बिहार में असंगठित क्षेत्र की श्रमिक महिलाओं की चुनौतियाँ एवं रणनीतियाँ





बिहार में असंगठित क्षेत्र की श्रमिक महिलाओं की चुनौतियाँ एवं रणनीतियाँ
                                                         
                                        बिहार के विकास में असंगठित क्षेत्र की महिलाओं का अहम योगदान रहा है। राज्य में असंगठित क्षेत्र में कामगार महिलाओं की कुल आबादी 1.3 करोड़ है। असंगठित क्षेत्र की महिलओं पर गठित टास्क-फोर्स की रिपोर्ट के अनुसार बिहार में कुल महिला आबादी का 56 प्रतिशत महिला कामगार है और उनकी प्रतिदिन की कमाई 30 से 120 रूपये के बीच है। जबकि राष्ट्रीय सेम्पल सर्वे रिपोर्ट के अनुसार बिहार की 11 प्रतिशत महिलायें ही कार्य करती है जबकि शेष 89 प्रतिशत महिलायें घरेलू कार्यों में संलग्न रहती है। एशियन डेवलपमेंट रिसर्च इंस्टीट्यूट, पटना द्वारा गठित टास्क फोर्स की रिर्पोट श्रमजीवनी के अनुसार बिहार की कुल युवा आबादी का 50 प्रतिशत महिलायें किसी न किसी तरह बिहार की अर्थव्यवस्था में अपना योगदान कर रही है।(1) बिहार ही नहीं सम्पूर्ण भारत में असंगठित मजदुरों की संख्या संगठित मजदुरों से काफी अधिक है। कुल मजदूरों में असंगठित क्षेत्र के मजदूरों का हिस्सा लगभग 90 प्रतिशत है। यह पूरे ग्रामीण श्रम और कुछ-कुछ शहरी श्रम को आच्छादित करता है। इसकी कार्यवाहियाँ लधु एवं पारिवारिक उपक्रम के रूप में संचालित होती है, जो पूर्णतः या अंशतः पारिवारिक श्रम पर आधारित होती है। असंगठित क्षेत्र की मुख्य विशेषताओं में छोटे आकार का कारोबार, कम पुँजी-निवेश, नियोजन की अस्थायी प्रकृति, निश्चित भौगोलिक क्षेत्र का अभाव, प्रतिष्ठानों या कारोबार का आकार बिखरा हुआ होना, श्रमिक संघ का अभाव, सुनिश्चित बाजार का अभाव, निम्न वर्ग एवं निम्न मध्यम वर्ग की दैनिक आवश्यकताओं की चीजों का ज्यादा उत्पादन, प्रसंस्करण एवं बाजारीकरण की कमी, व्यावसायिक प्रबंधन का अभाव/अकुशल एवं अर्धकुशल प्रबंधन, प्रायः कम पढ़े-लिखे एवं अशिक्षित कर्मचारियों का नियोजन, नियोजन में सुरक्षा का अभाव, कम वेतन-मजदूरी, काम की दशाएँ अनुपयुक्त, काम के घंटे प्रायः अनिश्चित, काम के हिसाब से अधिक व्यक्तियों का नियोजन आदि शामिल है।(2) कृषि प्रधान राज्य बिहार के घरेलू उत्पाद में 21 प्रतिशत का योगदान यह क्षेत्र करता है और इसमें महिलाओं की भागीदारी अधिक है। मानव विकास संस्थान, नई दिल्ली की रिपोर्ट के अनुसार भारत के कुल महिला जनसंख्या के 70 प्रतिशत भाग का खेती में लगा होना यह सिद्ध करता है कि ग्रामीण क्षेत्रों में प्रव्रजन दर काफी उच्च है। प्रव्रजन ने महिलाओं को नई भूमिका में ला खड़ा किया है। पुरूषों के पलायन के उच्च दर के कारण कुछ दशक से बिहारी महिलाओं को आगे आकर पुरूषों का अधिकार ग्रहण करना पड़ा है। शारीरिक श्रम में कटौती से पुरूषों