हड़प्पाई लोगों की आर्थिक गतिविधियाँ

हड़प्पाकालीन संस्कृति मूलतः शहरी संस्कृति थी।हड़प्पा और मोहनजोदड़ो जैसे शहरों के अतिरिक्त अल्लाहदिनों जैसी बहुत सी छोटी बस्तियों से भी ऐसे प्रमाण मिले है जो शहरी अर्थव्यवस्था के सूचक थे।हड़प्पन लोग वाणिज्य-व्यापार के साथ-साथ कृषिकार्य भी बखुबी किया करते थे।हड़प्पा,बहावलपुर और मोहनजोदड़ो वाला भु-भाग सभ्यता का मूल क्षेत्र था।इसके अतिरिक्त अफगानिस्तान के शोतुर्घई और गुजरात के भगत्रव जैसे दूर-दूर फैले हुए क्षेत्र में हड़प्पा सभ्यता के लोगों की बस्तियाँ होने का मूल कारण संसाधनों की प्राप्ति है।इन संसाधनों में खाद्य-सामग्री,खनिज एवं लकड़ी प्रमुख है।धातुओं में सोना,चाँदी,टिन,सीसा और ताँबा ज्ञात थे।इस संस्कृति में सिक्के का प्रचलन नहीं था;व्यापार वस्तु-विनिमय प्रणाली पर आधारित था।यातायात के साधनों में भैसागाड़ी,बैलगाड़ी,हाथियों,पहाड़ी क्षेत्रों में खच्चरों और मस्तुलवाली नावों का प्रयोग होता था।भगत्रव,लोथल,बलूचिस्तान क्षेत्र में तीन स्थान - दाश्क नदी के मुहाने पर स्थित सुतकांगेडोर,शादीकौर नदी के मुहाने पर स्थित सोत्काकोह एवं सोन मियामी खाड़ी के पूर्व में विंदार नदी के मुहाने पर स्थित बालाकोट बंदरगाह नगर के रूप में पहचाने गए है।सुतकांगेडोर ने हड़प्पा और बेबीलोन के बीच व्यापार में प्रमुख भूमिका निभाई थी।

हड़प्पा काल में व्यापारिक गतिविधियाँ काफी बड़े क्षेत्रों में संचालित की जाती थी। कर्नाटक के कोलार प्रदेश से सोने का आयात किया जाता था।अफगानिस्तान,ईरान,जावर और अजमेर की खानों से तथा अजमेर घाटी के मुहानों से चाँदी प्राप्त की जाती थी।लाजवर्द अफगानिस्तान स्थित बदक्खशां से,जेडाइट पामिर या पूर्वी तुर्किस्तान से,हेमाटाइट राजपुताना से,सुलेमानी पत्थर मध्य भारत या काठियावाड़ से,सूर्यकांत मणि भादर नदी के तल से या राजस्थान से ,देवदार एवं शिलाजीत हिमालय से ,सीसा अफगानिस्तान से,टीन सारगौन और मध्य एशिया से,सेलखड़ी उत्तरी गुजरात ,कर्नाटक और बलुचिस्तान से तथा फिरोजा ईरान (निशापुर)से आयातित होनेवाली वस्तुएँ थी।सिंधु सभ्यता से सुती वस्त्र,हाथीदाँत की बनी वस्तुएँ एवं इमारती लकड़ी का निर्यात होता था। इसको अतिरिक्त मसाले और पशु-पक्षी भी भेजे थे।जड़ाऊ कामवाले सीप और हड्डियों से निर्मित मनके मेसोपोटामिया में मिले है।बहरीन द्वीप के रस-अल-कला और कुवैत के फलका नामक स्थान से सेलखड़ी की हड़प्पाकालीन मुहरें प्राप्त हुई है।मोहनजोदड़ो,हड़प्पा और चांहूदड़ो से लंबे नालदार-बेलनाकार मेसोपोटामियाई मनके प्राप्त हुए है।मोहनजोदड़ो से प्राप्त कुछ मुद्राओं पर मानव को व्याघ्रो से लड़ते हुए दिखाया गया है जो सुमेरियन कथानक गिलगमिश और सिंह के लड़ाई पर आधारित है।नाल और सूमा से मिली मुद्राओं पर सांप को पकड़े गरुड़ की आकृति का अंकन है। मेसोपोटामिया के ऊर से हड़प्पा प्रकार के पासे मिले है।मोहनजोदड़ो से प्राप्त पक्की मिट्टी से बने नालीदार मनके मिश्र से प्राप्त पत्थर के मनकों की तरह है।हड़प्पा से एक मक्खी के आकार का मनका मिला है जो उस समय मिस्र और सुमेर में काफी प्रचलित थे। मोहनजोदड़ो से भी (V)आकार का मनका प्राप्त हुआ है। लोथल से फारस की खाड़ी प्रकार की मुद्रा पाई गयी है जो इस बात का प्रमाण है कि लोथल का बहरीन सहित अन्य अन्य क्षेत्रों से संबंध था।जोर्वे और नावदाटोली से प्राप्त चपटी कुल्हाड़ियों को हड़प्पा काल का माना जाता है।बलूचिस्तान,बालाकोट और चन्हूदड़ों सीपीशास्र और चूड़ियों के लिए प्रसिद्ध थे।लोथल और चांहुदड़ो में लाल पत्थर और गोमेद के मनके बनाये जाते थे।मोहनजोदड़ो में पत्थर की चिनाई करनेवाले कुम्हार,ईंट बनानेवाले,सील काटनेवाले,ताँबे और कांसे के शिल्पकार और मनके बनानेवालों की उपस्थिति के प्रमाण मिले है।राजस्थान के सिरोही और जयपुर,पंजाब के हाजरा-कांगड़ा और झंग,काबुल और सिंधु नदी के किनारे सोने के मुलम्मो की जानकारी मिली है।चेनाव नदी पर स्थित मांदा से हड़प्पा को अच्छी प्रकार की लकड़ी प्राप्त होती थी।सोवियत पुराविदों को सिंधु सभ्यता और दक्षिण तुर्कमेनिस्तान की बस्तियों के बीच व्यापारिक साक्ष्य मिले है।तेल अस्मार में हड़प्पाकालीन मृतिका शिल्प,नक्काशी किये हुए लाल पत्थर के मनके और गुर्दे के आकार के हड्डियों के जड़ाऊ कामवाली मुहरें पायी गयी है।मोहनजोदड़ो से एक बड़ी तथा लोथल से एक छोटी बेलनाकार मेसोपोटामियाई मुहर प्राप्त हुई है।लोथल में बन (BUN) के आकार के ताँबे के ढले हुए धातु पिंड पाये गए है।ये फारस की खाड़ी और सुशा से प्राप्त मुहरों से मिलते जुलते है।मेसोपोटामिया में पाये गए कुछ ऐतिहासिक साक्ष्य भी हड़प्पा और मेसोपोटामिया के बीच व्यापारिक संपर्क को चिन्हित करते है। अक्काड(AKKAD) के प्रसिद्ध सम्राट सारगौन(2350BC) का दावा था कि दिलमुन,मगन और मेलुहा के जहाज उसकी राजधानी में लंगर डालते थे।मेसोपोटामियाई साहित्य में मेलुहा शब्द सिंधु घाटी के लिये प्रयुक्त हुआ है।डब्ल्यू.एफ.अलब्राइट का दावा है कि यह संपर्क 1750 ई.पूर्व के बाद टूट गया जो हड़प्पा जैसी महान सभ्यता के विनाश का एक बहुत ही महत्वपूर्ण कारण भी था।

