाते थे. बड़ी पवित्र जगह समझी जाती थी। लेकिन बाबा होकर भी वे रखेलिन रखते थे और रामदास रखेलिन रखने के लिए लक्ष्मी की खुशामद करता है. उन सब के बीच सामंती व्यवस्था का अत्याचार मेरीगंज की गरीब और लाचार जनता की ट्रेजडी को कई गुना बढ़ा देता है. तहसीलदार विश्वास नाथ प्रसाद इन अत्याचारों में माहिर है.

 सामाजिक तथा आर्थिक परिस्थितियों में के बीच मेरीगंज के लोगों पर राजनीतिक प्रभाव भी पूरी तरह व्याप्त है. लगभग सभी कांग्रेस, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ तथा वामपंथी दलों के कार्यकर्ता और कार्यक्रम में मेरीगंज आंदोलित है. बलदेव ,वामनदास ,कालीचरण जैसे कार्यकर्ता होने पर भी मेरीगंज की जनता ने राजनीति को ऊपरी तौर पर लिया है. शायद उन्हें कोई अपना नेता नहीं मिला। उनकी राजनीति का मूल आधार जातिवाद है. इन परिस्थितियों के बीच मलेरिया सेंटर में डॉक्टर प्रशांत कुमार का आना तथा गांव की जिंदगी में घुल मिल जाना एक नई चेतना का परिचायक है। "डॉक्टर पर यहां की मिट्टी का मोह  सवार हो गया उसे लगता है मानो वह युग-युग से इस धरती को पहचानता है." उसने गांव की जिंदगी को बहुत करीब से देखा और उससे अधिक उसकी गरीबी को. उसे लगा कि गांव की असली बीमारी गरीबी है ,मलेरिया से मुक्त का संघर्ष,नगण्य हो गया। उस गरीबी के बीच "कमला" उसे "राजकमल" लगी. उसने अपनी अपरिमित सहानुभूति उड़ेल दी उस गांव के लोगों के लिए. लेकिन स्वतंत्र भारत में उसे  कम्युनिस्ट करार देकर गिरफ्तार कर लिया। मैला आंचल में लेखक ने समाज के कई स्तरों ,कई परतों को खोला है। एक अंचल में पनपने और समाप्त होने वाले स्त्री-पुरुष के संबंधों को कई युग्मों के द्वारा बारीकी से प्रस्तुत किया है। दफा चालीस के अंतर्गत किसानों  को जमीन ना मिलने और उनके संघर्ष को प्रदर्शित किया है। स्वाधीनता के बाद जनता की आशाएं पूरी नहीं हुई। जमीनदारी खत्म हुई लेकिन जमीन किसकी बढ़ गई तहसीलदार साहब की. भूमि पर किसान का अधिकार नहीं। और एक फिर वह तस्वीर उभरती है -"बेजमीन आदमी आदमी नहीं। यह तो जानवर है। "भ्रष्टाचार बढ़ गया. स्वाधीनता आंदोलन के विरोधी, पदाधिकारी बन गए. डाकू -लुटेरे राजनेता बनने की घात में है. ईमानदार मारे जा रहे हैं. उपन्यास में अनेक पर्व, त्योहारों ,उत्सवों  तथा परंपराओं का मार्मिक वर्णन है। लेकिन उसने हर जगह महसूस किया है कि पुस्त - पुश्तैनी से जो "रीति रिवाज गांव में चल रहा है उसको एक बार ही बदल देना आसान नहीं। "

