ईश्वरीय सिंहासन और बहिश्त की प्रतिकृति - ताज़महल


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मुग़ल वास्तुकला का अंतिम और सर्वोत्कृष्ट चरण शाहजहां के काल में आरम्भ हुआ। बादशाह की रूचि को ध्यान में रखकर कलात्मक सृजन को सरंक्षण दिया गया। इसके काल में लाल पत्थरो का स्थान संगमरमर ने ले लिया फलस्वरूप शाजहाँ का काल संगमरमर काल के नाम से प्रसिद्द हो गया। इस काल की विशेषता भव्यता और मोहकता है। शाहजहाँ के काल में बनायीं गयी समस्त भवनों में सबसे सुन्दर ताजमहल है जो कि मुग़ल काल की अद्वितीय रचना है. सगमरमर का बना यह विश्वविख्यात मक़बर आगरा में यमुना के तट पर बना है। इसका निर्माण शाहजहाँ की प्रिय बेगम अर्जुमंद बानू बेगम की याद में किया गया हैतथा इसका नाम बेगम के लोकप्रिय   नाम मुमताज महल पर रखा गया है। मकबरे के वास्तुकार को लेकर इतिहासविदों में मतैक्य नहीं है.एक विचारधारा के अनुसार इसका निर्माण वेनिस के चाँदी और आभूषणों के शिल्पकार गैरिनिमो वैरोनियो ने किया जो मुग़ल साम्राट की सेवा में था इस विचारधारा के प्रवर्तक फ़ादर मेनरिक थे।स्मिथ ने भी इस मत का समर्थन किया है तथा इसे एक यूरोपीय कृति बताई है।  दूसरी विचारधारा के अनुसार ,ऐसा प्रतीत होता है कि ताज  मुगलकालीन निर्माण कला के तार्किक विकास के परिणामस्वरूप ,उसी परंपरा में बना हैऔर उसपर कोई बाहरी प्रभाव नहीं है।पारसी ब्राउन ने लिखा है कि "यह मुग़ल भवन कला की विधिवत विकसित रूप है,जो परम्परा के अनुरूप है तथा वही प्रभाव से पूर्णरूपेण मुक्त है। वस्तुतः इसकी योजना स्वयं शाहजहाँ ने बनाई थी। इसका निर्माण कार्य बादशाह की देख-रेख में हुआ। इसके सर्वप्रमुख कलाकार उस्ताद इंशा थे ,तथा मोहमद हनीफ ,अमानत खान ,मोहम्मद खान ,मोहम्मद शरीफ ,इस्माइल खान,मोहन लाल ,,मोहम्मद काजिम आदि अन्य सहायक कलाकार थे,जो वास्तुकला के विभिन्न क्षेत्रो में पारंगत थे। उस्ताद इंशा खान एक कुशल नक्शा नवीस थे। अमानत खान तथा मोहम्मद शरीफ तुगरा नवीसी में निपुण थे। इस्माइल खान तथा मोहनलाल पच्चीकारी में बेजोड़ थे। इनसभी कलाकारों की कार्यकुशलता के संयोग सर ताजमहल का निर्माण हुआ                      संभवतः ताज  दिल्ली स्थित हमायुं के मकबरे और ख़ानख़ाना  के मकबरे से निश्चित रूप से प्रेरित है।पर्सी  ब्राउन के अनुसार इसका निर्माण दिल्ली में निर्मित हुमायूँ के मक़बरे तथा ख़ानख़ाना के मकबरे की शैली के आदर्शो पर हुआ है। ताजमहल की कल्पना एक चतुर्भुज के रूप में की गयी है जिसका एक सिरा उत्तर की ओर और दूसरा दक्षिण की ओर है।