के ही परंपरागत रूप से ब्रेड अर्नर होने की अवधारणा बदली है। इस श्रम की कमी को दूर करने के लिए बिहार में कृषि क्षेत्र में कामकाजी होना आवश्यक आवश्यकता भी बन गई हैं। उत्तर प्रदेश के ईंट-भट्ठों, हरियाणा एवं पंजाब के खेतों, गुजरात, महाराष्ट्र एवं छत्तीसगढ़ के  मिलों में बिहार के पुरूष श्रमिकों का पलायन जिनकी अवधि लगभग 9 महीनों तक की होती है, शारीरिक श्रम की कमी को काफी बढ़ा देती है। फलतः इस निर्वात् को दूर करने के महिलायें कृषि का अवलम्ब बन गई। आद्री की रिपोर्ट के अनुसार 50.1 प्रतिशेत बिहार की युवा महिलायें कृषि क्षेत्र में कार्यरत है, जो कृषि के ‘स्त्रीकरण‘ का द्योतक है।(3) प्राथमिक क्षेत्र की प्रमुख शाखा पशुपालन में राज्य की महिलाओं का योगदान 79.5 प्रतिशत है। बिहार के कुल जी0डी0पी0 में कृषि क्षेत्र में महिलाओं का कुल योगदान 12 प्रतिशत है वहीं पशुपालन में उनका योगदान 3.4 प्रतिशेत है। बिहार में महिलायें पशुपालन के क्षेत्र में सभी प्रकार के कार्य करती है जिसमें पशुओं को चारा खिलाना, चराना, गोबर निकालना, कंडे या उपले बनाना, धोना और दुग्ध एवं दुग्ध उत्पाद को बाजार तक पहुँचाना शामिल है। राज्य के स्वास्थ्य क्षेत्र में कुल श्रमशक्ति का 51.61 प्रतिशत महिलाओं का योगदान है। एलोपैथ, होमियोपैथ, आयुर्वेद, यूनानी, और आयुष डॉक्टरों के कार्य के साथ ही ए0एन0एम0, आशा कार्यकर्त्ता तथा प्रशिक्षित दाईयों तक का कार्य महिलायें कर रही है।
एसोचेम के एक अध्ययन के अनुसार सम्पूर्ण भारत में 1998 से 2004 के बीच रोजगार के मामले में महिलाओं में 3.35 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है, वहीं पुरूषों में 8 प्रतिशत की कमी आई है। यह बढ़ोत्तरी सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों में दर्ज की गई है। उल्लेखनीय तथ्य यह है कि बिहार में दोनों क्षेत्रों की औद्योगिक इकाईयों की संख्या लगभग न्यून है वहॉ महिला कामगारों की संख्या बढ़ोत्तरी असंगठित क्षेत्र में ही दर्ज की जा सकती है। छोटे पैमाने पर और कई जगह बिखरे होने के कारण हथकरघा एवं खादी ग्रामोद्योग में महिलाओं का नियोजन काफी तादाद में हुआ। इसके बाद हस्तशिल्प, टसर उद्योग, बीड़ी, अगरबत्ती, मोमबत्ती, टोकरी, आचार-जैम और मुरब्बा, पापड़ उद्योग में महिलायें बड़े पैमाने पर कार्यरत है। पर इनका उन्हें अधिक लाभ प्राप्त नहीं हो रहा है।
सामाजिक दृष्टि से महिलायें शोषित मानी जाती है परन्तु अर्थशास्त्रीय दृष्टि से वह एक वर्ग के रूप में ऐसी संसाधन है जिनका उपयोग क्षमता से कम किया गया है।