मैला अंचल की वस्तु संरचना का आधार एक अंचल का यथार्थ जीवन है। यही कारण है कि उसके वस्तु संगठन में अन्य उपन्यासों से भी भिन्नता  है जो उसे आंचलिक उपन्यासों के जनक के रूप में स्थापित करती है। एक अंचल का समग्र जीवन और उसके साथ यथार्थवादी चित्रण-वस्तु और संरचना के आधारभूत तत्व बन जाते हैं। अपनी आंचलिक विशिष्टता के कारण मैला आंचल ने  हिंदी उपन्यास को एक नई दिशा प्रदान की। उसकी यथार्थवादी चित्रण पद्धति के कारण उसे प्रेमचंद की परंपरा का उपन्यास माना गया है. संभवत मैला आंचल की इस विशेष स्थिति के कारण ही उसकी सीमित समीक्षा करते हुए नेमीचंद जैन लिखा है कि" मैला आंचल हिंदी उपन्यास जगत में एक धूमकेतु की भांति प्रकट हुआ है. इसमें तो कोई संदेह नहीं यह स्वाभाविक ही था उसके बारे में पहली प्रतिक्रिया बड़ी प्रबल हुई और अधिकांश पाठक और समीक्षक उसकी नवीनता के ज्वार में बह गए. इसीलिए अभी अनिवार्य था कि उसकी तुलना प्रेमचंद और गोदाम से की गई। "मैला आंचल के लेखक के साथ भी अन्याय है और प्रेमचंद के साथ भी। गोदान और मैला अंचल में साम्य केवल ऊपरी तौर पर है। दोनों उपन्यासों का न केवल युग भी नहीं बल्कि दोनों की मूल भाववस्तु भी भिन्न है।  और दोनों के लेखकों  के व्यक्तित्व की प्रौढ़ता में तो धरती आसमान का अंतर है। मैला आंचल में युगजन्य दबाव के फलस्वरूप तीव्रता से बदलते हुए ग्राम की गति का चित्र अवश्य है, पर उसमें गोदान जैसी वह क्लासिक तस्वीर नहीं है, जो युगो तक मिटती नहीं।  मैला आंचल के पात्र एक युग की उपज है जो जितनी तेजी से आते हैं उतनी ही तेजी से गति चक्र में विलीन भी हो जाते हैं। डॉ रामविलास शर्मा मैला आंचल की चित्त्र पद्धति को यथार्थवाद से अधिक प्रकृतिवाद के निकट मानते हुए कहते हैं कि गतिशील यथार्थ में कौन से तत्व अधिक प्रगतिशील हैं ,कौन से मरणशील ,किन पर व्यंग्य करना चाहिए किन का चित्रण अधिक सहानुभूति से करना चाहिए, वातावरण ,घटनाओं आदि के चित्रण  और वर्णन में कितनी बातें छोड़ देनी चाहिए और कितनी का उल्लेख होना चाहिए -कथाशिल्प की इन विशेषताओं में "मैला अंचल" का लेखक प्रेमचंद की परंपरा से दूर पड़ा है.लेकिन मैला अंचल के एक महत्वपूर्ण पक्ष की उपेक्षा नहीं कर सके हैं जो उन्हेँ  प्रेमचंद की परंपरा से जोड़ता है.वे  लिखते हैं "बहुत कम उपन्यासों में पिछड़े हुए गाँवों  के वर्ग- संघर्ष, वर्ग -शोषण और वर्ग -अत्याचारों का ऐसा जीता जागता चित्रण मिलेगा। यह उसका सबल पक्ष है। कमजोरियों पर ध्यान केंद्रित करके उसके इस गुण को भुला देना उचित न होगा। " 

रेमंड विलियम्स के अनुसार यथार्थवादी कथा साहित्य की परंपरा का अर्थ है -"इस प्रकार की कथाकृति जिसमें एक समग्र जीवन पद्धति का सृजन और मूल्यांकन व्यक्ति की विशेषताओं के माध्यम से हुआ हो. जहां समाज वैयक्तिक संबंधों के अध्ययन के लिए केवल एक पृष्ठभूमि नहीं है और न व्यक्ति केवल जीवन- पद्धतियों के उदाहरणमात्र - जहां मूल्य का केंद्र मानव व्यक्ति है ,एक अकेला विच्छिन्न आदमी नहीं, पर वे बहुत सारे लोग जो सामान्य जीवन की वास्तविकता के विधायक हैं। " मैला अंचल की कथावस्तु और संरचना के अध्ययन में इन तत्वों को देखा जा सकता है  .

