बिहार पंचायतीराज अधिनियम 1993

सत्ता के विकेंद्रीकरण को तीसरी सरकार के रूप में पंचायतों में केन्द्रीभूत करने के उद्देश्य से 23 अप्रैल 1993 को संविधान के 73वें संशोधन किया गया।इसके पीछे यह मंशा कायम थी कि सत्ता के श्रोत को निचले स्तर तक ले जाया जाय और जनता की इच्छाओं एवं अपेक्षाओं के अनुरूप विकास का मॉडल स्थापित किया जाय जिसमें जनता की सम्पूर्ण भागीदारी सुनिश्चित हो।इसी संविधानिक प्रावधानों के अनुरूप बिहार पंचायती राज अधिनियम,1993 पारित किया गया।इसके अंतर्गत बिहार में त्रिस्तरीय पंचायती राज के गठन का प्रावधान है।सबसे निचले स्तर पर ग्राम पंचायतों का गठन होता है।प्रखण्ड स्तर पर पंचायत समितियाँ गठित की जाती है,यह मध्य स्तर कही जाती है।सबसे ऊपरी स्तर पर जिला परिषदों का गठन होता है।बिहार पंचायती राज अधिनियम के अंतर्गत कुछ अनिवार्य एवं कुछ ऐच्छिक प्रावधान रखे गए है।

ग्राम सभा :-73वें सविधान संशोधन अधिनियम के अंतर्गत ग्राम सभा का गठन सभी राज्यों के लिए अनिवार्य बनाया गया है।इसे विकेन्द्रित प्रशासन के सबसे निचले स्तर पर सभी स्थानीय गतिविधियों के केंद्र बिंदु के रूप में प्रतिस्थापित किया गया है।बिहार में ग्राम सभा की साल में चार बैठकें बुलाये जाने का प्रावधान है।प्रत्येक ग्रामसभा के लिए एक निगरानी समिति के गठन का भी प्रावधान है जो स्थानीय प्रशासनिक कार्य के आकलन एवं निगरानी का कार्य करता है।ग्राम स्तर पर सभी पंजीकृत मतदाता इसमें सम्मिलित होते है।इसका गठन प्रत्येक गाँव में किया जाता है।
ग्राम पंचायत- बिहार में ग्राम पंचायत का गठन प्रत्येक 7000 व्यक्तियों की आबादी पर किये जाने का प्रावधान है।प्रत्येक 500 आबादी पर ग्राम पंचायत के लिए एक सदस्य का चुनाव किया जाता है। चूँकि प्रशासन को जनता के नजदीक पहुचाने के उद्देश्य से ग्राम सभा को वार्डो में विभाजित किया गया है।वार्ड के निर्धारण का आधार 500 की जनसंख्या है। प्रत्येक वार्ड के कार्यों का संचालन वार्ड सदस्य करता है जिसका निर्वाचन प्रत्यक्ष मतदान के द्वारा होता है। यहीं वार्ड सदस्य ग्राम प्रधान या मुखिया के कार्यकारिणी के सदस्य होते है।पंचायती राज में वार्ड सदस्य को विकास की धूरी के रूप में पहचाना गया है।यहीं जनता की समस्याओं से सरकार को और सरकार की योजनाओं को जनता तक ले जाने का कार्य करता है।ग्राम पंचायतों का सर्वोच्च पदाधिकारी मुखिया होता है।मुखिया का चुनाव प्रत्यक्ष निर्वाचन द्वारा पंचायत के पंजीकृत मतदाताओं द्वारा किया जाता है। मुखिया को परामर्श और सहायता प्रदान करने के लिए एक उपमुखिया के पद का सृजन किया गया है।वैसे तो मुखिया का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है।लेकिन ग्राम पंचायत के सदस्य दो-तिहाई बहुमत से मुखिया के विरुद्ध अविश्वास पारित कर उसे पदच्युत कर सकते है।मुखिया के कार्यों के संचालन के लिए ग्रामसेवक को पंचायत सचिव के रूप में नियुक्त किया गया है।

पंचायत समिति- पंचायत समिति का गठन प्रखंड स्तर पर किया जाता है।प्रत्येक 5000 की आबादी पर एक पंचायत समिति के सदस्य(BDC)का चयन होता है।इन सदस्यों के अतिरिक्त उस प्रखण्ड के सभी ग्राम पंचायतों के सभी मुखिया तथा विधानसभा के सदस्य पंचायत समिति के (ex-officio)सदस्य होते है।पंचायत समिति का सर्वोच्च पदाधिकारी प्रमुख होता है।प्रमुख को उसके कार्यों में सहयोग देने के लिए एक उपप्रमुख का चुनाव किया जाता है। पंचायत समिति के निर्वाचित सदस्य ही अप्रत्यक्ष मतदान द्वारा प्रमुख और उपप्रमुख का चुनाव करते है।प्रमुख के प्रशासनिक कार्यों को संपादित करने के उद्देश्य से प्रखण्ड विकास पदाधिकारी को उसका सचिव बनाया गया है।पंचायत समिति में भी आबादी के अनुपात में अनुसूचित जाति/जनजाति,पिछड़ी जाति और महिलाओं के लिए आरक्षण की व्यवस्था है।पंचायत समिति के अंतर्गत विभिन्न विषयों पर तीन स्थाई समितियों (Standing committees)के गठन की व्यवस्था की गयी है।
जिला परिषद्- बिहार पंचायती राज अधिनियम,1993 के अंतर्गत जिला स्तर पर जिला परिषद् के गठन का प्रावधान है।परिषद् के सदस्यों का चयन प्रत्यक्ष मतदान द्वारा किया जाता है।इन सदस्यों के चुनाव का आधार प्रत्येक 50,000 की जनसंख्या को बनाया गया है।परिषद् के अध्यक्ष का चुनाव अप्रत्यक्ष विधि से किया जाता है।अध्यक्ष के अतिरिक्त एक उपाध्यक्ष के चुनाव की भी व्यवस्था है।परिषद् की बैठक अनिवार्य रूप से प्रत्येक तीन माह पर सुनिश्चित होनी चाहिए।विकास कार्यों के सुचारू संचालन के लिए जिला समाहर्ता को जिला परिषद् का सचिव बनाया गया है।

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