माप-तौल : - हड़प्पाकालीन बस्तियों में माप-तौल की व्यवस्थाओं में एकरूपता है।घनाकार चकमक के बॉट निचले स्तर पर द्विभाजन प्रणाली में है और ऊपर के स्तर पर दशमलव प्रणाली में तथा 16 के गुणज वाले है।फूट 37.6 सेमी तथा हाथ की लम्बाई 51.8 से 53.6 सेमि. का होता था। मोहनजोदड़ो से सीपी का और लोथल से हाथीदाँत का बना हुआ एक-एक पैमाना (Scale) मिला है।इसके अतिरिक्त मोहनजोदड़ो और लोथल से हाथीदाँत निर्मित तराजू के पलड़े मिले है।

मुहरें : - मुहरें हड़प्पा सभ्यता के व्यापारिक गतिविधियों के लिए काफी अहम थे।ये मुख्यतः स्टीटाईट के बनाये जाते थे और वर्गाकार होते थे।कुछ मुहरें गोलाकार भी पाई गयी है।ये मुहरें दूरस्थ स्थानों को भेजे जानेवाले उत्पादों के ऊँच स्तर और स्वामित्व की ओर संकेत करते है।इसका प्रयोग व्यापारिक गतिविधियों में होता था।बहुत सी मुहरों पर रस्सी और चटाई के निशान मिले है।इन मुहरों पर विभिन्न जानवरों की आकृतियाँ भी चित्रित है तथा दूसरी ओर सिंधु लिपि उत्कीर्ण है।

कृषि : - हड़प्पा सभ्यता मूलतः शहरी सभ्यता है;लेकिन शहरी आबादी कृषि उत्पादन पर निर्भर करती थी।हड़प्पा संस्कृति में 9 प्रकार की फसलें पहचानी गयी है।गेहूँ के तीन प्रकार,चावल,जौ,कपास,खजूर,तरबूज,मटर और ब्रांसिका जुंसी।इसके अतिरिक्त छुआरे के भी साक्ष्य मिले है।लोथल और रंगपुर में चिकनी मिट्टी और मिट्टी के बर्तनों में चावल की भूसी दबी मिली है।विश्व सभ्यता को सिंधु सभ्यता की महत्वपूर्ण देन कपास है।इस सभ्यता के लोग कपास की खेती करने और कपड़ा बनाने में निपुण थे।सूत बनाने के लिए तकली का प्रयोग किया जाता था।सुइयाँ ज्यादातर ताँबे और कांसे की बनाई जाती थी।मोहनजोदड़ो में सूती कपड़े का एक टुकड़ा पाया गया है। साहनी से चांदी के एक कलश से कपड़े का एक टुकड़ा तथा कई वस्तुओं में सूती के लिपटे हुए धागे प्राप्त हुए है।उम्मा नामक स्थान से कपड़े का एक पूरा गट्ठर ही प्राप्त हुआ है।आलमगीरपुर से एक नॉद पर बने हुए कपड़े का छाप मिला है। मेसोपोटामियाँ को निर्यात होनेवाली वस्तुओं में सूती कपड़ा प्रमुख था।लोथल से बाजरे और चावल की खेती के प्रमाण मिले है।तेल के लिए सरसो और तिल की खेती की जाती थी।खेती में कुदाल एवं दांतदार हैंगे का प्रयोग होता था।लोथल से आटा पीसनेवाली पत्थर की चक्की के दो पाट मिले है।सिंचाई के लिए कुएँ और जलाशयों का प्रयोग किया जाता था।धौलावीरा से बाँध बनाकर पानी रोकने का साक्ष्य मिलता है ;जो आधुनिक नहर प्रणाली का प्रारम्भिक रूप हो सकता है।

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