मैला आँचल एक आँचलिक उपन्यास:विवेचना

 फणीश्वरनाथ रेणु द्वारा लिखित “मैला आँचल” हिंदी कथा साहित्य का प्रथम और श्रेष्ठ आंचलिक उपन्यास है. बिहार के मिथिला अंचल को आधार बनाकर इस अंचल के जनसामान्य के दुख सुख रहन-सहन संस्कृति संघर्ष और लोकजीवन को अत्यंत कुशलता व कलात्मकता से इस उपन्यास में प्रस्तुत किया है.

 आँचलिकता शब्द अंग्रेजी के रीजन शब्द का पर्याय रूप में हिंदी में प्रयुक्त हुआ है. अंग्रेजी में ‘रीजनल नाँवेल’ की स्वस्थ परंपरा रही है. अंग्रेजी में थॉमस हार्डी जैसे महान उपन्यासकार आंचलिक उपन्यासकार के रूप में प्रसिद्ध हुए हैं.जे.ए.कुडेन के अनुसार एक आंचलिक लेखक एक विशेष क्षेत्र पर अधिक ध्यान केंद्रित करता है और इस क्षेत्र और वहां के निवासियों को अपनी कथा का आधार बनाता है. भारतीय साहित्य में भी आंचलिकता का चित्रण लगभग सभी भाषाओं में मिलता है, किसी विशेष स्तर पर जाकर आंचलिकता एक प्रकृति का और प्रवृत्ति का रूप धारण कर लेती है. बांग्ला भाषा में विभूति भूषण बंदोपाध्याय ,रतिनाथ भादुरी, मराठी में दांडेकर, पंजाबी में गुरदयाल सिंह आंचलिकता के चित्रण के कारण ही माने जाते हैं.

अँचल शब्द का अर्थ किसी ऐसे भूखंड, प्रांत या क्षेत्र विशेष है जिसकी अपनी एक विशेष भौगोलिक स्थिति, संस्कृति, लोकजीवन, भाषा व समस्याएं हो.अपनी तमाम विशेषताओं से उस अंचल विशेष का अपना एक जीवित व्यक्तित्व नजर आए जो दूसरी अंचलों से अलग पहचान बनाए. ऐसे किसी अंचल विशेष को आधार बनाकर रची जाने वाली औपन्यासिक कृति सहज ही आंचलिक उपन्यास मान ली जाएगी. धीरेंद्र वर्मा का मानना है कि “लेखक द्वारा अपनी रचना में आंचलिकता की सिद्धि के लिए के लिए स्थानीय दृश्यों, प्रकृति, जलवायु, त्यौहार ,लोकगीत बातचीत का विशिष्ट ढंग, मुहावरे, लोकोक्तियां, भाषा के उच्चारण की विकृतियां, लोगों की स्वभावगत व व्यवहार,गत विशेषताएं उनका अपना रोमांस , नैतिक मान्यताओं आदि का समावेश बड़ी सतर्कता और सावधानी से किया जाता है.” 

 मैला आंचल में आंचलिकता के विविध आयाम:  आंचलिकता का पहला रंग उघड़ता है ग्रामवासियों के पिछड़ेपन के चित्र के रूप में,जहां अभी शिक्षा और जागृति के  चिन्ह नहीं है और सरकार बहादुर की मानसिक गुलामी से लोग बंधे हैं. पिछड़ेपन के चित्रण  के साथ गांव की पृष्ठभूमि का अंकन भी रेणु ने किया है। यह  गांव है मेरीगंज , जो दौतहट स्टेशन से सात कोस पूरब बूढ़ी कोसी नदी के पार है ,

 सामाजिक चेतना : मैला आँचल में लेखक का सर्वाधिक ध्यान अंचल की जनचेतना को चित्रित करने पर केंद्रित है गांव में अस्पताल बनाने की प्रक्रिया ,राष्ट्रीय आंदोलन की पृष्ठभूमि, राष्ट्रीय आंदोलन के संदर्भ में औपनिवेशिक दमन और दमन के सामने सामान्य जन का कुछ झुकना व कुछ प्रतिरोध करना इन सभी क्षेत्रों को रेणु ने पूर्णिया  जिला के जन सामान्य के प्रति हार्दिक संवेदना महसूस करते हुए चित्र किया है। साथ ही साथ मिथिला अंचल की लोक संस्कृति भी सहज रूप से अंकित होती चलती है। 

मेरीगंज के डेरे के चित्रण से मिथिला क्षेत्र में संत कबीर व कबीर पंथ के प्रभाव का भी पता चलता है. हालांकि कबीर जैसे विद्रोही संत ने  जीवन में तमाम धार्मिक व सामाजिक विकृतियों और विरुपताओं  के प्रति विद्रोह किया ,लेकिन 400 बरस बाद उनके नाम पर चलाए गए पंथ में वही शक्तियां प्रवेश करती दिखाई देती है जिनके विरुद्ध  कबीर की वाणी अपनी प्रखरता में गूंजी थी. यही स्थिति स्वतंत्रता आंदोलन के संदर्भ में भी उद्घाटित होती है. महात्मा गांधी के नेतृत्व में बालदेव  और बामनदास जैसे  लाखों  ईमानदार कार्यकर्ताओं ने जो आंदोलन चलाया ,वह गांधी के जीवनकाल में और बाद में किन विकृत्तियों का शिकार हुआ, यह भी  मैला आँचल  में अच्छी तरह उद्घाटित हुआ है. डॉक्टर प्रशांत कुमार के उपन्यास में प्रवेश से आंचलिकता, जातीयता और राष्ट्रीयता के उलझे सवाल और गति प्राप्त करते हैं। मेरीगंज  में नाम पूछने के बाद लोग जाति पूछते हैं और प्रशांत के शब्दों में उनकी जाती है- डॉक्टर डॉक्टर बंगाली है या बिहारी ? नहीं वह हिंदुस्तानी है। 

