WHTE SPACE - A NEW HOPE
शायद आने वाले निकट भविष्य में इंटरनेट उपभोक्ताओं को मुफ्त में इन्टरनेट सेवा उपलब्ध हो ! जी हाँ, दुनिया की अग्रणी सॉफ्टवेयर कंपनी ‘माइक्रोसॉफ्ट’ भारत के सुदूर गांवों में मुफ्त इंटरनेट सुविधा प्रदान करने की योजना बना रही है. इसके लिए ‘व्हाइट स्पेस' टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया जायेगा. माइक्रोसॉफ्ट ने भारत के ग्रामीण व दूरदराज के इलाकों में फ्री इंटरनेट मुहैया कराने के लिए सरकार के समक्ष ‘व्हाइट स्पेस स्पेक्ट्रम बैंड’ का उपयोग करने का प्रस्ताव रखा है. कंपनी के अनुसार 'व्हाइट स्पेस' में उपलब्ध 200-300 मेगाहट्र्ज का स्पेक्ट्रम बैंड 10 किलोमीटर की परिधि में आसानी से सुचना का प्रसारण कर सकता है. समाचारों के अनुसार पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर दो जिलों में इसका शुरूयात किया गया हैं.
'व्हाइट स्पेस' तकनीक क्या हैं ?
दरअसल यह कोई नया तकनीक नहीं हैं बल्कि, टीवी चैनलो को जो स्पेक्ट्रम / फ्रिक्वेंसी आवंटित किया जाता हैं, उसका अनुपयोगी स्पेक्ट्रम / फ्रिक्वेंसी हैं. इन्ही अनुपयोगी फ्रिक्वेंसी का उपयोग करके ग्रामीण/दूर-दराज के क्षेत्रो में वायरलेस इंटरनेट की सुविधा पहुचाया जा सकता हैं | सैधांतिक रूप से इस तकनीक ('व्हाइट स्पेस') का इस्तेमाल करके 29 एमबीपीएस के गति से इंटरनेट की सुविधा उपलब्ध कराया जा सकता हैं | टीवी प्रसारण के एनालॉग से डिजिटल रूप में उतरोत्तर विकसित होने के कारण 'व्हाइट स्पेस' का फैलाव और भी ज्यादा हो गया हैं, जिससे इस अनुपयोगी स्पेक्ट्रम / फ्रिक्वेंसी का इस्तेमाल कर इंटरनेट की सुविधा उपलब्ध करवाना संभव हैं.
दरअसल यह कोई नया तकनीक नहीं हैं बल्कि, टीवी चैनलो को जो स्पेक्ट्रम / फ्रिक्वेंसी आवंटित किया जाता हैं, उसका अनुपयोगी स्पेक्ट्रम / फ्रिक्वेंसी हैं. इन्ही अनुपयोगी फ्रिक्वेंसी का उपयोग करके ग्रामीण/दूर-दराज के क्षेत्रो में वायरलेस इंटरनेट की सुविधा पहुचाया जा सकता हैं | सैधांतिक रूप से इस तकनीक ('व्हाइट स्पेस') का इस्तेमाल करके 29 एमबीपीएस के गति से इंटरनेट की सुविधा उपलब्ध कराया जा सकता हैं | टीवी प्रसारण के एनालॉग से डिजिटल रूप में उतरोत्तर विकसित होने के कारण 'व्हाइट स्पेस' का फैलाव और भी ज्यादा हो गया हैं, जिससे इस अनुपयोगी स्पेक्ट्रम / फ्रिक्वेंसी का इस्तेमाल कर इंटरनेट की सुविधा उपलब्ध करवाना संभव हैं.
इस तकनीक को विकसित करने का श्रेय 'व्हाइट स्पेसेज कॉएलिशन' को जाता हैं. 'व्हाइट स्पेसेज कॉएलिशन', सन 2007 में दुनिया के आठ बड़ी कंपनियों (माइक्रोसॉफ्ट, गूगल, डेल, एचपी, इंटेल, फिलिप्स, अर्थलिंक और सैमसंग इलेक्ट्रो-मैकेनिक्स) ने मिल कर बना था, और हाइ-स्पीड इंटरनेट की सुविधा को उपलब्ध करने का अभियान शुरु किया था. फरवरी, 2009 में पहली बार अमेरिका (Redmond) में लोगों को यह सुविधा मुहैया करायी गयी थी.