मैला आंचल में एक समग्र अंचल की जीवन पद्धति को समेटकर मानव व्यक्ति का चित्रण किया गया है. मैला आंचल का कथावाचक अंचल स्वयं है। कथाशिल्प की इस विशेषता के कारण अंचल का व्यक्तित्व संपूर्ण रूप से मुखर हो उठा है. इसलिए उसमें कथाएं ,उप -कथाएं, घटनाएं ,प्रसंग तथा चरित्र अंचल के व्यक्तित्व के अभिन्न अंग बन जाते हैं। वास्तव में ये विभिन्न उपादान अंचल के वैविध्यपूर्ण जीवन को, उनकी समस्त विसंगतियों को व्यक्त करने  में पूरी तरह समर्थ हुए हैं। लेखक का मुख्य उद्देश्य एक अंचल के समग्र जीवन को चरितार्थ करना है ,इसलिए कथा बिखरी हुई है ,लेकिन संरचनात्मक स्तर पर आंतरिक संगति उत्पन्न करके उसे इस संश्लिष्ट प्रदान किया गया है। यह बात मैला अंचल के वस्तु विश्लेषण में देखी जा सकती है.

" मैला आँचल" एक आंचलिक उपन्यास है। इसलिए आंचलिक उपन्यासों की तरह उसमें भी वस्तु संगठन शिथिल है। उसके विरोधियों का यह आरोप है कि उसकी कथावस्तु में एकसूत्रता और  संबद्धता नहीं है. संपूर्ण अंचल के वैविध्यपूर्ण जीवन को चित्रित करने के कारण मैला अंचल की वस्तु संरचना में केंद्रीकरण की प्रकृति नहीं है। उसमें कथाएं अलग-अलग निकाली जा सकती है। बलदेव- लक्ष्मी ,कालीचरण- मंगला, डॉ प्रशांत कुमार और कमला, सहदेव और फुलिया तथा रामदास ,रामपियरिया वास्तु- संरचना के ऐसे सूत्र है , जो संपूर्ण उपन्यास में फैले हुए है। इन कथासूत्रों के माध्यम से संपूर्ण अंचल की स्थितियों का चित्रण किया गया है। इन कथा सूत्रों के अतिरिक्त वामन दास का चरित्र और उसका व्यक्तित्व वस्तु संरचना में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं। इतना ही नहीं ,तहसीलदार खे लावन सिंह जोत कीजिए तथा महंत सेवादास को वस्त्र संरचना से अलग नहीं देखा जा सकता यह महत्वपूर्ण बात है कि लेखक ने इन चरित्रों के स्वतंत्र विकास की ओर ध्यान न देकर अंचल के संपूर्ण परिवेश को उपस्थित किया है. इसलिए अनेक लघु उप -कथाएं चलती रहती हैं और समाप्त होती रहती है। पात्र सामने आते रहते हैं और फिर अदृश्य हो जाते हैं। 

