पुष्करम महोत्सव - दक्षिण भारत का महाकुम्भ

धर्म के प्रति आस्था और निष्ठा सदियों से भारतीय समाज का अभिन्न अंग रहा है।जब कोई ऐसा अवसर सदियों बाद मिलनेवाला हो तो यह श्रद्धा अंधभक्ति में बदल जाती है और जनता भीड़ का रुप ले लेती है।शांति और सौहार्द्र अक्सर यहीं चूक जाता है और भक्तों को इसका खामियाजा अपनी जान देकर  चुकाना पड़ता है।ऐसा ही धार्मिक आस्था का सैलाब तब उमड़ा जब आंध्रप्रदेश के गोदावरी नदी के तट पर सालों भर चलने वाला उत्तर भारतीय कुम्भ मेलों के सदृश 14 जुलाई 2015 से महापुष्करम महोत्सव का आयोजन किया गया।महोत्सव के पहले ही दिन 29 श्रद्धालुओं की मौत हो गयी लिसमें 23 वृद्ध महिलाएं थी,जो 50-60 आयुवर्ग से संबंधित थी।
         यूँ तो यह धार्मिक समारोह हर 12 साल पर आयोजित होता है ,लेकिन इस बार के महोत्सव का खास महत्व है।खगोलीय दृष्टिकोण से गोदावरी पुष्करम को अत्यंत शुभ माना जा रहा ,क्योकि इस वर्ष महाकुम्भ की भांति महापुष्करलु पड़ा है।इस अवसर पर हजारों की संख्या में श्रद्धालु पवित्र गोदावरी में डुबकी लगाने के लिए जमा हुए है।ऐसा माना जाता है कि इस समय कोई भी व्यक्ति पवित्र नदी में स्नान करेगा तो उसके सारे पाप धूल जाएगें।इस मौके को कोई मूर्ख ही जाया कर सकता था।यद्यपि यह महोत्सव सालों भर चलता है,लेकिन शुरू के 12 दिनों को अत्यधिक पवित्र माना जाता है।पुष्करम में 12 नदियों की पूजा 12 सालों में विभिन्न नदियों के किनारे पर की जाती है।ये सभी नदियाँ राशि चक्र से जुडी हुई है;जिस राशि में वृहष्पति उस वर्ष प्रविष्ट होगा उस चक्र की नदी के तट पर इस समारोह का आयोजन होगा।इस् वर्ष वृहस्पति  गोदावरी नदी राशि में प्रविष्ट है।इसकी शुरुआत श्रावण मास के कृष्ण चतुर्दशी के दिन होती है और सालोंभर चलती है।गोदावरी पुष्करम के पहले 12 दिनों को आदि पुष्करम और अंतिम 12 दिनों को अन्त्य पुष्करम कहा जाता है।

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