'व्हाइट स्पेस' को लेकर भारत में चल रहे पायलट प्रोजेक्ट यदि सफल रहा तो, ये प्रधानमंत्री 'मोदी जी' के 'डिजिटल इंडिया' योजना में पंख लगा देगा.शायद आने वाले निकट भविष्य में इंटरनेट उपभोक्ताओं को मुफ्त में इन्टरनेट सेवा उपलब्ध हो ! जी हाँ, दुनिया की अग्रणी सॉफ्टवेयर कंपनी ‘माइक्रोसॉफ्ट’ भारत के सुदूर गांवों में मुफ्त इंटरनेट सुविधा प्रदान करने की योजना बना रही है. इसके लिए ‘व्हाइट स्पेस' टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया जायेगा. माइक्रोसॉफ्ट ने भारत के ग्रामीण व दूरदराज के इलाकों में फ्री इंटरनेट मुहैया कराने के लिए सरकार के समक्ष ‘व्हाइट स्पेस स्पेक्ट्रम बैंड’ का उपयोग करने का प्रस्ताव रखा है. कंपनी के अनुसार 'व्हाइट स्पेस' में उपलब्ध 200-300 मेगाहट्र्ज का स्पेक्ट्रम बैंड 10 किलोमीटर की परिधि में आसानी से सुचना का प्रसारण कर सकता है. समाचारों के अनुसार पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर दो जिलों में इसका शुरूयात किया गया हैं.
'व्हाइट स्पेस' तकनीक क्या हैं ?
दरअसल यह कोई नया तकनीक नहीं हैं बल्कि, टीवी चैनलो को जो स्पेक्ट्रम / फ्रिक्वेंसी आवंटित किया जाता हैं, उसका अनुपयोगी स्पेक्ट्रम / फ्रिक्वेंसी हैं. इन्ही अनुपयोगी फ्रिक्वेंसी का उपयोग करके ग्रामीण/दूर-दराज के क्षेत्रो में वायरलेस इंटरनेट की सुविधा पहुचाया जा सकता हैं | सैधांतिक रूप से इस तकनीक ('व्हाइट स्पेस') का इस्तेमाल करके 29 एमबीपीएस के गति से इंटरनेट की सुविधा उपलब्ध कराया जा सकता हैं | टीवी प्रसारण के एनालॉग से डिजिटल रूप में उतरोत्तर विकसित होने के कारण 'व्हाइट स्पेस' का फैलाव और भी ज्यादा हो गया हैं, जिससे इस अनुपयोगी स्पेक्ट्रम / फ्रिक्वेंसी का इस्तेमाल कर इंटरनेट की सुविधा उपलब्ध करवाना संभव हैं.
दरअसल यह कोई नया तकनीक नहीं हैं बल्कि, टीवी चैनलो को जो स्पेक्ट्रम / फ्रिक्वेंसी आवंटित किया जाता हैं, उसका अनुपयोगी स्पेक्ट्रम / फ्रिक्वेंसी हैं. इन्ही अनुपयोगी फ्रिक्वेंसी का उपयोग करके ग्रामीण/दूर-दराज के क्षेत्रो में वायरलेस इंटरनेट की सुविधा पहुचाया जा सकता हैं | सैधांतिक रूप से इस तकनीक ('व्हाइट स्पेस') का इस्तेमाल करके 29 एमबीपीएस के गति से इंटरनेट की सुविधा उपलब्ध कराया जा सकता हैं | टीवी प्रसारण के एनालॉग से डिजिटल रूप में उतरोत्तर विकसित होने के कारण 'व्हाइट स्पेस' का फैलाव और भी ज्यादा हो गया हैं, जिससे इस अनुपयोगी स्पेक्ट्रम / फ्रिक्वेंसी का इस्तेमाल कर इंटरनेट की सुविधा उपलब्ध करवाना संभव हैं.
इस तकनीक को विकसित करने का श्रेय 'व्हाइट स्पेसेज कॉएलिशन' को जाता हैं. 'व्हाइट स्पेसेज कॉएलिशन', सन 2007 में दुनिया के आठ बड़ी कंपनियों (माइक्रोसॉफ्ट, गूगल, डेल, एचपी, इंटेल, फिलिप्स, अर्थलिंक और सैमसंग इलेक्ट्रो-मैकेनिक्स) ने मिल कर बना था, और हाइ-स्पीड इंटरनेट की सुविधा को उपलब्ध करने का अभियान शुरु किया था. फरवरी, 2009 में पहली बार अमेरिका (Redmond) में लोगों को यह सुविधा मुहैया करायी गयी थी.
