हड़प्पाकालीन धर्म और समाज

हड़प्पा संस्कृति के धर्म के विषय में लिखित साक्षयों का पूर्ण अभाव है। इस संस्कृति के उत्खनन से मिले साक्ष्यों से धर्म के केवल क्रियापक्ष पर ही प्रकाश डाला जा सकता है,सैद्धान्तिक  पक्ष पर कोई टिप्पणी नहीँ की जा सकती।
             हड़प्पा समाज के शीर्ष पर तीन प्रकार के लोगों की अदृश्य श्रेणियां थी- शासक,व्यापारी ,तथा पुरोहित।पुरोहित हड़प्पा,मोहनजोदड़ों,लोथल एवं कलिबंगन जैसे नगरों में रक्षा प्राचीर से घिरे हुए विशिष्ट सुविधाओं से युक्त दुर्ग क्षेत्र में निवास  करते थे,जो निःसंदेह विशेषाधिकारों से युक्त व्यक्तियों य शासकों का निवास क्षेत्र था। मोहनजोदड़ो के किलेबंद नगर एवं निचले भागों में बड़ी-बड़ी इमारतें मिली है जिनकी पहचा न मंदिरों के रूप में की गयी है;लेकिन वास्तविकता यह है कि अभी तक एक भी स्थल ऐसा नही मिला है जिसे मंदिर कहा जा  सके। मोहनजोदड़ो में प्राप्त पवित्र स्नानागार के उत्तर पूर्व 83×24मी वाला एक भवन प्राप्त हुआ है जिसे पुरोहित का भवन कहा जाता है,आवश्य ही उस काल में इसका धार्मिक महत्व रहा होगा ।
      हड़प्पा काल के सबसे महत्वपूर्ण देवता के रूप में आदिशिव की पहचान की गयी हैं। मोहनजोदड़ो से पशुपति शिव की एक मुहर मिली है,जिनके दाहिने ओर हाथी और बाघ तथा बाई ओर एक गैंडा और भैसा खड़ा है।एक पुरुष आकृति पद्मासन की मुद्रा में चौकी पर बैठा हुया है तथा उसके पैरों के पास दो हिरण शावक है।हड़प्पा संस्कृति में मातृदेवी की पूजा होती थी।इनकी उपासना बलि प्रदान कर की जाती थी।यह जनसाधारण का धर्म था।यह के लोग प्रकृति के प्रजनन शक्ति की पूजा लिंग और योनि के रूप में करते थे।6

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