(4) इसलिए यह माना जा रहा है कि अधिकाधिक महिलाओं के शिक्षित-प्रशिक्षित होने तथा रोजगार में लगने से आबादी तथा गरीबी की समस्याओं को हल करने में मदद मिलेगी। दूसरे शब्दों में, यदि अधिक महिलायें घर से बाहर आकर काम करें तो निश्चय ही बिहार की जी0डी0पी0 में वृद्धि होगी। यहाँ लड़कियों की शिक्षा एवं स्वास्थ्य पर अधिक व्यय किया जाय तो दीर्धकालिक सामाजिक एवं अिर्थक लाभ होंगे। चूँकि आर्थिक स्वतंत्रता आत्मनिर्भरता की एक जरूरी शर्त्त है, अतः ऐसे प्रयास अंततः लाभदायक क्रियाकलापों तक महिलाओं की बढ़ती पहुँच पर केन्द्रित होने चाहिए।(5) असंगठित क्षेत्र में बिहार की कामगार महिलाओं को अधिक कार्यशील बनाने के निम्न रणनीतियाँ अपनाई जा सकती हैः-
Û कृषि एवं गैर-कृषि कार्यों में ग्रामीण महिलाओं के लाभप्रद रोजगार के समान अवसर एवं अधिकार हो।
Û मातृत्व लाभ, बच्चों की देख-रेख की सुविधाओं, तकनीकी प्रशिक्षण एवं स्वास्थ्य की सुरक्षा के जरिए महिलाओं की पेशागत गतिशीलता को बढ़ाना सुनिश्चित किया जाय।
Û भोजन एवं पशु-उत्पाद में ग्रामीण गरीब महिलाओं की उत्पादक क्षमता बढ़ाने हेतु बहुक्षेत्रीय कार्यक्रम अपनाया जाय।
Û खेती-बाड़ी से अलग अन्य रोजगार के अवसरों का श्रजन किया जाय।
Û हर जिले में महिला कौशल विकास सेंटर खुले।
Û बिहार असंगठित एवं प्रवासी कामगार कल्याण अधिनियम बनाया जाय।
Û उर्जा स्वास्थ्य, शिक्षा एवं परिवहन का प्रावधान हो।
Û कृषि, वानिकी, पशुपालन एवं संरक्षण तकनीकों में ग्रामीण महिलाओं का प्रशिक्षण मिले।
Û उत्पादन क्रियाओं के लिए ग्रामीण महिलाओं के पारस्परिक संगठनों का उपयोग एवं सुदृढ़ीकरण हो।
Û भोजन-उत्पादन एवं खाद्य-प्रसंस्करण में महिलाओं की भूमिका तथा उससे सम्बन्धित अद्यतन आकड़ों पर शोध हो।
Û ग्रामीण इलाकों में बैंकिंग व्यवस्था का सुदृढ़ीकरण तथा हर कामगार महिला का बैंकिंग एवं ऋण तक पहुँच सुनिश्चित हो।
Û कार्यस्थलों पर शौचालयों का निर्माण किया जाय।
Û स्वयं सहायता समूह (एसएचजी) का निर्माण एवं गैर सरकारी संगठनों (एनजीओ) की सक्रियता गैर परम्परागत क्षेत्र में बढ़ाई जाय।
      इसप्रकार, महिलाओं की कार्य क्षमता एवं हुनर का अधिकाधिक प्रयोग किया जा सकता है। यह सिर्फ न्याय और बराबरी का मामला नहीं है, अपितु विशुद्ध रुप से एक व्यावसायिक मामला है। विश्व व्यापार संगठन के एक अध्ययन से पता चला है कि लैंगिक समानता तथा प्रतिव्यक्ति जीडीपी के बीच घनिष्ठ सम्बन्ध है जिसकी परीक्षा बिहार में भी की जा सकती है।

संदर्भः-
(1) श्रमजीवनी, असंगठित क्षेत्र की महिलाओं पर विशेष टास्क फोर्स की रिपोर्ट, एशियन डेवलपमेंट रिर्सच इंस्टीट्यूट, पटना 1 अगस्त 2014
(2) सुभाष शर्मा, भारतीय महिलाओं की दशा, आधार प्रकाशन, पंचकुला, हरियाणा, 2006 पृ0. 263
(3) टाइम्स ऑफ इंडिया, पटना संस्करण 2 अगस्त 2014
(4) डॉ प्रवीण शुक्ल, महिला सशक्तिकरण की बाधायें एवं संकल्प, आर0 के0 पब्लिशर्स एण्ड डिस्ट्रीव्यूटर्स दिल्ली 2009, पृ0 46
(5) नैरोबी फारवर्ड लुकिंग फॉर द स्ट्रेटजीज फॉर द एडवांसमेंट ऑफ वीमेन, नैरोबी, जूलाई 1985 पृष्ठ-8।

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