'व्हाइट स्पेस' को लेकर भारत में चल रहे पायलट प्रोजेक्ट यदि सफल रहा तो, ये प्रधानमंत्री 'मोदी जी' के 'डिजिटल इंडिया' योजना में पंख लगा देगा.शायद आने वाले निकट भविष्य में इंटरनेट उपभोक्ताओं को मुफ्त में इन्टरनेट सेवा उपलब्ध हो ! जी हाँ, दुनिया की अग्रणी सॉफ्टवेयर कंपनी ‘माइक्रोसॉफ्ट’ भारत के सुदूर गांवों में मुफ्त इंटरनेट सुविधा प्रदान करने की योजना बना रही है. इसके लिए ‘व्हाइट स्पेस' टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया जायेगा. माइक्रोसॉफ्ट ने भारत के ग्रामीण व दूरदराज के इलाकों में फ्री इंटरनेट मुहैया कराने के लिए सरकार के समक्ष ‘व्हाइट स्पेस स्पेक्ट्रम बैंड’ का उपयोग करने का प्रस्ताव रखा है. कंपनी के अनुसार 'व्हाइट स्पेस' में उपलब्ध 200-300 मेगाहट्र्ज का स्पेक्ट्रम बैंड 10 किलोमीटर की परिधि में आसानी से सुचना का प्रसारण कर सकता है. समाचारों के अनुसार पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर दो जिलों में इसका शुरूयात किया गया हैं.
'व्हाइट स्पेस' तकनीक क्या हैं ?
दरअसल यह कोई नया तकनीक नहीं हैं बल्कि, टीवी चैनलो को जो स्पेक्ट्रम / फ्रिक्वेंसी आवंटित किया जाता हैं, उसका अनुपयोगी स्पेक्ट्रम / फ्रिक्वेंसी हैं. इन्ही अनुपयोगी फ्रिक्वेंसी का उपयोग करके ग्रामीण/दूर-दराज के क्षेत्रो में वायरलेस इंटरनेट की सुविधा पहुचाया जा सकता हैं | सैधांतिक रूप से इस तकनीक ('व्हाइट स्पेस') का इस्तेमाल करके 29 एमबीपीएस के गति से इंटरनेट की सुविधा उपलब्ध कराया जा सकता हैं | टीवी प्रसारण के एनालॉग से डिजिटल रूप में उतरोत्तर विकसित होने के कारण 'व्हाइट स्पेस' का फैलाव और भी ज्यादा हो गया हैं, जिससे इस अनुपयोगी स्पेक्ट्रम / फ्रिक्वेंसी का इस्तेमाल कर इंटरनेट की सुविधा उपलब्ध करवाना संभव हैं.
दरअसल यह कोई नया तकनीक नहीं हैं बल्कि, टीवी चैनलो को जो स्पेक्ट्रम / फ्रिक्वेंसी आवंटित किया जाता हैं, उसका अनुपयोगी स्पेक्ट्रम / फ्रिक्वेंसी हैं. इन्ही अनुपयोगी फ्रिक्वेंसी का उपयोग करके ग्रामीण/दूर-दराज के क्षेत्रो में वायरलेस इंटरनेट की सुविधा पहुचाया जा सकता हैं | सैधांतिक रूप से इस तकनीक ('व्हाइट स्पेस') का इस्तेमाल करके 29 एमबीपीएस के गति से इंटरनेट की सुविधा उपलब्ध कराया जा सकता हैं | टीवी प्रसारण के एनालॉग से डिजिटल रूप में उतरोत्तर विकसित होने के कारण 'व्हाइट स्पेस' का फैलाव और भी ज्यादा हो गया हैं, जिससे इस अनुपयोगी स्पेक्ट्रम / फ्रिक्वेंसी का इस्तेमाल कर इंटरनेट की सुविधा उपलब्ध करवाना संभव हैं.
इस तकनीक को विकसित करने का श्रेय 'व्हाइट स्पेसेज कॉएलिशन' को जाता हैं. 'व्हाइट स्पेसेज कॉएलिशन', सन 2007 में दुनिया के आठ बड़ी कंपनियों (माइक्रोसॉफ्ट, गूगल, डेल, एचपी, इंटेल, फिलिप्स, अर्थलिंक और सैमसंग इलेक्ट्रो-मैकेनिक्स) ने मिल कर बना था, और हाइ-स्पीड इंटरनेट की सुविधा को उपलब्ध करने का अभियान शुरु किया था. फरवरी, 2009 में पहली बार अमेरिका (Redmond) में लोगों को यह सुविधा मुहैया करायी गयी थी.
'व्हाइट स्पेस' को लेकर भारत में चल रहे पायलट प्रोजेक्ट यदि सफल रहा तो, ये प्रधानमंत्री 'मोदी जी' के 'डिजिटल इंडिया' योजना में पंख लग जायेगा .
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