POLICY OF RING FENCE ( रिंग फेंस की नीति )

रिंग फेंस की नीतिः- रिंग फेंस की नीति के तहत अंग्रेजो को यथा संभव प्रयत्न रहा कि  वे अपने मर्यादित घेरे मे रहे और उससे आगे वे नरेशों से परस्पर सम्बन्ध टालते रहे। कम्पनी की नीति का आधार अहस्तक्षेप और सीमित उत्तरदयित्व था। साधारणतया अंग्रेजो ने भारतीय नरेश राज्यों को स्वतंत्र मानते हुए उसके साथ व्यवहार किया और उस समय तक उनके आंतरिक और प्रशासिक मामलो में हस्तक्षेप नही किया जब तक कि उनके लिए ऐसा करना उनके हित की रक्षा के लिए आवश्यक नही बन गया। इसके पीछे कई कारण थे। राजनीतिक आवश्यकताओं के कारण कर्नाटक के राज्य को मैसूर रियासत के विरूद्ध और अवध रियासत को मराठों के विरूद्ध बफर राज्य के रूप् में रखा गया। इसके साथ ही कम्पनी के पास उस समय ने इतनी शक्ति थी और न ही इतने संसाधन उपलब्ध थे जिनके आधार पर वह भारतीय रियासतों से लड़कर उनको पराजित कर सके।
    लेकिन अहस्तक्षेप की नीति का कठोरता से अनुशरण नहीं किया गया। तात्कालिक आवश्यकताओं  के अनुसार और गवर्नर जनरलों की वृत्तियों के अनुसार इस नीति में संशोधन किए गये। वारेन हेंस्टिग्स जो रिंग फेंस की नीति का निर्माता था, ने इस नीति का अनुशासन नही किया। बनारस के राजा चेत सिंह और अवध की बेंगमों के प्रति उसकी मांगों और रूहेलों तथा रामपुर के फैजुल्ला खाँ के प्रति उसका व्यवहार उसके राज्यों में हस्तक्षेप के प्रमुख कारण है। वारेन हेस्टिंग्स और लर्ड कार्नवालिस ने भारतीय नरेशों के साथ समानता के आधार पर सम्बन्ध स्थापित किये। अवध के साथ बनारस की संधि, रूहेला युद्ध, प्रथम मराठा युद्ध तक द्वितीय एवं तृतीय मैसूर युद्ध इसके उदाहरण थें यह नीति ब्रिटेन की लोकसभा द्वारा 1784 ई0 में स्वीकार किये गये और बोर्ड ऑफ डायरेर्क्टस द्वारा माने जाये एक प्रस्ताव के अनुकूल भी था जिसके द्वारा यह विचार प्रकर किया गया था कि भारत में विजय ओर साम्राज्य विस्तार  की नीति का अपनाया जाना ब्रिटिश राष्ट्र की इच्छा, सम्मान ओर नीति के विपरीत है।
    1798 ई0 में लार्ड वेलेजली के गवर्नर जनरल बनने के पश्चात् इस नीति में परिवर्तन आया वह सम्राज्यवादी था। उसने कम्पनी को भारत की सर्वश्रेष्ठ कम्पनी बनाने का निर्णया लिया और इस लक्ष्य की पूर्त्ति के लिए उसने भारतीय नरेश राज्यों को अंग्रेजो के राजनीतिक ओर सैनिक संरक्षण में लाने का प्रयत्न किया। चतुर्थ आंग्ल -मैसूर युद्ध, द्वितीय मराठा युद्ध और विभिन्न राज्यों से की गई सहायक संधियों ने उसके इस लक्ष्य की पूर्त्ति में सहायता प्रदान की 1803 ई0 में जार्ज बार्लो द्वारा यह लिखने से उसका उद्देश्य स्पष्ट हो गया कि भारत में एक भी राज्य ऐसा नही चाहिए जो अंग्रेजो की शक्ति पर निर्भर न करता हो अथवा जिसका राजनीतिक व्यवहार अंग्रेजो के पूर्ण अधिकार में न हो। वेलेजली को अपने लक्ष्य मे ंसफलता मिली। उसने अंग्रेज कम्पनी को भारत की सर्वश्रेष्ठ शक्ति बना दिया नहीं किया। इसकाल में पारस्परिक सम्बन्धों पर दृष्टिपात करने  से स्पष्ट होता है कि मैसूर राज्य के अतिरिक्त अन्य सभी भारतीय नरेशों के साथ जो संधियों की गई वे समानता और पारस्परिक लेन‘- देन के आधार पर की गई और यह पूर्णतया स्पष्ट किया गया। था कि आंतरिक मामलोक में भारतीय नरेश पूर्णतया संप्रभू रहेगे और अंग्रेजों द्वारा उनमें हस्तक्षेप नही किया जायगे। जिन भारतीय नरेशों ने सहायक संधि  स्वीकार भी किया वे भी कानूनी रूप् से आंतरिक मामलों मे ंपूर्णतया स्वंतत्र रहे यद्यपि व्यवहारिक रूप से आंतरिक मामलों में अंग्रेजो ने अपने रेजीडेन्टों के माध्यम से हस्तक्षेप किया। इसके अतिरिक्त रणजीत सिंह जैसे शासकों ने जिसने 1809 ई0 में अग्रेजो  से अमृतसर की संधि की पूर्णता अंग्रेजो सें समानता के आधार पर संधि की।

Comments

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    12 Words That Trigger A Man's Desire Impulse

    This impulse is so hardwired into a man's mind that it will drive him to try harder than before to make your relationship as strong as it can be.

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