भारतीय संविधान का दर्शन

भारतीय संविधान का दर्शन 22 जनवरी 1947 ई. को जवाहरलाल नेहरु द्वारा संविधान सभा में प्रस्तुत उद्देश्य संकल्प में निहित है ,जिसे भारतीय संविधान की प्रस्तावना में रखा गया है.प्रस्तावना को न्यायलय के द्वारा लागु नहीं कराया जा सकता है.सर्वोच्च न्यायलय ने अपने अनेक निर्णयों में प्रस्तावना के महत्त्व एवं उपयोगिता पर प्रकाश डाला है विश्व के लगभग सभी लिखित संविधानों की प्रस्तावना में वे उद्देश्य लिखे जाते है ,जिसको देश में लागू करने के लिए संविधान की रचना की जाती है .प्रस्तवना को संविधान का आइना कहा जाता है .जहा सविधान की भाषा संदिग्ध होती है वहां प्रस्तावना ही संविधान के सम्यक निर्वचन में सहायता कराती है . संविधान की प्रस्तावना दो उद्देश्यों की सिद्धि करते है प्रथम;यह बताती है कि सविधान निर्माण के मुख्य स्रोत कौन-कौन से है द्वितीय ;सविधान किन उद्द्र्शयों से परिचालित है.
     भारतीय संविधान की प्रस्तावना में 1976 ई. में 42वां संविधान संशोधन द्वारा उद्देश्यों में कुछ और तत्वों का समावेश किया गया . जो संविधान की प्रस्तावना अभी संविधान का अंग है ,वह इसप्रकार है-
 हम भारत के लोग ,भारत को एक सम्पूर्ण प्रभुत्वसंपन्न समाजवादी पंथनिरपेक्ष लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए ,तथा उसके समस्त नागरिको को
सामाजिक,आर्थिक और राजनैतिक न्याय ,
विचार ,अभिव्यक्ति,विश्वास,धर्म और उपासना की स्वतंत्रता ,
प्राप्त करने के लिए ,तथा उन सब मे
व्यक्ति की गरिमा एवं राष्ट्र की
एकता एवं अखंडता सुनिश्चित करने वाली बंधुता
बढाने के लिए ,
दृढसंकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज दिनांक 26नवम्बर 1949 ई.[मिति मार्गशीर्ष शुक्ल सप्तमी ,संवत दो हजार छहः विक्रमी ]को एतदद्वारा इस संविधान को अंगीकृत,अधिनियमित एवं आत्मार्पित करते है .
    इसप्रकार 42 वें संविधान संशोधन द्वारा  प्रस्तावना में तीन नए तत्वों का समावेश किया गया ,वह थे समाजवादी,राष्ट्र की रक्त एवं अखंडता की रक्षा  और पंथनिरपेक्षता का सिद्धांत .'समाजवादी 'शब्द जोड़कर स्पष्ट शब्दों में यह घोषित किया गया की भारतीय राजव्यवस्था का ध्येय समाजवाद है.दुसरे ,देश को अलगाववादी एवं विघटनकरी तत्वों से लगातार चुनौतियाँ मिलती रही है,इसलिए एकता स्थापित करना ,देश की स्वतंत्रता को बनाये रखने के लिए और लोकतंत्र को  भारत भारत में सफल बनाने के लिए पहली आवश्यकता है .एकता को अखंडता के साथ जोड़कर और मजबूती प्रदान करने की कोशिश की गयी है.तीसरा तत्व है ,पंथनिरपेक्षता .उद्देशिका इसे जोड़कर भारत को एक पंथनिरपेक्ष राष्ट्र घोषित किया गया है .भारतीय संविधान में किसी भी धर्म को राष्ट्रिय धर्म दर्जा प्राप्त नहीं है .इसलिए अनेक मतों को मानाने वाले भारतियों में एकता एवं उनमे भ्रातृत्व भाव बनांए रखने के लिए पंथनिरपेक्षता को प्रस्तावना में शामिल करा ने की आवश्यकता पड़ी .
        उद्देशिका प्रस्ताव में भारत को स्पष्ट रूप में एक गणराज्य घोषित किया गया है .इसका एकमात्र तात्पर्य यह है की संविधान के अंतर्गत सभी प्राधिकारों का स्रोत भारत की जनता है.यह एक गणराज्य होने के साथ ही एक स्वतन्त्र एवं संप्रभु देश है.देश का संविधान भारत के लोगों के एक प्रभुत्वसंपन्न  संविधान सभा में समवेत होकर बनाया गया है.यह सभा अपने देश के राजनैतिक भविष्य को लेकर नीति निर्माण में सक्षम थी .प्रभुता का तात्पर्य है राज्यों को मिले स्वतन्त्र अधिकार से है,अर्थात राज्य को किसी भी विषय पर विधायन करने की शक्ति प्राप्त है.

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