केंद्रीय क्षेत्र एक वर्गाकार उद्यान में विभाजित है जिसकी एक भुजा 1000 फीट है। उद्यान और मकबरे के बाहर के चबूतरे के चारो ओर एक दीवार है जिसके प्रत्येक कोने में चौड़े अष्टकोणीय मंडप है। दक्षिण की ओर ,बीच में ,एक विशाल दरवाजा है। मकबरा एक 22 फीट उंच्चे आसान पर बना है। उसका आकार वर्गाकार है,उसके प्रत्येक कोने में एक छतरी और मध्य मेंफुला हुआ गुम्बद है जिसकी उंचाई 187 फीट है। आसान के प्रत्येक कोने में ,एक तीन मंजिला मीनार है जिसके ऊपर छतरी है। मीनारों के कारण मकबरे का वास्तुकलात्मक प्रभाव चारो ओर विस्तारित और विभाजित हो गया है। मकबरे के अंदरूनी भाग में हुमायूं के मकबरे की नकल की गयी हैक्योंकि उसके मध्य में भी एक अष्टकोणीय कक्ष हैजसके कोनो पर गलियारों से जुड़े छोटे काश है और उन सबका एक ही केंद्रबिन्दु है अर्थात मध्य में बनी कब्र। इस मकबरे के अलंकरण में ,कब्र के चारो ओर काट कर बनायीं गयी जाली को छोड़कर ,रत्नो की जड़ावत से नमूने बनाये गए है। सजावटी उद्यानों और फौव्वारो का आयोजन भी ,इस प्रकार किया गया है कि जिससे केंद्रीय स्थापत्य कृति की भव्यता में वृद्धि होती हैऔर जिससे समूचा परिदृश्य खुशनुमा हो गया है। सफ़ेद संगमरमर के मकबरे के विपरीत प्रभाव को दर्शाने के लिए लाल बलुआ पत्थर से निर्मित एक मस्जिद है जिसमे उसी प्रकार का स्वागत कक्ष ,द्वारमण्डप ,और गलियारे है। सारांश में यह कहा जा सकता है कि सभी वास्तुकलात्मक तत्वों को कुशलतापूर्वक  परस्पर जोड़ा गया है जिससे सम्पूर्ण रचना में एक संतुलन और सामंजस्य दिखाई देता है। ताजमहल के मध्य में मद्य एशिया,ईरान, चरण और भारत की भवन निर्माण परम्पराओ का सामंजस्य सयोजन है।    ताज़महल के निर्माण मेंसत्रह वर्ष लगे थे जिसमे बीस हजार लोगो ने प्रतिदिन कार्य किया। इसके निर्माण में मकराना के संगमरमर का प्रयोग किया गया है। निर्माण में कुलमिलाकर तीन करोड़ रूपये खर्च हुए थे। ताज की भव्यता और सुंदरता के काफी कशीदे पड़े जाते है ,लेकिन इस भव्य मकबरे की एक ऐसी यादगार के रूप में व्याख्या करना भी ठीक होगा जो एक साम्राट ने अपनी प्रिय पत्नी के लिए बनवाई। कल इतिहाकार वेन बेगले ने अपने एक लेख में कहा है कि सम्राट ने इसका निर्माण अपने आध्यात्मिक दम्भ की संतुष्टि के लिए करवाया। बेगले की दृष्टि में ,यह मकबरा सम्राट की पत्नी की यादगार न होकर िश्वीय सिंहासन और बेहिश्त की प्रतिकृति है। बेगले का यह निष्कर्ष में भवन में किये गए अंतर्लेख पर आधारित है।यह अंतर्लेख बहिश्त के उस सांकेतिक चित्रण की पराकाष्ठा है जिसका आरम्भ हुमायूँ के मकबरे से हुआ था।  मकबरा बादशाह की अलौकिक सत्ता का प्रमाण है। पर्सी ब्राउन इसकी प्रशंसा  है कि दिन की प्रत्येक घडी तथा प्रत्येक आकाशीय परिवर्त्तन के लिए ताज के अपने अलग -अलग रंग है ,प्रातः काल उषा की बेला  रंग ,दोपहर को चकाचौध कर देनेवाली  तथा चांदनी में  शीतल सौंदर्य जब इसका गुम्बद वायु की भांति हल्के वास्तु की मानिंद तारो के मध्य एक बड़े मोती की तरह लटकता रहता है। तिस पर भी यह कोई भी रंग भारतीय गोधूलि बेला के उन उड़ते हुए कच क्षणों के रंगो को नहीं पाते जब इसकी आभा हल्की पिली तथा सुन्दर गुलाबी हो उठती है।बनारसी प्रसाद सक्सेना के शब्दों में  यह नेत्रों को सन्तुष्ट तथा  हृदय को आनंदित करती है।   

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