मैला आँचल  में एक विशेष क्षेत्र पूर्णिया जिले के मेरीगंज गांव की कथा है। जिसका अपने जिले या राज्य से कोई संबंध नहीं है. लेखक ने उस क्षेत्र विशेष के यथार्थ जीवन पर अपनी दृष्टि को केंद्रित किया है. इस यथार्थ जीवन का आभास कथावस्तु में अनुस्यूत  विभिन्न कथाओं , प्रसंगों, घटनाओं एवं चरित्रों की विभिन्न क्रियाओं से होता है. जिनके द्वारा अंचल विशेष की स्थिति एवं समस्याओं का प्रभावशाली ढंग से निरूपण किया गया है। मेरीगंज गांव के जीवन में जिस सामाजिक अशांति का चित्रण किया गया है ,वह 1945 -48 की वास्तविकता थी। यह समय सामाजिक चेतना का था। एक पिछड़े हुए अंचल में आर्थिक समस्याएं किस प्रकार मनुष्य को पशु से भी हीन  बना रही थी, "मैला आँचल " में देखा जा सकता है। भूमि का नया बंदोबस्त हो रहा था और मलेरिया उन्मूलन अभियान प्रारंभ हो गया था. इस यथार्थ भूमि पर एक पिछड़े समाज में स्त्री -पुरुषों के पारस्परिक संबंध, शिक्षित और समाज सेवा के लिए उन्मुख डॉ प्रशांत के माध्यम से नएपन का बोध ,बालदेव ,वामनदास, कालीचरण के माध्यम से राष्ट्रीय चेतना तहसीलदार विश्वनाथ प्रसाद हरगौरी सिंह आदि के माध्यम से सामाजिक जीवन तथा सेवा दास रामदास के माध्यम से धार्मिक जीवन को परिकल्पित किया गया है बस संरचना में यथार्थवाद का यह आधार विश्वसनीय रूप में प्रस्तुत हुआ है क्योंकि कोई कथा अथवा चरित्र प्रमुखता नहीं पाता मरण सभी का अपना अपना महत्व है और वह सब मिलकर एक समग्र अंचल की कथा का निर्माण करते हैं इसलिए अंचल ही कथावाचक की भूमिका अदा करता है परिकल्पित कथाओंका आधार भावनात्मक है और उसके तत्व प्रेम प्रसंग का लोक कथाएं लोकगीत उत्सव समारोह आदि में विशिष्ट शैली में प्रस्तुत किए गए इस वैविध्य पूर्ण जीवन को अंकित करने के कारण तथा बिक्री हुई दिखाई पड़ती है डॉ रामविलास शर्मा कथा की संबद्धता की ओर संकेत करते हुए लिखते हैं कि वह सिनेमा के चित्रों के समान बहुत से शार्ट इकट्ठे कर देता है ऐसे एक दूसरे से कितने विषय हैं इसका ध्यान नहीं रखता एक ही अध्याय में तीन चार बार कट लगाकर पाठक को चौथिया देता है नतीजा है कि चलचित्र में जो संबद्धता होती है उसका यहां अभाव है मैला अंचल के कथानक को आधिकारिक प्रसांगिक या उप कथाओं के द्वारा विभाजित नहीं किया जा सकता आधिकारिक कथा में नायक की संभावना निहित रहती है मैला आंचल में किसी चरित्र को ना एकत्र की स्थिति तक नहीं उठाया गया है क्योंकि यहां लाइट तो समग्र अंचल है लेकिन आंचलिक उपन्यास में विभिन्न कथा सूत्रों में फैली हुई कथाओं में कोई कथा प्रमुख प्रतीत होने लगती है और वह अधिकारी कथा होने का आभास देती है प्रशांत कुमार तथा कमला की कथा  होकर भी अपनी अनुभूति की तीव्रता के कारण प्रधान दिखाई पड़ती है इसका कारण प्रशांत कुमार का व्यक्तित्व है जो अन्य पात्रों की तुलना में अधिक आकर्षक और प्रभावशाली बन पड़ता है दरअसल लेखक ने डॉ प्रशांत और कमला की कथा के अंतर्गत दो विभिन्न स्थितियों पर घटित होने वाले यथार्थ को परिकल्पित किया है जो अंचल का विशिष्ट स्थिति को ज्ञापित करता है डॉ प्रशांत वैलेरियो लॉजिस्ट होकर मेरी गंज आया है गांव में उसका आगमन एक नई चेतना का सूचक अखिल भारतीय मेडिकल गजट में उसकी रिसर्च की रिपोर्ट प्रकाशित होती है और प्रशंसा होती है लेकिन डॉ प्रशांत और कमला की कथा सूत्र में यह भूमिका साधारण प्रतीत होने लगती है जब डॉक्टर पर मिट्टी का मुंह सवार होता है और वह मुंह के वशीभूत होकर एक और वह गरीबी में राजनीतिक चेतना जागृत करता है तथा दूसरी और कमला से प्यार करता है इन दोनों स्थितियों में उसके व्यक्तित्व का आकर्षक समग्र रूप से भरता है डॉ अनुभव करता है कि वे जमीन आदमी आदमी नहीं यह तो जानवर है और वह अंचल में व्याप्त रोग की जड़ पकड़ लेता है गरीबी और जहालत उसने देखा है ऐसे लोगों को जो न जिंदा रह सकते हैं और ना मर सकते हैं कब से जकड़े हुए फेफड़े उड़ने को बिस्तर नहीं सोने को चटाई नहीं पुआल भी नहीं भीगी हुई धरती पर लेटा निमोनिया का रोगी मरता नहीं है जी जाता है कैसे आश्चर्य की बात हैं। 

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