संसार की सभी वस्तुएँ प्रकृति में परिवर्तन के फलस्वरूप पैदा होती है।"सांख्य मत

सांख्य दर्शन सभी दर्शनों से प्राचीन है।इसके जन्मदाता कपिल है।सांख्य दर्शन जैन धर्म से संबंधित है। इस दर्शन के अनुसार "! संसार की सभी वस्तुएँ प्रकृति में परिवर्तन के फलस्वरूप पैदा होती है।प्रकृति सब वस्तुओं का मूल है;किन्तु प्रकृति का कोई मूल नहीं है।"सांख्य मत की।आत्मा अक्रिय है,वह उपनिषदों की आत्मा के समान नहीं है।फलतः संसार का कारण प्रकृति है।प्रकृति और पुरुष दो ही मूल और अनादि तत्व है।इसके अनुसार पुरुष प्रकृति का पच्चीसवाँ तत्व है।इस दर्शन को सत्कार्यवाद कहते है।सांख्य दर्शन में बाद में ईश्वरवाद को भी जोड़ दिया गया।सांख्य दर्शन में पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ और पाँच कर्मेन्द्रियाँ होती है।पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ है-श्रुति,स्पर्श,दृष्टि,स्वाद तथा गंध।जबकि पांच कर्मेन्द्रियों में वाक्,धारणा,गति,उत्सर्जन और प्रजनन आते है।सांख्य दर्शन के त्रिगुण सिद्धांत में सदाचार,वासना और जाडय की उत्पत्ति होती है।पंचशिखाचार्य का पुष्टितंत्र इस दर्शन का प्रामाणिक और प्राचीन ग्रंथ है।तत्वकौमुदी (वाचस्पति),सांख्य प्रवचन (विज्ञान भिक्षु),मठारवृत्ति (मठार)और गौण्डपाद का भाष्य इस दर्शन के प्रमुख ग्रंथ है।

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