 स्त्री पुरुष संबंध के प्रति दृष्टिकोण  : रेणु ने मिथिला अंचल की नारी की स्थिति को वास्तविकता से चित्रित किया है. मैला आँचल  में चित्रित अंचल में लगता है कि स्त्री-पुरुष संबंधों को लेकर जन चर्चाएं जैसी भी हो, कुंठाएं उतनी नहीं है।  कुछ हद तक इन संबंधों में उन्मुक्त तरह का प्रभाव नजर आता है। स्त्री के प्रति विकृत दमनकारी रवैए का विरोध भी होता है. हर शोषण के विरोध में उठी आवाज़ को रेणु ने अभिव्यक्ति दी है. कुछ तो मिथिला के जनजीवन के कृष्ण कथा व विद्यापति आदि के प्रेम गीतों के प्रभाव से व कुछ स्वयं के लेखकीय  दृष्टि में स्त्री-पुरुष संबंध चाहे उनका कोई भी स्वरूप हो ,वे उन्मुक्त यौन संबंध ही क्यों ना हो, अग्रहणीय, अनैतिक या असुंदर प्रतीत नहीं होते, जितने सामान्य उत्तर भारतीय नैतिक जीवन के लगते हैं ,जहां पर स्त्री का दैहिक शोषण प्रेम रहित है, उन संबंधों को कुछ हद तक लेखक ने घृणित  संबंधों के रूप में चित्रित कर प्रेम संबंधों के प्रति अधिक उन्मुक्त व् तार्किक  दृष्टिकोण प्रस्तुत किया है ,

 लोकगीतों में अभिव्यक्ति लोक संस्कृति:  रेणु ने मिथिला अंचल की लोक संस्कृति का संवेदनशील चित्रण किया है. नेमिचंद जैन ने कहा था -'' भारतीय देहात के मर्म का इतना सरस और भावप्रवण प्रस्तुतीकरण हिंदी में संभवतः  पहले कभी नहीं हुआ था.'' 'इस प्रकार रेणु ने भारत माता के एक अंग के रूप में  मेरीगंज को आधार बनाकर मैला अंचल का सृजन किया है. यह सृजन इसलिए  अपूर्व  रूप से सुंदर व मनमोहक है क्योंकि रेणु का अपने अंचल  से, उनके जन से, उनके मन से गहरा आत्मीय लगाव रहा है, मैला आंचल का सृजन संदर्भ आंचलिक है ,लेकिन इस सृजन की विश्वदृष्टि देशप्रेम से परिपूर्ण राष्ट्रीय दृष्टि है. इसलिए अंचल और राष्ट्र एक स्तर पर एक दूसरे में घुल मिल जाते हैं .

मैला अंचल में रेणु ने एक बहुत ही महत्वपूर्ण तकनीक का उपयोग किया है जिसके द्वारा आंचलिक परिवेश के सौंदर्य ,उनकी सजीवता और मानवीय संवेदनाओं को उजागर किया है। दृश्यों को चित्रित करने के लिए लेखक ने गीत ,लय, ताल ,वाद्य ,नगाड़ा, ढोल, मानर, खंजडी , नृत्य  और लोकनाटक जैसे उपकरणों का बखूबी इस्तेमाल किया है. ध्वनि  का जितना  सर्जनात्मक उपयोग मैला आंचल में हुआ है, उतना शायद ही हिंदी के अन्य उपन्यासों में हुआ हो. ढाक ढिन्ना ,ताक  धिना,डा डिग्गा ,रि -रिता  धिन-ता आदि की अनुगूंज सारे उपन्यास में सुनाई देती है।  ध्वनियों के द्वारा लेखक ने पूरे परिवेश को वाणी दी है।  लोकगीतों की कड़ियां स्थान -स्थान पर लेखक की मनोभावना व विचार को ही अभिव्यक्त करती है. मठ के वातावरण को चित्रित करने के लिए प्रातः काल का कीर्तन, बीजक पाठ, साहिब बंदगी का अभिवादन और सतगुरु हो !सतगुरु! को बार-बार दोहराने का उपयोग सफलता से किया गया है.

 राजनीतिक पार्टियों की गतिविधियों की सरगर्मी को दिखाने के लिए तरह-तरह के नारों से सहायता ली गई है. कही  किसान राज कायम हो मजदूर राज कायम हो! गरीबों की पार्टी सोशलिस्ट पार्टी, सोशलिस्ट पार्टी जिंदाबाद की ध्वनि है तो कहीं जय हो गन्ही  महात्मा की जय हो' की गूंज सुनाई पड़ती है। जलसे ,जुलूस और मीटिंगों में भी ध्वनि और भाषणों का योगदान है. नारों को कहीं-कहीं गीतों में ढालने  का उपक्रम भी है।  मैला अंचल में आंचलिक पहलू उभारने की लिए लेखक ने अंचल के भौगोलिक परिस्थितियों के चित्रण से लेकर सामाजिक- सांस्कृतिक पर्यावरण के चित्रण तक बड़ी गहराई और लगाव से प्रस्तुत किया है। मेरीगंज में मनाए जाने वाले त्योहारों ,गांव में मनाए जाने वाले ऋतुपर्वों , लोक व्यवहार के विविध रूपों वह मानवीय संबंधों के विशिष्ट रूपों के वर्णन के माध्यम से रेणु ने मैला आंचल में अपने प्रिय अंचल का इतना गहरा और व्यापक का चित्र खींचा है कि सचमुच यह उपन्यास हिंदी में आंचलिक उपन्यास की परंपरा की सर्वश्रेष्ठ कृति बन गया है.


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